पटनाः मोदी कैबिनेट में मंत्री पद को लेकर टकटकी लगाए बैठे लोगों की सभी अटकलें समाप्त हो चुकी हैं. बुधवार को हुए कैबिनेट के विस्तार के बाद सबकुछ साफ हो गया है. केंद्रीय कैबिनेट के विस्तार में बहुत कुछ मिलने की उम्मीद लगाए बैठे बिहार के लोगों के लिए राहत की बात सिर्फ इतनी हो सकती है कि रामविलास पासवान के निधन के कारण एक पद की जो भागीदारी कम हो गई थी, वह बहाल हो गई. संयोग से यह हिस्सेदारी उनके भाई पशुपति पारस के खाते में चली गई.


एक सीट से जेडीयू कार्यकर्ता और खास लोग निराश


वहीं दूसरी ओर बिहार से जेडीयू को कम से कम तीन सीट मिलने की उम्मीद थी लेकिन इस बार भी एक ही सीट में सिमट गई. जबकि 2019 में जेडीयू ने एक सीट मिलने की वजह से ही कैबिनेट में शामिल होने से इनकार कर दिया था. अब सवाल उठता है कि इस बार आखिर क्या हुआ कि जेडीयू एक सीट में भी खुश है? क्योंकि दूसरी ओर जेडीयू को सिर्फ एक सीट मिलने से उनके कार्यकर्ता और कुछ खास लोगों में निराशा जरूर है. कुछ कार्यकर्ताओं में तो यह भी चर्चा होने लगी है कि जेडीयू को जब एक सीट पर ही मान जाना था तो दो साल पहले उसी प्रस्ताव को स्वीकार करने में क्या बुराई थी? दो साल पहले मान जाते तो मंत्री का कार्यकाल बड़ा रहता.


ललन बाबू और मुझमें कोई फर्क नहींः आरसीपी सिंह


जेडीयू से ललन सिंह के नाम को लेकर भी खूब चर्चा थी लेकिन मंत्रिमंडल में सिर्फ आरसीपी सिंह को जगह मिलने के बाद एक तरफ राजनीति हो रही है तो दूसरी ओर मोदी कैबिनेट में मंत्री बने आरसीपी सिंह सफाई देने में लगे हैं. आरसीपी सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'दरियादिली' से वह केंद्र में मंत्री बने हैं. खुद बीजेपी के पास बहुमत से ज्यादा सांसद हैं, लेकिन यह पीएम मोदी की उदारता है कि उन्हें मंत्री बनाया गया है. ललन सिंह के मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने पर कह दिया कि "ललन बाबू और मुझमें कोई फर्क नहीं है. दोनों एक ही हैं." एक सवाल पर कि 2019 वाली बात पर ही जेडीयू दो साल बाद कैसे तैयार हो गई? इसपर बचते-बचाते कहा कि इस बार हमने विचार किया था.


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