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जानें जीतन राम मांझी ने कैसे तय किया डाक विभाग के क्लर्क से बिहार के मुख्यमंत्री तक का सफर

डाक विभाग की नौकरी छोड़ कर जीतन राम मांझी ने 1980 में कांग्रेस की टिकट पर फतेहपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ी और जीत गए. ऐसे में वो पहली बार चंद्रशेखर सिंह की सरकार में विधायक और मंत्री बने.

पटना: साल 2014 में बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर सबको चौंका देने वाले जीतन राम मांझी केवल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के सुप्रीमो ही नहीं हैं. बिहार की राजनीति उनकी पहचान और योगदान इससे कई ज्यादा है. बता दें कि गया जिले के खिजरसराय प्रखण्ड के महकार गांव में 6 अक्टूबर 1944 में जन्मे जीतन राम मांझी एक दलित परिवार से आते हैं. उनके पिता रामजीत राम मांझी एक खेतिहर मजदूर थे.

जीतन राम मांझी की शिक्षा की बात करें तो 1962 में उच्च विद्यालय में शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1967 में गया कॉलेज से इतिहास विषय से स्नातक की डिग्री हासिल की. 1968 में डाक विभाग में लिपिक के पद पर नौकरी मिली. लेकिन 12 साल डाक विभाग में नौकरी करने के बाद 1980 में वो नौकरी छोड़कर कांग्रेस पार्टी की आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को बुलाएंगे आंदोलन में शामिल हो गए थे.

1980 में उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर फतेहपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ी और जीत गए. ऐसे में वो पहली बाद चंद्रशेखर सिंह की सरकार में मंत्री और विधायक बने. 1985 में भी दोबारा उन्होंने इस सीट से चुनाव लड़ी और उनकी जीत हुई. लेकिन 1990 में फतेहपुर सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र से उन्हें पराजय झेलनी पड़ी थी.

1990 में हार के बाद उन्होंने जनता दल जॉइन कर ली. लेकिन 1996 में जेडी टूट गई और लालू प्रसाद यादव ने अपनी पार्टी आरजेडी बना ली. जीतन राम मांझी भी लालू प्रसाद यादव के साथ गए और 1996 में बाराचट्टी विधानसभा सीट से विजयी हुए और विधायक बने. मालूम हो कि वर्ष 1980 से लेकर अब तक कि कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू की सरकारों में जीतन राम मांझी मंत्री का पद संभाल चुके हैं.

बता दें कि जीतन राम मांझी गया जिले के बाराचट्टी, बोधगया और जहानाबाद जिले के मखदुमपुर विधानसभा क्षेत्र से लगातार विधायक रहे हैं और राबड़ी देवी की सरकार में मंत्री पद संभाली है. 7 बार विधायक रहे जीतन राम मांझी महादलित समुदाय में अच्छी पकड़ रखते हैं. ऐसे में उन्हें नीतीश कुमार की राजग सरकार में नवंबर, वर्ष 2005 में मंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी.

लेकिन आरजेडी शासनकाल के दौरान मानव संसाधन विभाग के मंत्री के रूप में शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार के एक मामले में उनका नाम आने पर उन्हें मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था. लेकिन आरोप मुक्त होने पर उन्हें 2008 पुनः मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया था. वहीं 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में इमामगंज विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी को हराकर विधायक बने.

साल 2014 में 20 मई को नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद जीतन राम मांझी ने बिहार के 23वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण किया. लेकिन 10 महीने बाद 20 फरवरी 2015 को नीतीश कुमार ने जब उन्हें पद छोड़ने को कहा तब वो नहीं माने. ऐसा करने पर उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. बहुमत साबित न कर पाने के कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया. बता दें कि 2019 लोकसभा चुनाव में बतौर महागठबंधन प्रत्याशी जीतन राम मांझी ने गया संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ी, लेकिन वो जेडीयू प्रत्याशी विजय कुमार से 1,52,456 वोटों से हार गए.

चूंकि नीतीश कुमार और जीतन राम मांझी के बीच सम्बंध खराब हो चुके थे, इसलिए जीतन राम मांझी ने अपनी पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) बनाई. लेकिन कोई स्थायी ठौर नहीं मिली तो महागठबंधन के साथ हाथ मिलाया. लेकिन वहां भी अनदेखी से नाराज उन्होंने महागठबंधन छोड़ने का फैसला ले लिया. अब ऐसी चर्चा है कि वो फिर एनडीए में जाने की तैयारी में लगे हैं.

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