पटना: बिहार विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा (Vijay Kumar Sinha) ने संसदीय कार्य मंत्री के बयान पर पलटवार करते हुए कहा है कि उनको बिहार विधान सभा के अध्यक्ष के रूप में मेरा कार्यकाल और अपना कार्यकाल का स्मरण करना चाहिए. कहा कि मेरे 50 मिनट का सदन में संबोधन के दौरान वर्तमान अध्यक्ष की तरफ से 113 बार टीका टिप्पणी की गई और संसदीय कार्य मंत्री चुपचाप देखते रहे. उल्टे वे अध्यक्ष को कह रहे थे कि आप विपक्ष को ज्यादा तरजीह देते हैं. संसदीय कार्य मंत्री बात घुमाने में विशेषज्ञ हैं. तथ्यों से भली भांति अवगत रहने के बावजूद मुख्यमंत्री को खुश करने के लिए बीजेपी (BJP) पर अनाप-शनाप आरोप लगाते हैं.


'बिहार पंजाब बनने के कगार पर है'


विजय सिन्हा ने कहा कि सरकार ने शराबबंदी कानून का पालन करवाने के नाम पर राज्य में मादक द्रव्य के रूप में उजला जहर के कारोबार पर कोई चिंता नहीं है. आज उजला जहर की लत नौजवानों में जिस प्रकार बढ़ रही है ऐसे में बिहार पंजाब बनने के कगार पर है. सत्ताधारी दल ने शराब बनाने वाले और शराब पीने वाले को उपचुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया था.


मुआवजे के मुद्दे पर साधा निशाना


बीजेपी नेता ने कहा कि सरकार को शराब बनाने वाले माफिया और आपूर्तिकर्ताओं के नाम को सार्वजनिक करना चाहिए. राज्य के लोगों को तब ज्ञात होगा कि इस कारोबार में लगे लोगों को कहां से संरक्षण प्राप्त हो रहा है. कहा कि संसदीय कार्य मंत्री खुद अवगत हैं कि बीजेपी संपूर्ण नशाबंदी के पक्ष में है. विरोधी पक्ष में रहने के बावजूद 2016 में बीजेपी ने शराबबंदी का समर्थन किया था. जहरीली शराब से मरने वालों के परिजनों के लिए बीजेपी मुआवजे की मांग कर रही है. बिहार उत्पाद अधिनियम 2016 में इसका प्रावधान भी है. उन्होंने नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ने भी अब स्वीकार किया है कि मुआवजे का प्रावधान कानून में है, लेकिन वे अब भी मुआवजा नहीं देने पर अड़े हुए हैं.


मंत्री श्रवण कुमार ने दिया था ये बयान


बता दें कि मंत्री श्रवण कुमार ने नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा पर शराब के मुद्दे पर दिए गए बयान को लेकर निशाना साधा था. उन्होंने कहा था कि विजय सिन्हा विधानसभा अध्यक्ष के रूप में ज्ञान भी बांटते रहे. अब सदन से बाहर ज्ञान बाटेंगे तो उस बयान में क्या दम है? उसका कोई मतलब नहीं है. ज्ञानी आदमी सदन में जनता और बिहार के लोगों की बात चतुराई से रखता है. सदन नियमावली से ही चलता है. यदि नियमावाली के तहत आए रहते तो उनकी बात सुनी जाती. सत्ता पक्ष के सदस्यों या विपक्ष के सदस्य जिन्होंने नियम के तहत प्रश्न रखे हैं उनके प्रश्नों का उत्तर हुआ है.


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