पटना: बिहार में नई आरक्षण व्यवस्था लागू हो गई है. इस व्यवस्था को संविधान अनुच्छेद 31 (ख) की 9वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए नीतीश सरकार (Nitish Government) ने केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है. बुधवार (22 नवंबर) को हुई कैबिनेट की बैठक में इस पर निर्णय लिया गया. नौवीं अनुसूची में शामिल हो जाने के बाद इसे कोर्ट में भी चैलेंज नहीं किया जा सकेगा. समझिए 9वीं अनुसूची और नीतीश सरकार के मास्टर प्लान का गुणा गणित क्या है. यह भी जानें कितना आसान या फिर मुश्किल है.
दरअसल, बिहार में 75% आरक्षण लागू हो चुका है. 50% से बढ़ाकर इसे 65% किया गया है. वहीं 10% आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दी गई है. यह आरक्षण कब तक बना रहेगा इसको लेकर कई तरह के संशय हैं. क्योंकि अगर कोई कोर्ट में इसे चुनौती देता है तो बिहार की नई आरक्षण नीति निरस्त हो सकती है. ऐसे में राज्य सरकार नहीं चाहती कि ऐसा हो.
कोर्ट भी नहीं कर सकेगा हस्तक्षेप
अब राज्य सरकार ने केंद्र के पाले में गेंद को डाल दिया है. अगर 9वीं अनुसूची में बिहार आरक्षण बिल शामिल हो जाता है तो फिर इसे कोई कोर्ट में चुनौती नहीं दे सकता है. कोर्ट भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. हालांकि अगर न्यायालय में चुनौती नहीं दी जाती है तो यह लागू रहेगा.
राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों में आरक्षण की सीमा बढ़ाई गई लेकिन मामला जब कोर्ट में गया तो वह निरस्त हो गया. सिर्फ तमिलनाडु में ही 59% आरक्षण है. इसे कोर्ट ने निरस्त नहीं किया है क्योंकि तमिलनाडु 9वीं अनुसूची में शामिल है.
नौवीं अनुसूची में शामिल करना आसान या मुश्किल?
सबसे पहले आसान और एक लाइन में कहा जाए तो यह आसान नहीं है. नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए कई प्रक्रियाएं होती हैं. तमिलनाडु में जवाहरलाल नेहरू के समय में ही नौंवी अनुसूची में शामिल किया गया था. उस वक्त भी काफी विरोध हुआ था. उस वक्त 9वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए भूमि सुधार सहित 13 कानून जोड़ने पड़ते थे, लेकिन अब इसमें बदलाव किया गया है. अब नौंवी अनुसूची में शामिल करने के लिए 284 कानून को जोड़ना पड़ेगा. संशोधन करने पड़ेंगे.
अगर बिहार को नौवीं अनुसूची में शामिल किया गया तो फिर कई राज इसके लिए आगे हो जाएंगे. बिहार सरकार ने इसकी पहल तो की है लेकिन कहीं न कहीं इसे चुनावी राजनीति के रूप में देखा जा रहा है.