Baikatpur Dham Patna: राजधानी पटना से सटे बैकटपुर गांव में स्थित है प्राचीन और ऐतिहासिक शिव मंदिर जिसे श्री गौरीशंकर बैकुंठ धाम के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां शिवलिंग रूप में भगवान शिव के साथ माता-पार्वती भी विराजमान हैं. शिवलिंग में 112 लिंग कटिंग है जिसे द्वादश शिवलिंग भी कहा जाता है. अगर इस मंदिर के बारे में अब तक आप नहीं जानते हैं तो पढ़ ले यह पूरी स्टोरी.
पटना से सटे खुसरूपुर प्रखंड स्थित बैकटपुर गांव में यह प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर का निर्माण मुगल शासक अकबर के सेनापति मान सिंह ने कराया था. मंदिर के पुजारी विजयशंकर गिरी बताते हैं कि अकबर के सेनापति रहे राजा मान सिंह जब गंगा नदी में जलमार्ग से बंगाल विद्रोह को खत्म करने सपरिवार रनियासराय जा रहे थे उसी वक्त राजा मान सिंह की नाव मंदिर के किनारे गंगा नदी स्थित कौड़िया खाड़ में फंस गई. काफी प्रयास के बाद भी जब राजा मान सिंह की नाव कौड़िया खाड़ से नहीं निकल सकी तो पूरी रात मानसिंह को सेना सहित वहीं डेरा डालना पड़ा.
पुजारी ने कहा कि बुजुर्गों से सुनी गई कहानियों के अनुसार उसी रात को ही राजा मान सिंह को सपने में भगवान शंकर ने दर्शन दिया और कौड़िया खाड़ के पहले स्थापित जीर्ण-शीर्ण मंदिर को पुनः स्थापित करने को कहा. मान सिंह ने उसी रात मंदिर के जीर्णोद्धार का आदेश दिया और उसके बाद यात्रा शुरू की और बंगाल में उन्हें विजय प्राप्त हुई. मंदिर में अभी जो शिवलिंग स्थापित है वह राजा मान सिंह का स्थापित किया हुआ है.
क्या है मंदिर की खासियत?
इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां भगवान शिव और पार्वती एक साथ एक ही शिवलिंग रूप में विराजमान हैं. बड़े शिवलिंग में 112 छोटे-छोटे शिवलिंगों को रूद्र कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि बैकटपुर जैसा शिवलिंग पूरी दुनिया में कहीं और नहीं है. पुजारी बताते हैं कि मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. पुरानी कथाओं के अनुसार महाभारत काल के जरासंध से भी जुड़ा हुआ है. मान्यताओं के अनुसार, मगध क्षेत्र के राजा जरासंध के पिता बृहद्रथ भगवान भोलेनाथ का भक्त था. शास्त्रों के अनुसार, प्रतिदिन वह गंगा किनारे आता था और भगवान भोलेनाथ की पूजा करता था.
इसी जगह पर एक ऋषि मुनि ने राजा बृहद्रथ को संतान उत्पत्ति के लिए एक फल दिया था जिसे राजा ने दो टुकड़े कर अपनी दोनों पत्नियों को खिला दिया था. फलस्वरूप दोनों रानियों के एक पुत्र के अलग-अलग टुकड़े हुए थे जिसे जंगल में फेंकवाया गया था. उसके बाद उसे जोड़ा नाम की राक्षसी ने जोड़ दिया जिसे जरासंध के नाम से जाना गया. जरासंध भी भगवान शंकर का बहुत बड़ा भक्त था. जरासंध रोज इस मंदिर में राजगृह से पूजा करने आता था.
जरासंध हमेशा अपनी बांह पर एक शिवलिंग की आकृति का ताबीज पहना करता था. भगवान शंकर का वरदान था कि जब तक उसके बांह पर शिवलिंग रहेगा तब तक उसे कोई हरा नहीं सकता है. जरासंध को पराजित करने के लिए श्रीकृष्ण ने छल से जरासंध की बांह पर बंधे शिवलिंग को गंगा में प्रवाहित करा दिया और तब उसे मारा गया.
रामायण में बैकटपुर मंदिर की चर्चा
इस मंदिर को रामायण से जोड़ा जाता है. रामायण में बैकटपुर मंदिर की चर्चा है. प्राचीन काल में गंगा के तट पर बसा यह क्षेत्र बैकुंठ वन के नाम से जाना जाता था. आनंद रामायण में इस गांव की चर्चा बैकुंठ के रूप में हुई है. लंका विजय के बाद रावण को मारने से जो ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था, उस पाप से मुक्ति के लिए भगवान श्रीराम इस मंदिर में आए थे. शिवरात्रि के मौके पर यहां पांच दिनों तक मेला लगा रहता है. यहां दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं. सावन महीने में एक महीने तक इस मंदिर में काफी भीड़ होती है.
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