नई दिल्ली: देश के सबसे बड़े सूबों में से एक बिहार में इस वक्त सियासी सरगर्मी बेहद तेज है. चुनावी समर के बीच नेता और कार्यकर्ता जी जान से लगे हुए हैं. इस सब के बीच बिहार में सियासी घटनक्रम भी बेहद तेजी से बदल रहा है. हाल के घटना क्रम पर नजर डालें तो एलजेपी का एनडीए छोड़ना और वहीं दूसरी ओर वीआईपी का महागठबंधन से बाहर जाना, हैरान करने वाला है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि एलजेपी और वीआईपी अपना अपना गठबंधन छोड़ने के बाद किसे नुकसान पहुंचाएंगी.


एक्सपर्ट क्या कहते हैं?
राजनीतिक पंडितों की मानें तो एलजेपी के एनडीए से बाहर जाने से होने वाले नुकसान की भरपायी जेडीयू को करनी पड़ सकती है. एलजेपी के इस कदम से कुछ सीटों पर जेडीयू की संभावनाओं को झटका लग सकता है. एलजेपी की बैठक के बाद जेडीयू के ख़िलाफ़ उम्मीदवार उतारने का फ़ैसला लिया गया. एलजेपी के इस फैसले के बाद कुछ सीटों पर नीतीश की पार्टी का गणित बिगड़ सकता है.


जानकारों की माने तो एलजेपी ने इसी तरह का फैसला 2005 में भी किया था. उस वक्त एलजेपी यूपीए के साथ हुआ करती थी. फरवरी 2005 में यूपीए का हिस्सा रहते हुए एलजेपी ने बिहार में आरजेडी के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिए थे. बिहार में आरजेडी भी यूपीए का हिस्सा थी.


2015 के चुनाव की बात करें तो एलजेपी ने 42 सीटों पर अपनी उम्मीदवारी ठोंकी थी लेकिन दो पर ही सफलता मिली. 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार ने लालू यादव के साथ मिलकर एनडीए के खिलाफ चुनाव लड़ा था.


वीआईपी का हाल क्या कहता है?
एलजेपी ने नीतीश की टेंशन बढ़ा दी है तो नहीं वीआईपी ने महागठबंधन के लिए सिरदर्द बन गयी है. महागठबंधन से अलग होने का एलान करने के साथ वीआईपी ने कहा है कि वो सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि वीआईपी का फैसला प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी-जेडीयू को फायदा पहुंचाए. वीआईपी के अलग चुनाव लड़ने से आरजेडी का पिछड़ा वोट बंट सकता है. एनडीए इसी का फायदा उठाने की पूरी कोशिश करेगा.


प्रेस कॉन्फ्रेंस के बीच में महागठबंधन छोड़ने का एलान करने वाले वीआईपी के मुकेश सहनी तेजस्वी यादव पर हमलावर हैं. सहनी के मुताबिक तेजस्वी को कन्हैया कुमार, चिराग पासवान और मुकेश सहनी जैसे नौजवान नेताओं से डर लगता है. सहनी ने ये भी कहा कि तेजस्वी अपने बड़े भाई तेज प्रताप से भी डरते हैं.





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