दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों से मारपीट के मामले में नया एंगल सामने आया है. बिहार पुलिस की अपराधिक इकाई शाखा ने दावा किया है कि मारपीट से संबंधित कई वीडियो फर्जी हैं. बिहार पुलिस ने इस मामले में जमुई से एक व्यक्ति को गिरफ्तार भी किया है. 


वीडियो वायरल होने के बाद तमिलनाडु पुलिस भी एक्शन में है. पुलिस ने साजिश करने वाले 3 लोगों पर मुकदमा दर्ज किया है, जबकि झारखंड के रहने वाले 2 प्रवासी मजदूरों को गिरफ्तार भी किया है. पुलिस एक्शन और कानूनी दांव-पेंच के बीच हजारों मजदूर तमिलनाडु से बिहार लौट चुके हैं. 


अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु के तिरुवर शहर से यह अफवाह फैलना शुरू हुई थी. यहां रेडिमेड कपड़ों की फैक्ट्रियां संचालित की जाती है, जहां करीब पौने दो लाख प्रवासी मजदूर काम करते हैं. पूरे राज्य में करीब 10 लाख प्रवासी मजदूर काम करते हैं, जो बिहार, झारखंड और यूपी से आते हैं. 


इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए चेन्नई डिस्ट्रिक्ट स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन की सचिव जया विजयन ने कहा कि अगर प्रवासी मजदूर तमिलनाडु से चले गए तो यहां कई सेक्टर पूरी तरह से ठप्प हो जाएगा. इनमें अद्यौगिक और विनिर्माण का क्षेत्र महत्वपूर्ण है.


पुलिस एक्शन के बाद बैकफुट पर गई सत्ताधारी दल भी हमलावर हो गई है और अफवाह फैलाने का आरोप बीजेपी पर लगा रही है. सरकार ने 4 सदस्यों की एक टीम भी भेजी है, जिसके आने के बाद एक्शन के बारे में जानकारी दी जाएगी. रिपोर्ट्स के मुताबिक बिहार सरकार की टीम तमिलनाडु पुलिस के एक्शन से संतुष्ट हैं और मजदूरों से काम करते रहने की अपील की है. 


18 साल में 3 बड़ी घटना, जब बैकफुट पर आई सरकार
1. महाराष्ट्र में भड़की थी हिंसा- शिवसेना से अलग होकर नई पार्टी बनाने के बाद 2008 में राज ठाकरे ने उत्तर भारतीयों को महाराष्ट्र से बाहर करने के लिए अभियान छेड़ दिया. इस दौरान उनके कार्यकर्ताओं ने जमकर हिंसा किया. इसी दौरान 2 उत्तर भारतीय युवकों की मौत हो गई.


युवक की मौत के बाद महाराष्ट्र से बिहारी मजदूर भागने लगे. पूरे राज्य में अफरातफरी का माहौल बन गया था. इस मुद्दे पर उस वक्त नीतीश कुमार, लालू यादव और रामविलास पासवान ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की थी.


नीतीश कुमार ने सिचुएशन कंट्रोल करने के लिए सख्त फैसले लेने की मांग की थी. पासवान ने राज्य सरकार को भंग करते हुए महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की थी. इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में ही लोगों को सुरक्षित रोजगार देने का वादा किया था. 


2. कोरोना और लॉकडाउन में पलायन- साल 2020 के मार्च में कोरोनावायरस की वजह से केंद्र सरकार ने लॉकडाउन लगाने का ऐलान कर दिया. लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर बिहारी मजदूरों पर ही पड़ा. लॉकडाउन के दौरान राज्य सरकार ने 17 लाख प्रवासी मजदूरों के खाते में 1000-1000 रुपए की राहत राशि भेजी थी. 


यानी सरकारी आंकड़ों की माने तो 17 लाख लोग उस वक्त प्रवासी थे, जो सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज थे. बाद में सरकार ने इन मजदूरों को लाने के लिए ट्रेन और बसों के परिचालन की अनुमति देने की मांग की थी, लेकिन इससे पहले ही लाखों मजदूर पैदल ही बिहार की तरफ कूच कर गए थे. 


लॉकडाउन के पलायन के बाद नीतीश कुमार ने एक सार्वजनिक बयान में कहा था कि बिहारी मजदूरों को प्रवासी कहना बुरा लगता है. देश के किसी हिस्से में अगर मजदूर काम करने जाते हैं, तो ये उनका अधिकार है.


3. गुजरात से लाखों लोगों का पलायन- साल था 2018 और महीना अक्टूबर का. उत्तर गुजरात के एक कस्बे में 14 माह की एक लड़की के रेप और हत्या का मामला सामने आता है. इस मामले में पुलिस एक बिहारी मजदूर को गिरफ्तार करती है.


मजदूर के गिरफ्तार होने के बाद गुजरात में शुरू होता है बिहारियों के खिलाफ मारपीट का अभियान. देखते ही देखते हजारों बिहारी मजदूर अपने घर भागते हैं. कुछ सफल होते हैं और कुछ वहीं रह जाते हैं.


घटना के बाद खूब राजनीति होती है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बयान जारी कर कहते हैं कि जो जहां हैं, वहीं रहे. कोई दिक्कत नहीं होगी. केंद्र सरकार भी एक्टिव होती है और मजदूरों को सुरक्षा देने का वादा करती है.


बिहार से मजदूरों का पलायन क्यों, 3 वजहें...
1. रोजगार नहीं- सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) देश भर में बेरोजगारी को लेकर रिपोर्ट जारी करती है. दिसंबर 2022 के रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में बेरोजगारी दर 19 फीसदी से अधिक है. 


रोजगार नहीं होने की वजह से सबसे अधिक पलायन बिहार में होता है. जर्नल ऑफ माइग्रेशन अफेयर्स के मुताबिक बिहार में 55 फीसदी पलायन रोजगार की वजह से होता है. अधिकांश लोग अनऑर्गेनाइज्ड सेक्टर में काम ढूंढने के लिए बिहार से बाहर आते हैं.


2. काम के बदले कम पैसा- बिहार में पलायन का दूसरी बड़ी वजह काम के बदले कम पैसा मिलना है. बिहार में मजदूरी के लिए न्यूनतम 200 रुपए मिलते हैं, जबकि उसी मजदूरी के लिए अन्य राज्यों में 400-500 रुपए दिए जाते हैं.


द प्रिंट की एक रिपोर्ट में कहा गया कि बिहार में मजदूरों को औसत दिहाड़ी 300 रुपए दी जाती है, जबकि तेलंगाना और दक्षिण के राज्यों में यह रकम 1000 रुपए से है.


दिहाड़ी मजदूरों के लिए यह पैसा काफी ज्यादा होता है. यही वजह है कि मजदूर बिहार में न रहकर दूसरे राज्य चले जाते हैं. इसके अलावा बिहार में काम का नियमित यानी रोज नहीं मिलना भी पलायन का बड़ा कारण है.


3. परिवार की सुरक्षा भी वजह- जब किसी एक व्यक्ति पलायन कर जाता है तो उसे अपनी परिवार की चिंता सताने लगती है. बिहार में कानून व्यवस्था का हाल भी बेहाल है. एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक हत्या के मामले में बिहार दूसरे नंबर पर, जबकि चोरी के मामले में तीसरे नंबर पर है.


भूमि संबंधी विवाद मामले में बिहार टॉप पर है. एनसीआरबी ने यह डेटा 2021 में जारी किया था. पुलिस और सरकारी कर्मचारियों पर हमले के मामले में भी बिहार का स्थान शीर्ष पर है. 


पलायन रोकने पर खूब बोल चुके हैं नीतीश


1. बिहार के लोगों को प्रवासी मजदूर कहा जाता है. यह कितना दुखद है कि अपने देश में ही बिहारी बाहरी बन गए हैं. अब हम आप लोगों के लिए यहीं पर रोजगार की व्यवस्था कराएंगे. आप लोगों को कहीं जाने की जरूरत नहीं है. 
(23 मई 2020 को पटना के एक कार्यक्रम में)


2. ऐसा बिहार बनेगा कि बिहारी कहलाना अपमान नहीं, सम्मान की बात हो जाएगा. हम बिहार में रोजगार और धंधा वापस लाएंगे और लोगों को यहीं सारी सुविधा मुहैया कराएंगे. बिहार अब आगे निकल चुका है.
(22 मार्च 2006 को पटना के गांधी मैदान में)


बिहार में पलायन कितना बड़ा संकट?
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस ने 2017 में बिहार के पलायन पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट में कहा गया कि बिहार में पलायन दशकों पूर्व का मसला है. पूर्व औपनिवेशिक काल यानी की अंग्रेज के भारत आने से पहले से बिहार में पलायन होता था. 


उस वक्त मुगल सेना में बिहारी मजदूरों को बतौर लड़ाका सैनिक भर्ती किया जाता था. अंग्रेज के आने के बाद बिहार के मजदूर ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करने लगे. इस दौरान असम के चाय बागानों और बंगाल के मीलों में मजदूरों को काम के लिए भेजा जाता था. 


आजादी के बाद बिहार के मजदूर पंजाब और हरियाणा की ओर जाने लगे. हरित क्रांति की वजह से यहां रोजगार का साधन था और खेती में बढ़िया पैसे मजदूरों को मिल जाते थे. 


1990 के दशक में भारत में उद्योग कारखाने का बोलबाला शुरू हुआ. इसके बाद बिहारी मजदूरों का पलायन मायानगरी मुंबई, दिल्ली, कर्नाटक और दक्षिण के राज्यों की ओर हुआ. 


2011 के जनगणना को आधार बनाकर जर्नल ऑफ माइग्रेशन अफेयर्स ने एक रिपोर्ट जारी किया था. इसमें कहा गया था कि बिहार के कुल पलायन का 19 फीसदी मजदूर दिल्ली की ओर रूख करते हैं. इसके बाद बंगाल और महाराष्ट्र का स्थान है.


2005 से 2023 यानी 18 साल... कितना बदला? 
नीति आयोग ने बिहार की गरीबी को लेकर 2022 में एक रिपोर्ट जारी किया था, जिसके बाद पूरी सरकार गुस्से में आ गई. नीतीश कुमार के मंत्री ने सदन में ही आयोग की रिपोर्ट पर सवाल उठा दिया.


नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में अब भी 51.9 फीसदी लोग गरीब हैं. आयोग ने यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा व स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग को आधार बनाकर जारी किया था. 


2005 में बिहार में गरीबी दर 54 फीसदी के आसपास था. यानी पिछले 18 सालों में गरीबी मिटाने की भले लाख कोशिश हुई हो, लेकिन आंकड़ों में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है. सरकार का कहना है कि गरीबी नहीं हटने की मुख्य वजह विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलना है.


2020 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंस ने एक रिपोर्ट में दावा किया कि बिहार में हर दूसरे घर से पलायन हुआ है. 6 प्रमंडल के 36 गांवों में किए गए इस सर्वे में दावा किया गया कि ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय के लोग सबसे अधिक पलायन करते हैं.




90 फीसदी पलायन करने वाले मजदूर प्राइवेट फैक्ट्री में काम करते हैं. इन मजदूरों की उम्र 32 साल से कम होती है. रिपोर्ट आने के बाद उस वक्त नेता प्रतिपक्ष रहे तेजस्वी यादव ने इसे खूब भुनाया भी था. 


केंद्र पर ठीकरा फोड़ती है बिहार सरकार
पिछले 18 सालों से नया बिहार बनाने का जुमला उछालने वाली नीतीश सरकार पलायन के लिए केंद्र को जिम्मेदार ठहरा देती है. फरवरी में जब मनरेगा की बजट में कटौती हुई तो राज्य सरकार के मंत्री श्रवण कुमार ने कहा कि इससे पलायन बढ़ेगा.


श्रवण कुमार ने मनरेगा बजट में कटौती को पलायन से जोड़ते हुए कहा कि केंद्र के इस फैसले से बिहार के मजदूरों को काम करने के लिए बाहर जाना होगा. हालांकि, मनरेगा से राज्य सरकार ने 2021-22 में सिर्फ 14590 लोगों को ही 100 दिन का काम दिया.


बिहार में गरीबी दूर नहीं होने को लेकर भी नीतीश कुमार ने केंद्र पर ही निशाना साधा था. 25 जनवरी को एक मीटिेग में नीतीश कुमार ने कहा था कि केंद्र गरीबी हटाने के लिए कर्ज भी लेने नहीं दे रही है. बिहार के विकास के लिए विशेष राज्य का दर्जा जरूरी है.