धूमधाम से मनाया गया मिथिला का लोकपर्व चौठ चंद्र, निर्जल रह कर महिलाएं करती हैं व्रत
भाद्र शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को इस पर्व को विधि-विधान के साथ मनाया जाता है. मान्यता है कि चौठ चंद्र व्रत की उपासना करने से मनोकामनाओं की प्राप्ति होती है.
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दरभंगा: मिथिला अपनी सभ्यता-संस्कृति और पर्व-त्योहारों की परंपराओं को लेकर प्रसिद्ध है. वैदिक काल से ही मिथिलांचल में पर्व-त्योहारों की अनुपम परंपरा रही है. मिथिला के त्योहारों से धार्मिक और ऐतिहासिक भावनाएं जुड़ी है, जो हमारी सांस्कृतिक चेतना को अखंड रखती हैं. ऐसे ही त्योहारों में से एक है मिथिलांचल का प्रसिद्ध पर्व चौठ चंद्र. इसे स्थानीय मैथिली भाषा में चौरचन कहा जाता है.
भाद्र शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को इस पर्व को विधि-विधान के साथ मनाया जाता है. मान्यता है कि चौठ चंद्र व्रत की उपासना करने से मनोकामनाओं की प्राप्ति होती है. स्कन्द पुराण में भी चौठ-चंद्र की पद्धति और कथा का वर्णन है. खास बात यह कि छठ की तरह चौठ चंद्र पूजा को भी महिलाएं ही करती हैं. इस दिन महिलाओं एवं बच्चों में विशेष उमंग देखने को मिलता है. महिलाएं और बच्चे सुबह से ही आंगन और घरों को गाय के गोबर से लीपकर शुद्ध करती हैं. महिलाऐं कच्चे चावल को पीसकर पिठार बनाती हैं, जिससे घर के आंगन या छत पर पूजा स्थल को आकर्षक अहिपन यानी रंगोली से सजाया जाता है.
चंद्रदेव को अर्घ देने के लिए दिन भर एक से बढ़कर एक मीठे पकवान बनाये जाते हैं. इस पर्व में दही और केले का खास महत्व है. संध्या की बेला में पूजा स्थल पर पूजा सामग्रियों को सजाकर व्रती महिलाएं पारंपरिक तरीके से विधि पूर्वक पूजा करतीं हैं. पूजा के बाद दिन भर निर्जल उपवास रखने वाली व्रती महिलाएं चंद्रदेव को अर्घ देती हैं और सबसे पहले हाथ में फल लेकर चंद्रदेव का दर्शन करती हैं.
इसके बाद परिवार के सभी सदस्य हाथ में केला, दही या अन्य फल लेकर चंद्रदेव का दर्शन करते हैं और सभी प्रसाद ग्रहण करते हैं. बताया जाता है कि यह पर्व मिथ्या कलंक से बचने के लिए मनाया जाता है.
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