Lok Sabha Elections: सुरक्षा देकर 'सुरक्षित' हो रही बीजेपी! 2024 के चुनाव से पहले बिहार में Y-Z से बन रहा 'पॉलिटिकल ग्राफ'
Bihar Politics: लोकसभा चुनाव में करीब एक साल का वक्त है लेकिन एक तरफ बयानबाजी हो रही है तो दूसरी ओर तैयारी भी हो रही है. जानिए बिहार के सियासी गलियारे में क्या चर्चा है.
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पटना: 2024 में होने वाले लोकसभा के चुनाव को लेकर अंदर ही अंदर पार्टियां तैयारी में लगी हैं. करीब एक साल का वक्त है चुनाव के लिए लेकिन बिहार में बयानबाजी और पॉलिटिकल ग्राफ बनना शुरू हो गया है. बिहार में 40 सीटों पर लोकसभा का चुनाव होगा. फरवरी में ही बिहार की महागठबंधन की सरकार ने पूर्णिया में रैली कर संदेश दे दिया था कि वह बीजेपी से सीधा मुकाबला के लिए तैयार है. इधर बीजेपी भी अपने चुनावी प्लान में जुट गई. बिहार के कई नेताओं को केंद्र से सुरक्षा मिली है. सियासी पंडित कहते हैं कि इसके जरिए बीजेपी पॉलिटिकल ग्राफ बना रही है. कुछ नेताओं को सुरक्षा का दाना डाल कर खुद सुरक्षित होने का प्रयास कर रही है.
नेताओं को दी गई विशेष सुरक्षा के क्या हैं मायने?
बिहार में तीन नेताओं को केंद्र से सुरक्षा मिली है. उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान और वीआईपी सुप्रीमो मुकेश सहनी. अब इसके मायने समझिए. बिहार में नौ अगस्त 2022 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हो गए थे. अब बीजेपी बिहार में विपक्ष की भूमिका निभा रही है लेकिन लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर शुरू से ही हमलावर हैं. आए दिन किसी न किसी मामले पर नीतीश कुमार को घेरने में जुटे रहते हैं. बीजेपी इसका लाभ लेने की चाह में है.
कारण है कि चिराग पासवान एनडीए के गठबंधन में अभी शामिल नहीं हैं उसके बाद भी बिहार में हुए तीन उपचुनाव में बीजेपी ने उन्हें स्टार प्रचारक बनाया. अब आईबी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए केंद्रीय गृह विभाग की ओर से जेड (Z) सुरक्षा मुहैया कराई गई है.
विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के अध्यक्ष मुकेश सहनी को भी केंद्रीय गृह विभाग की ओर से Y+ सुरक्षा दी गई है. मुकेश साहनी को बीजेपी ने एमएलसी बनाकर मंत्री पद दिया था लेकिन उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी बीजेपी के खिलाफ भाषण करने के बाद बीजेपी ने मुकेश सहनी के तीन विधायकों को तोड़ कर अपने पाले में कर लिया था. उनका मंत्री पद भी चला गया था. हालांकि अभी तक मुकेश सहनी महागठबंधन में शामिल नहीं हुए हैं. अब बीजेपी मुकेश सहनी पर डोरे डालने की फिराक में है. वाई प्लस सुरक्षा देकर मुकेश सहनी को फिर से अपने पाले में करने की तैयारी में जुट गई है.
कुछ दिनों पहले उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू से बगावत करके अलग हुए और अपनी पार्टी बना चुके हैं. बिहार में यात्रा कर रहे हैं. बीजेपी की नजर अब कुशवाहा पर भी है. केंद्र से उन्हें भी आईबी की रिपोर्ट का हवाला देकर वाई प्लस सुरक्षा दी गई है. कहा तो यह भी जा रहा है कि उपेंद्र कुशवाहा जल्द ही बीजेपी से गठबंधन करने वाले हैं. हालांकि यह सब चुनाव नजदीक आने पर साफ हो जाएगा.
सुरक्षा देने के पीछे वोट पाना रणनीति?
सवाल है कि इन नेताओं के विशेष सुरक्षा के पीछे कोई दूसरी वजह तो नहीं है. बिहार में 40 लोकसभा सीटों पर चुनाव होगा. 2019 में बीजेपी जब नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में थी तो 40 में 39 सीटों पर कब्जा जमाया था. इसमें 17 सीट पर बीजेपी चुनाव लड़ी थी और सभी 17 सीटों पर जीत गई थी. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू 17 सीटों पर चुनाव लड़कर 16 सीट जीती थी. लोक जनशक्ति पार्टी को छह सीट मिले थे. सभी छह सीटों पर जीत भी हुई थी. इस बार एलजेपी तो बीजेपी के साथ है लेकिन जेडीयू महागठबंधन के साथ है. अब बीजेपी की नजर जेडीयू के पाले में गई 16 सीटों पर है. इसके लिए जेडीयू के वोट बैंक में सेंधमारी करके बीजेपी कामयाब हो सकती है.
2019 के लोकसभा चुनाव में 23.6 % वोट शेयर बीजेपी को मिले थे और 17 सीट पर चुनाव जीती थी. 2014 में बीजेपी को 29% वोट शेयर मिले थे लेकिन उस वक्त 22 सीटें बीजेपी जीती थी. 2014 में जेडीयू आरजेडी के साथ था. 2019 में जेडीयू को 21.8 % वोट शेयर मिले थे और 16 सीट पर जीत मिली थी जबकि 2014 में जेडीयू को 16% वोट मिले थे. मात्र दो सीट जेडीयू जीत पाई थी. नीतीश कुमार के वोट बैंक में ज्यादा कमी नहीं हुई थी.
आरजेडी 2019 में अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी लेकिन 15.4% वोट शेयर मिला था जबकि 2014 में आरजेडी ने चार सीटों पर जीत हासिल की थी. 20.5% वोट मिला था. आरजेडी के एमवाई (MY) समीकरण में न पहले कभी बिखराव हुआ था न अब हो रहा है. इस बार जेडीयू आरजेडी एक साथ है तो बीजेपी की रणनीति को समझें तो लोक जनशक्ति पार्टी के वोट बैंक में ज्यादा उतार-चढ़ाव कभी नहीं दिखा. अभी चिराग पासवान गठबंधन में नहीं हैं लेकिन इससे पहले का नतीजा देखा जाए तो 2019 के लोकसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी एनडीए के साथ थी और एलजेपी को 7.9% वोट शेयर मिले थे. छह सीटों पर जीत मिली थी.
2014 में उसे 6.5% जनादेश मिला था उस वक्त भी छह सीटों पर जीत मिली थी. एलजेपी का बिहार विधानसभा चुनाव 2020 देखें तो चिराग पासवान अपने दम पर मात्र एक सीट लाने में कामयाब रहे परंतु 5.66% वोट चिराग पासवान को मिला था. इसमें 23 लाख 83 हजार 457 मत प्राप्त हुए थे. कुल मिलाकर देखा जाए तो लोक जनशक्ति पार्टी का वोट बैंक अभी भी बरकरार है और इसे बीजेपी खोना नहीं चाहती है.
उपेंद्र कुशवाहा को कमजोर नहीं मानती बीजेपी
बता दें कि बीजेपी यह जानती है कि अगर उसे बिहार में जीत हासिल करनी है तो जेडीयू के अति पिछड़ा वोट में सेंधमारी करनी पड़ेगी. अगर जेडीयू के वोट बैंक में सेंधमारी हुई तो बीजेपी को सफलता मिल सकती है. यही कारण है कि उपेंद्र कुशवाहा के अलग होने के कुछ दिन बाद ही केंद्र से उपेंद्र कुशवाहा को वाई प्लस की सिक्योरिटी मिल गई.
बिहार में अति पिछड़ा की बात करें तो 52% अति पिछड़ा में सबसे ज्यादा 16% के आसपास यादव हैं तो दूसरे नंबर पर कुशवाहा का वोट माना जाता है जो करीब 8% के आसपास है. उपेंद्र कुशवाहा के पहले का रिकॉर्ड देखें तो भले वे सत्ता पाने में कामयाब नहीं हुए लेकिन अभी भी उपेंद्र कुशवाहा के पास वोट बैंक हैं क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो रालोसपा ने चार सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 3.58% वोट शेयर मिले थे जो लगभग 16 लाख वोट के आसपास है. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में भी उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा अकेले चुनाव मैदान में थी लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. इसके बाद भी उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को 1.77% यानी 744221 वोट प्राप्त हुए थे. जिस तरह से नीतीश कुमार की पार्टी में बदलाव हुआ है और वे आरजेडी में शामिल हुए हैं तो सियासी पंडितों का मानना है कि पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट में गिरावट हो रही है. उपेंद्र कुशवाहा के आने से इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है.
सहनी समाज के वोटरों को लुभाने की कोशिश?
मुकेश सहनी को बीजेपी ने दरकिनार कर दिया था, लेकिन बदलते हालात के साथ बीजेपी को अब मुकेश सहनी से समझौता करना पड़ सकता है. केंद्र से मुकेश सहनी को भी वाई प्लस की सुरक्षा मिली है. इसको लेकर भी लुभाने की कोशिश की नजर से देखा जा रहा है. मुकेश सहनी बीजेपी में शामिल होते हैं तो सहनी समाज का वोट बीजेपी को मिल सकता है.
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