विपक्षी गठबंधन INDIA के संयोजक पद को लेकर जारी माथापच्ची के बीच नीतीश कुमार ने अपना पुराना बयान दोहराया है. पटना में पत्रकारों से बात करते हुए नीतीश कुमार ने कहा- न हमको कुछ बनना है, न हमको कुछ नहीं चाहिए. हमारा बस एक ही लक्ष्य है, सबको साथ लेकर चलने का. पिछले 2 दिन में नीतीश कुमार 2 बार यह बयान दे चुके हैं. 


हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब नीतीश किसी पद को लेकर इस तरह का बयान दे रहे हैं. वह पहले भी कुछ नहीं चाहिए बोलकर 2 बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं. पहली बार 1999 में और दूसरी बार 2020 में. 1999 में नीतीश 7 दिन के लिए ही मुख्यमंत्री बन पाए थे.


ऐसे में सियासी गलियारों में यह सवाल उठने लगा है कि आखिर INDIA संयोजक के प्रबल दावेदार नीतीश कुमार यह बयान क्यों दे रहे हैं?


INDIA संयोजक को लेकर नीतीश ने क्या कहा?
मुंबई की मीटिंग में इंडिया गठबंधन के संयोजक का फैसला हो जाएगा. इंडिया गठबंधन में एक ही संयोजक का पद होगा. क्या आप इंडिया गठबंधन के संयोजक हो सकते हैं? पत्रकारों के इस सवाल के जवाब में नीतीश ने कहा कि मेरी कोई व्यक्तिगत महत्वकांक्षा नहीं है. 


नीतीश ने आगे कहा कि हम तो बराबर यह बात कह रहे हैं. हम सबको एकजुट करना चाहते हैं, जो हो भी गया है. सब कोई मिलकर अब फैसला करेंगे और बैठक के बाद इसकी जानकारी सभी लोगों को दे दी जाएगी.


नीतीश ने आगे कहा कि बीजेपी को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है. नीतीश ने यह भी दावा किया कि आने वाले वक्त में कुछ और पार्टियां इंडिया गठबंधन में शामिल होंगी. 


जब नहीं चाहिए पद... बोलकर CM बन गए नीतीश


किस्सा- 1:  साल 2000 में विधानसभा चुनाव के नतीजे आए. आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सरकार बनाने से काफी दूर रह गई. एनडीए गठबंधन के पास भी बहुमत नहीं था. हालांकि, गठबंधन ने सरकार बनाने का दावा कर दिया.


पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान अपनी जीवनी में लिखते हैं- विधायकों की संख्या जुटाने के लिए अटल बिहारी और जॉर्ज साहेब ने मुझे मुख्यमंत्री बनकर बिहार जाने के लिए कहा. उन दोनों का मानना था कि मैं अगर मुख्यमंत्री बना तो आरजेडी-कांग्रेस के दलित विधायक साथ आएंगे.


पासवान आगे लिखते हैं- काफी सोच-विचार के बाद मैंने मुख्यमंत्री नहीं बनने का फैसला किया. इसके बाद नीतीश का नाम आगे बढ़ाया गया. नीतीश उस वक्त केंद्रीय कृषि मंत्री थे. ऑफर आते ही उन्होंने 'हमको नहीं चाहिए' ठुकरा दिया. 


पासवान के मुताबिक नीतीश को यह डर सता रहा था कि अगर बहुमत साबित नहीं कर पाए, तो बिहार में ही रहना पड़ेगा. ऐसे में केंद्र का मंत्री पद हाथ से चला जाएगा. अटल और जॉर्ज नीतीश के इस डर को भांप गए और उन्हें आश्वासन देकर बिहार भेजा.


नीतीश कुमार 3 मार्च 2000 को बिहार के मुख्यमंत्री बने. हालांकि, बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से 7 दिन बाद ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. मुख्यमंत्री कुर्सी छोड़ने के 2 महीने बाद नीतीश फिर केंद्र में मंत्री बन गए.


किस्सा- 2 : साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गई. इस चुनाव में आरजेडी को 75, बीजेपी को 74, जेडीयू को 43, कांग्रेस को 19 और अन्य को 32 सीटें मिली.


126 विधायकों के साथ एनडीए ने सरकार बनाने का दावा ठोक दिया, जिसमें बीजेपी के 74 और जेडीयू के 43 विधायक शामिल थे. 


एनडीए ने जैसे ही सरकार बनाने का दावा किया, नीतीश ने मुख्यमंत्री नहीं बनने की बात कही दी. रिपोर्ट के मुताबिक नीतीश कुमार ने BJP हाईकमान से कहा कि 'हमको अब कोई पद' नहीं चाहिए. आप अपनी पार्टी से मुख्यमंत्री बनवा लीजिए.


नीतीश के बयान सुनने के बाद बीजेपी में हड़कंप मच गया. हालांकि, प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप के बाद नीतीश मुख्यमंत्री बनने को राजी हो गए, लेकिन 2 साल के भीतर ही एनडीए से अलग हो गए. 


मुख्यमंत्री नहीं बनने की बात नीतीश कुमार कई बार सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी कह चुके हैं.


संयोजक बनने के 'गुण' फिर क्यों दोहरा रहे पुरानी बात?
जेडीयू के सलाहकार और नीतीश कुमार के करीबी केसी त्यागी ने कहा है कि नीतीश कुमार में संयोजक और प्रधानमंत्री बनने के सभी गुण हैं, लेकिन हम किसी पद के लिए दावेदार नहीं हैं. त्यागी के बयान के बाद सवाल उठ रहा है कि आखिर नीतीश और उनकी पार्टी के लोग यह क्यों बोल रहे हैं?


नीतीश कुमार अभी बिहार में महागठबंधन के नेता और मुख्यमंत्री हैं. चर्चा के मुताबिक आरजेडी चाहती है कि नीतीश संयोजक बनते ही मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़कर दिल्ली पर ध्यान दें. संयोजक के लिए गठबंधन में पहले से दिल्ली ऑफिस लेने की घोषणा हो चुकी है.


नीतीश कुमार संयोजक के साथ-साथ मुख्यमंत्री भी बने रहना चाहते हैं. इसको लेकर जेडीयू और आरजेडी में शह और मात का खेल भी शुरू हो गया है. हाल ही में लालू यादव ने इंडिया गठबंधन में 4 संयोजक बनाने की बात कही थी. 


उनके इस बयान को नीतीश पर दबाव बनाने के रूप में देखा गया. आरजेडी के भीतरखाने एक कथित समझौते की भी चर्चा है. इसके मुताबिक नीतीश कुमार दिल्ली शिफ्ट होते ही मुख्यमंत्री की कुर्सी तेजस्वी को सौंप देंगे.


जानकारों का कहना है कि नीतीश की राजनीति का यह पुराना स्टाइल रहा है. नीतीश जो चाहते हैं, वो दूसरों से बुलवाकर लेना चाहते हैं. अगर संयोजक का पद भारी मान-मनौव्वल के बाद उन्हें मिलता है, तो मुख्यमंत्री की कुर्सी 24 तक नहीं छोड़नी होगी.


नीतीश क्यों है संयोजक के प्रबल दावेदार?


- INDIA गठबंधन में 12 पार्टियों को साथ लाने का काम नीतीश कुमार ने किया है. इन पार्टियों में सपा, तृणमूल और आम आदमी पार्टी प्रमुख हैं. इन दलों का क्षेत्रीय स्तर पर मजबूत जनाधार है.


- - बिहार में नीतीश कुमार पिछले 25 सालों में 9 दलों के साथ गठबंधन कर सरकार चला चुके हैं. इनमें बीजेपी, कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी और आरजेडी, एलजेपी जैसे क्षेत्रीय पार्टी शामिल हैं. वर्तमान में कम सीट होने के बावजूद नीतीश गठबंधन के साथ मुख्यमंत्री बने हुए हैं. 


- बीजेपी के साथ रहने के बावजूद नीतीश कुमार की छवि सेक्युलर रही है. नीतीश अपने 3 सी (करप्शन, क्राइम और कम्युनलिज्म) से समझौता नहीं करने के संकल्प को बार-बार दोहराते रहे हैं. 


- नीतीश कुमार बिहार में करीब 16 साल से मुख्यमंत्री हैं और केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं, लेकिन अब तक उन पर व्यक्तिगत रूप से कोई भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है. इंडिया गठबंधन के बाकी नेता भ्रष्टाचार का आरोप झेल रहे हैं.