Bihar Reservation Amendment Bill: बिहार में नई आरक्षण नीति होगी लागू? या है कुछ अड़चन, जानें क्या कहते हैं कानूनी विशेषज्ञ
Bihar News: बिहार विधानसभा में आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट जारी करके आरक्षण का दायरा बढ़ा दिया गया. वहीं, इसे लागू करने को लेकर कानूनी प्रावधान जानें.
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पटना: जाति आधारित गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद बिहार विधानसभा में आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट जारी करके आरक्षण का दायरा बढ़ा दिया गया. विधान परिषद से भी मंजूरी मिल गई. बिहार में आरक्षण का नया स्वरूप के तहत अत्यंत पिछड़ा वर्ग को पहले 18 प्रतिशत आरक्षण मिलता था जो अब 25 प्रतिशत हो जाएगा. वहीं, पिछड़ा वर्ग को पहले 12 से अब 18 प्रतिशत रिजर्वेशन मिलेगा. अनुसूचित जाति को 16 के बदले अब 20 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति को 1 के बदले अब 2 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग ईडब्ल्यूएस को पहले की तरह 10% आरक्षण मिलता रहेगा.
किसी भी राज्य सरकार का यह विशेष अधिकार है
बिहार की नई आरक्षण नीति लागू होगी? या सिर्फ राजनीति के इस्तेमाल के लिए इसे किया गया है. इसमें कितनी अड़चन आ सकती है यह भी जानना जरूरी है, क्योंकि आरक्षण का 50% से अधिक होने का प्रावधान नहीं है तो बिहार सरकार के सदन में पास होने से क्या यह लागू हो जाएगा. इस पर कानूनी विशेषज्ञ अरुण कुमार पांडे ने कहा कि बिहार सरकार ने इसे लागू किया है तो उसमें कोई अड़चन नहीं आ सकती है. किसी भी राज्य सरकार का यह विशेष अधिकार है कि वह अपना कानून खुद बना सकता है और आरक्षण कानून बिहार सरकार ने सदन में बनाया है. दोनों सदनों से पास हो गया है. राज्यपाल के सिग्नेचर के बाद यह आरक्षण बिल लागू हो जाएगा.
अभी तक नौवीं सूची में संशोधन नहीं किया गया है
कानूनी विशेषज्ञ ने कहा कि इसमें केंद्र सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती है क्योंकि यह सिर्फ बिहार के लिए है, लेकिन इस पर अड़चन उस वक्त आ सकती है जब कोई व्यक्ति इस आरक्षण के खिलाफ हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जाएगा. क्योंकि कोर्ट में जाने के बाद कोर्ट इस इसकी मंजूरी कभी नहीं देगा. सुप्रीम कोर्ट 50% से अधिक आरक्षण की मंजूरी नहीं देता है. उन्होंने बताया कि ऐसा नया नहीं है बिहार के अलावे तमिलनाडु में भी 59 प्रतिशत आरक्षण है जिसे नौवीं सूची में लाया गया है. उन्होंने बताया कि विधानसभा के नौवीं सूची के तहत सुप्रीम कोर्ट भी इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. नौवीं सूची का प्रावधान 1952 में ही तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय में लाया गया था. हालांकि इस पर भी काफी विवाद हुआ था, लेकिन अभी तक नौवीं सूची में संशोधन नहीं किया गया है.
'कई राज्यों में भी आरक्षण बढ़ाया गया है'
आगे अरुण कुमार पांडे ने कहा कि तमिलनाडु के अलावे महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और कई राज्यों में भी आरक्षण बढ़ाया गया है जो नौवीं सूची में नहीं डाला गया और मामला जब कोर्ट में गया तो वह खत्म हो गया. उन्होंने बताया कि पूरे देश में आरक्षण बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार को कानून में संशोधन करके ही बढ़ाया जा सकता है जो नरेंद्र मोदी की सरकार में किया भी गया है. कानून में संशोधन करके 10 प्रतिशत आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण दिया गया है, लेकिन राज्यों में उसका अपना अधिकार है.
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