गया: बिहार के गया जिले में कभी बात-बात पर खून बहाने वाला माओवादी नक्सली नंदा सिंह अब गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दे रहा है. हत्या और अपहरण के मामले में हथियार समेत 2007 में पुलिस ने उसे बाराचट्टी से गिरफ्तार किया था. जेल में रहने के दौरान उसका हृदय परिवर्तन हुआ. दरअसल, जेल में बंद नंदा सिंह ने महात्मा गांधी और मदर टेरेसा की कीताबें पढ़ीं, जिससे उसका मन बदल गया. ऐसे में जेल से बाहर आने के बाद उसने बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया.
नक्सली संगठन का अहम सदस्य था नंदा
नंदा सिंह जिले के डोभी प्रखंड के डोभी पंचायत के डुमरी गांव और आस पास के कुछ गांवों में चंदा कर के गांव में ही एक पेड़ के नीचे गांव के सभी गरीब बच्चों को मुफ्त में रोजाना दो घंटे पढ़ाता है. उसे बच्चों को पढ़ाते देख, कोई उसके बारे में ये सोच भी नहीं सकता है कि कुछ सालों पहले तक वो नक्सली संगठन में सक्रीय रहा होगा.
बता दें कि मूल रूप से जहानाबाद निवासी नंदा सिंह नक्सलियों के दस्ते का महत्वपूर्ण सदस्य था. नंदा सिंह ने गरीबों को अधिकार दिलाने की भावना से माओवादियों की बंदूक थामी थी. उसे संगठन द्वारा गया जिले के बाराचट्टी और मोहनपुर इलाके में नक्सली घटनाओं को अंजाम देने की जिम्मेदारी दी गई थी. लेकिन साल 2007 में बाराचट्टी थाना की पुलिस ने उसे हथियार के साथ गिरफ्तार किया था. पुलिस को उसकी तलाश उस समय काफी दिनों से थी.
गरीबों का शिक्षित होना बहुत जरूरी
नंदा सिंह ने नक्सली जीवन के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पूछने के आग्रह करते हुए बताया कि वो जहानाबाद जिले के बोकनारी गांव का निवासी है. साल 2010 के पहले वो भाकपा माओवादी संगठन का सक्रीय सदस्य था. लेकिन जेल से छूटने के बाद उसका मन बदल गया और उसे लगा कि वो बंदूक की मदद से समाज के वंचित लोगों को उनका अधिकार नहीं दिला सकता. गरीबों को जब तक शिक्षित नहीं किया जायेगा, तक वे मजबूत नहीं होंगे. शिक्षित होना उन सभी का अधिकार है.
उसने बताया कि जेल में रहने के दौरान महात्मा गांधी और मदर टेरेसा की कीताबें पढ़कर उसे लगा कि उसे भी समाजसेवा करना चाहिए. इसलिए उसने ये काम शुरू कर दिया. नंदा ने बताया कि बतौर नक्सली उसने कई अपराध किए हैं, जिसे अब वो याद तक नहीं करना चाहता. वो उसके जिंदगी का काला अध्याय है. अब वो गरीब बच्चों को शिक्षित करना चाहता है, ताकि वो भी उसकी तरह राह ना भटक जाएं.
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