पटना: बिहार में महागठबंधन की सरकार है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Bihar CM Nitish Kumar) सात पार्टियों के गठबंधन से बिहार में सरकार चला रहे हैं. बीजेपी सत्ता से बाहर है. बीजेपी के नेता 2025 में बिहार में बीजेपी की सरकार बनने का दावा भी करते रहते हैं. हालांकि पहले 2024 का लोकसभा चुनाव होना है उसके बाद 2025 में बिहार विधानसभा का चुनाव होगा. यह सवाल इस उठ रहा है क्योंकि बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर सीएम नीतीश का हाथ है. एलान कर दिया है उन्होंने कि तेजस्वी को ही आगे बढ़ाना है. इनके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ना है. ऐसे में आखिर बीजेपी के पास क्या ऑप्शन है? कैसे क्लीन बोल्ड कर सकती है? सीएम के लिए किन चेहरों पर दांव लगा सकती है? इस खबर में जानिए.


बिहार के राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो बीजेपी के लिए 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव कठिन होगा, लेकिन पिछले रिकॉर्ड और अभी की राजनीतिक हालात से देखा जाए तो भारतीय जनता पार्टी महागठबंधन को मात भी दे सकती है. बशर्ते बीजेपी को महागठबंधन के मुकाबले एक दमदार मुख्यमंत्री का चेहरा सामने लाना होगा. वरिष्ठ पत्रकार राजनीतिक विशेषज्ञ अरुण कुमार पांडेय बताते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आगामी 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए तेजस्वी यादव के नाम की घोषणा कर चुके हैं. कई बार उन्होंने तेजस्वी के कंधे पर हाथ रखकर कहा है कि अब तो इन्हीं को देखना है.


ऐसे में अगर 2025 के चुनाव में तेजस्वी यादव महागठबंधन के मुख्यमंत्री का चेहरा होते हैं तो इसका फायदा भी बीजेपी को मिल सकता है. तेजस्वी यादव पिछड़ा समाज से आते हैं. बिहार में अति पिछड़ा और पिछड़ा मिलाकर लगभग 52% के आसपास हैं जिसमें 16% से ज्यादा सिर्फ यादव हैं. दूसरी सबसे बड़ी जाति कुशवाहा समाज से है. ये करीब 8% के आसपास हैं. ऐसे में अगर बीजेपी सम्राट चौधरी का नाम आगे करती है तो समीकरण में बदलाव हो सकता है. या फिर कोई अन्य पिछड़ा या अति पिछड़ा समाज के चर्चित नेता का नाम आगे करती है तो भी बीजेपी को फायदा हो सकता है.


बिहार में होती है जातिगत राजनीति


अरुण कुमार पांडेय ने बताया कि बिहार में जातिगत राजनीति होती है. 1994 में नीतीश कुमार लालू यादव से अलग हुए थे तो पिछड़ा और अति पिछड़ा एवं अन्य जातियों को अपनी ओर उन्होंने खींचा था. नीतीश कुमार का मुख्य वोट बैंक यादव छोड़कर अन्य अति पिछड़ा और पिछड़ी जाति ही था. इस बार नीतीश कुमार आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के साथ हैं तो निश्चित तौर पर वैसे समाज के लोग जो आरजेडी से कभी दूरी बनाकर चलते थे वह बीजेपी के साथ हो सकते हैं अगर भारतीय जनता पार्टी अति पिछड़ा या पिछड़ा के चेहरे को आगे करती है.


बीजेपी में कोई यादव समाज से मुख्यमंत्री का चेहरा हो सकता है या नहीं? इस पर अरुण पांडेय कहते हैं कि 2020 के चुनाव में भूपेंद्र यादव को बिहार का प्रभारी बनाया गया था लेकिन नतीजा सबके सामने है. आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी उभरकर आई थी क्योंकि यादव समाज लालू परिवार को ही अपना नेता मानता है. अभी तेजस्वी के सामने कोई भी दूसरा यादव नेता यादव समाज को मंजूर नहीं है.


बीजेपी अकेले नहीं बना पाई सरकार


बीजेपी के लिए 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव चुनौती भरा हो सकता है लेकिन जो आंकड़े बताते हैं उससे यह दिखता है कि बीजेपी बिहार में अकेले सरकार तो नहीं बना पाई है लेकिन कमजोर भी नहीं रही है. बात 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव की करें तो उस वक्त नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने आरजेडी और कांग्रेस ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. बीजेपी ने लोक जनशक्ति पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा थी जिसमें भारतीय जनता पार्टी को मात्र 53 सीट मिली थी लेकिन वोटिंग प्रतिशत सबसे ज्यादा बीजेपी के थे.


बीजेपी को 24.42% वोट मिले थे जबकि सबसे ज्यादा 80 सीट आरजेडी को मिली थी लेकिन वोटिंग प्रतिशत मात्र 18.35% ही था. जेडीयू को 71 सीट मिली थी लेकिन 16.83% वोट मिले थे. कांग्रेस को 27 सीट मिली थी लेकिन मात्र 6.66% वोट ही कांग्रेस को मिल पाए थे. लोक जनशक्ति पार्टी को मात्र दो सीट मिली थी लेकिन 4.83 प्रतिशत वोट मिले थे. 


बीजेपी ने क्या कहा?


बिहार बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता निखिल आनंद ने बताया कि इस बार नीतीश कुमार से अलग होने पर पूरे बिहार की जनता में काफी खुशी और जोश देखा जा रहा है. बीजेपी कार्यकर्ता और बीजेपी समर्थित जनता काफी उत्साहित हैं. बूथ स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक सभी कार्यकर्ता सक्रिय हैं. 2025 में बीजेपी अपने दमखम के साथ बिहार में सरकार बनाएगी. मुख्यमंत्री के चेहरे की बात पर उन्होंने कहा कि इसमें वह कुछ नहीं बोल सकते हैं क्योंकि बीजेपी अनुशासित पार्टी है और कोई भी निर्णय केंद्रीय नेतृत्व से होता है.


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