क्या बिहार चुनाव के नतीजे नीतीश की पार्टी के लिए सूर्यास्त की शुरुआत हैं? आंकड़ों की ज़ुबानी समझिए
साल 1995 के संयुक्त बिहार की 324 सदस्यीय विधानसभा में समता पार्टी ने 310 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. लेकिन, नीतीश समेत समता पार्टी के सिर्फ 7 प्रत्याशी ही जीत पाए. इसके बाद नीतीश का सीएम बनने का सपना धरा का धरा रह गया था.
बिहार की ‘राजनीति के चाणक्य’ और ‘सुशासन बाबू’ दो ऐसे उपनाम हैं जिन्हें अक्सर नीतीश कुमार के लिए इस्तेमाल किया जाता है. नीतीश कुमार पहली बार बिहार की राजनीति में मार्च 1990 में उभरकर सामने आए जब उन्होंने जनता दल में अपने सीनियर लालू यादव को मुख्यमंत्री बनने में मदद की थी. उन दिनों में नीतीश ‘बड़े भाई’ कहकर लालू यादव को बुलाते थे और लालू ‘छोटे भाई’ से हर मुद्दे पर सलाह लेते थे.
ऐसा कहा जाता है कि लालू यादव जब भी कोई बड़ा राजनीति और प्रशासनिक फैसला लेते थे तो नीतीश कुमार और अपने कुछ अन्य सहयोगियों से जरूर सलाह मशविरा करते थे.
हालांकि, ऐसा प्राय: होता है बड़े राजनीतिक मुद्दों पर दोनों के बीच मतभिन्नता आ गई. इसमें नया मोड़ उस वक्त आया जब लालू यादव की इच्छा के खिलाफ नीतीश कुमार ने पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में आयोजित अपनी जाति की ‘कुर्मी चेतना महारैली’ में हिस्सा लिया. इस रैली को संबोधित करने के बाद नीतीश कुमार ने अपने रास्ता चुना लिया और ‘बड़ा भाई’ लालू की छत्रछाया से बाहर निकल आए.
1994 में नीतीश ने जॉर्ज के साथ बनाई समता पार्टी
साल 1994 में नीतीश और बड़े समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस ने समता पार्टी के नाम एक नई पार्टी बनी ली और खुद को मुख्यंत्री के चेहरे के तौर पर सामने रखा. साल 1995 के संयुक्त बिहार की 324 सदस्यीय विधानसभा में समता पार्टी ने 310 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. लेकिन, नीतीश समेत समता पार्टी के सिर्फ 7 प्रत्याशी ही चुनाव जीत पाए. इसके बाद नीतीश का सीएम बनने का सपना धरा का धरा रह गया. लालू यादव 1995 में दूसरी बार मुख्यमंत्री पद पर चुने गए.
2000 चुनाव: 34 सीट मिली, 7 दिन के लिए सीएम बने नीतीश
साल 2000 में उस वक्त नीतीश कुमार का सीएम बनने का सपना पूरा हुआ जब उन्हें एनडीए का नेता चुना गया. 3 मार्च को उन्होंने पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन सात दिन में ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. दरअसल, 324 सदस्यीय विधानसभा में एनडीए और उसके सहयोगी दलों के पास 151 विधायक थे जबकि लालू यादव के बाद 159 विधायक. दोनों ही गठबंधन 163 के बहुमत के आंकड़े से दूर थे. नीतीश ने बहुमत साबित करने से पहले ही 10 मार्च को इस्तीफा दे दिया.
2005 चुनाव: 88 सीट, नीतीश बने सीएम
नीतीश कुमार ने राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर दूसरी बार 24 मार्च 2005 को शपथ ली और भारतीय जनता पार्टी के साथ बिहार में अपनी सरकार का पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.
2010 चुनाव: 115 सीट, नीतीश बने सीएम
इसके बाद 2010 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू सहयोगी बीजेपी के साथ दोबारा सत्ता में आई. जून 2013 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ दूरियों के चलते नीतीश ने बीजेपी के साथ 17 साल से पुराने गठबंधन को तोड़ लिया. इसके साथ ही, नीतीश ने एनडीए से अलग होने का ऐलान कर दिया. 2014 के चुनाव में नीतीश कुमार अकेले दम पर लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन सिर्फ उन्हें 2 सीट मिली. 17 मई 2014 को नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव में हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए राज्यपाल को इस्तीफा सौंप दिया. नीतीश की सिफारिश पर जीतन राम मांझी को 9 महीने के छोटे कार्यकाल के लिए सीएम बनाया गया.
2015 चुनाव- 71 सीटों के साथ नीतीश बने सीएम
लेकिन, लालू की आरजेडी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाने के बाद नीतीश फिर 2015 के विधानसभा चुनाव में जीत गए और रिकॉर्ड पांचवीं बार सीएम पद की शपथ ली. हालांकि, उन्होंने जुलाई 2017 में उनके डिप्टी सीएम और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के खिलाफ सीबीआई के केस दर्ज करने पर सफाई न देने के चलते नीतीश ने फिर सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. इसके 2 दिन बाद वे पुराने सहयोगी बीजेपी की मदद से 6ठी बार सीएम पद की शपथ ली.
2020 चुनाव- 43 सीटों के साथ नीतीश कुमार होंगे सीएम!
अब 2020 में जीत के बाद वह अगर सीएम बनते हैं तो राज्य मे सातवीं पर सीएम पद की शपथ लेंगे. ऐसे में 2010 के बाद जिस तरह से जेडीयू की सीटों के आंकड़ों में हर चुनाव में कमी आ रही है, ऐसे में यह कहीं ये संकेत तो नहीं कि यह नीतीश की पार्टी के लिए बिहार में सूर्यास्त की शुरुआत है।
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