पटना: नीतीश कुमार की सरकार ने एक बार फिर बिहार को ‘विशेष दर्जा’ देने की मांग की है. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग पिछले 10-12 साल से की जा रही है. बिहार के योजना और क्रियान्वयन मंत्री बिजेंद्र यादव ने अब नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार को एक पत्र लिखा है. इस पत्र में उन्होंने कहा है कि बिहार विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त करने की सभी अर्हताओं को पूरा करता है.


मंत्री ने नीति आयोग को इस मुद्दे को हाल में आई रिपोर्ट में बिहार के बहुआयामी गरीबी सूचकांक में देश के सबसे निचले पायदान पर होने के साथ जोड़कर देखने की मांग की है. वहीं दूसरी तरफ विपक्ष इस रिर्पोट का इस्तेमाल कर नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद ‘राज्य के तीव्र विकास’ के दावे को खारिज कर रहा है. 


बिहार में रही संसाधनों की कमी


अपने पत्र में मंत्री ने स्वीकार किया है कि बिहार प्रति व्यक्ति आय, जीवनयापन सुगमता, मानव विकास जैसे सूचकांक में राष्ट्रीय औसत से नीचे है. यादव ने इस दयनीय स्थिति के लिए बिहार के चारों ओर से भूमि सीमा से घिरा होने को जिम्मेदार ठहराया. जहां पर आबादी का घनत्व बहुत ज्यादा है और प्राकृतिक संसाधनों की कमी है. राज्य के आधे से अधिक जिले बाढ़ या सूखा से ग्रस्त रहते हैं.


बिहार कई लाभों से रहा वंचित


मंत्री ने शिकायत की है कि बिहार में उन चीजों की कमी रही है जो राज्य में औद्योगिक विकास और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा दे सकते थे. उन्होंने कहा है कि बिहार हरित क्रांति के लाभ से वंचित रहा. यादव ने दावा किया कि भौगोलिक परिस्थिति और इतिहास के बावजूद राज्य ने पिछले 15 साल में तेजी से विकास गति दर्ज की है. उन्होंने ये भी दावा किया कि राज्य में कृषि, ऊर्जा, सड़क और कुल मिलाकर शासन की गुणवत्ता में सुधार हुआ है. मंत्री ने कहा कि विशेष राज्य का दर्जा मिलने से कल्याणकारी योजनाओं के लिए देनदारी में कमी आएगी और सरकार निजी निवेशकों को आकर्षिक करने के लिए कर में छूट और वित्तीय सब्सिडी देने की स्थिति में होगी. जिससे विकास का इंजन और तेजी से चलेगा.  


साल 2000 में झारखंड को बिहार से अलग करने के बाद से ही राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग की जा रही है. इस विभाजन से बिहार के खनिज भंडार वाले इलाके झारखंड में चले गए थे.


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