पटना: राजनीति में कब कौन किसका दोस्त हो जाए और कब किसका बैरी हो जाए कहा नहीं जा सकता. ऐसा ही बिहार की सियासत में एक बार फिर देखने को मिला जब पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (आरएलएसपी) का जनता दल (युनाइटेड) में विलय कर दिया. वैसे, कहा जा रहा है इस 'सियासी मिलन' की जरूरत दोनों दलों को थी. कुशवाहा के जेडीयू के नीतीश कुमार को आठ साल के बाद फिर से 'बड़ा भाई' कहने का मुख्य कारण पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव का परिणाम बताया जा रहा है. चुनाव में कुशवाहा ने महागठबंघन का साथ छोड़कर एक दूसरे गठबंधन के साथ चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश जरूर की लेकिन मतदाताओं का साथ नहीं मिला. कुशवाहा की पार्टी खाता तक नहीं खोल सकी.
इधर, चुनाव में जेडीयू का प्रदर्शन भी खराब रहा. राज्य की सत्ता पर काबिज जेडीयू चुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई थी. इसके बाद जेडीयू अपने कुनबे को बढ़ाने के लिए सामाजिक आधार मजबूत करने के प्रयास में जुट गई. जेडीयू ने अपने संगठन को धारदार बनाने के लिए आरसीपी सिंह को अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी. कुशवाहा के जेडीयू में आने के बाद विरोधियों की भृकुटी तो तनी ही है, कुशवाहा के जेडीयू को सबसे बड़ी पार्टी बनाने के बयान ने बीजेपी को भी सचेत कर दिया है. बीजेपी के नेता हालांकि इस मामले में खुलकर तो कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन बीजेपी के बढ़ते ग्राफ को कम करने के लिए नीतीश की इस चाल से बीजेपी के अंदर भी खलबली महसूस की जाने लगी है.
चुनाव के पहले तक जेडीयू बड़े भाई की भूमिका में थी
बीजेपी के प्रवक्ता निखिल आनंद कहते हैं कि कोई भी पार्टी अपने संगठन को मजबूत और बड़ा व पार्टी को एक नंबर की पार्टी बनने की चाहत रखती है, यही तो राजनीति है. उन्होंने कहा कि बीजेपी और जेडीयू मिलकर सरकार चला रहे हैं, लेकिन दोनों दल अपने संगठन को भी मजबूत करने में जुटे हैं. उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि कुशवाहा के सहयोगी दल के साथ आने के बाद एनडीए मजबूत होगी, जिसका लाभ आने वाले चुनाव में मिलेगा.
बिहार में कुर्मी जाति और कोइरी (कुशवाहा) जाति को लव-कुश के तौर पर जाना जाता है. कुशवाहा के अलग होने के बाद माना जाता था कि नीतीश के इस वोटबैंक में दरार आ गई है, जिसे नीतीश फिर से दुरूस्त करने में जुटे हैं. वैसे विरोधी इसे जातीय राजनीति भी बता रहे हैं. पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव परिणाम में बीजेपी को 74 सीटें मिली जबकि जेडीयू को 43 सीटों पर संतोष करना पड़ा था. इस चुनाव के पहले तक जेडीयू बड़े भाई की भूमिका में थी, लेकिन मौजूदा स्थिति में वह आरजेडी और बीजेपी के बाद तीसरे स्थान पर है.
जेडीयू को फिर से नंबर वन पार्टी बनाना है- उपेन्द्र कुशवाहा
मौजूदा राजनीतिक परिस्थतियों से सबक लेते हुए जेडीयू ने आरएलएसपी को अपने साथ मिलाया. जेडीयू के नेता भी मानते हैं कि इस कदम से जेडीयू का जनाधार बढ़ेगा. जेडीयू की प्रवक्ता सुहेली मेहता कहती हैं, "कुशवाहा जी की राज्य की राजनीति में अपनी अलग पहचान रही है. उनकी अपनी पकड़ है. उनके पार्टी में आने के बाद जेडीयू और मजबूत होगा. हमारे सहयोगी दल भी उनका स्वागत कर रहे हैं."
आरएलएसपी के जेडीयू में विलय के बाद उपेन्द्र कुशवाहा ने एलान किया कि जेडीयू को फिर से नंबर वन पार्टी बनाना है. लगे हाथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी उन्हें जेडीयू संसदीय दल का अध्यक्ष बनाने की घोषणा कर दी. वैसे, विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही दोनों दल की नजरें एक-दूसरे को ढूंढ रही थी, लेकिन अब देखने वाली बात है कि यह जरूरत कब तक कुशवाहा और नीतीश कुमार को एक साथ जोड़कर रख पाती है.
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