पटना: बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) ने सोमवार को कहा कि 1995 के विधानसभा चुनाव से लेकर 2014 के संसदीय चुनाव तक नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की पार्टी जब भी अकेले चुनाव लड़ी, उसे अपनी औकात का एहसास होता रहा. हर चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सफलता दर (स्ट्राइक रेट) जेडीयू से ज्यादा रही.


सुशील कुमार मोदी ने कहा कि नीतीश कुमार बार-बार बीजेपी की शरण में आते और पलटी मारते रहे, लेकिन अब उनके लिए हमारे दरवाजे बंद हो चुके हैं. नीतीश कुमार जिस अल्पसंख्यक वोट को हमारा वोट कह रहे हैं, वह कहां था, जब उन्हें विधानसभा की मात्र सात सीट और संसदीय चुनाव में केवल दो सीटें मिली थीं? 2000 के चुनाव में बीजेपी को 65 सीटें और जेडीयू को 35 सीटें मिली थीं, फिर भी हमने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था.


बीजेपी ने बिना शर्त समर्थन किया था


बीजेपी नेता ने कहा कि 2015 में जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाने और नौ महीने में उनकी कुर्सी छीनने के बाद हताश नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ आने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन पार्टी ने उन्हें दूर ही रखा. मात्र दो साल में लालू प्रसाद से मोहभंग के बाद जब नीतीश कुमार ने 2017 में अपनी सरकार बचाने के लिए फिर बीजेपी के द्वार खटखटाए, तब जंगलराज की वापसी टालने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने उनका बिना शर्त समर्थन किया था.


2020 के चुनाव में नीतीश कुमार की लोकप्रियता इतनी घट गई कि जेडीयू मात्र 44 सीटों पर सिमट गया. इसके लिए कोई दूसरा जिम्मेदार नहीं. जेडीयू की कम सीटों के बावजूद बीजेपी ने वर्ष 2000 की तरह नीतीश कुमार को फिर मुख्यमंत्री बनाया. अब वे सब-कुछ भुला देना चाहते हैं. आज लालू प्रसाद की जो हालत है, उसके लिए भी नीतीश कुमार जिम्मेदार हैं. उनके इशारे पर ही चारा घोटाला और बेनामी संपत्ति जैसे मामलों में शिवानंद तिवारी और ललन सिंह ने अदालत या जांच एजेंसियों को सबूत के कागजात उपलब्ध कराते रहे. आज भले ये तीनों लोग लालू प्रसाद के हितैषी बन रहे हों, लेकिन उन्हें सजा दिलाने में इन्हीं का हाथ था.


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