नालंदा: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह प्रखंड अंतर्गत प्राथमिक विद्यालय महवाचक में पिछले चार से पांच वर्षों से एक भी बच्चे ने नामांकन नहीं कराया है. बच्चों के नामांकन और पढ़ाई के लिए सरकार तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित कर बच्चों को जागरूक करती है. गांववालों का कहना है कि स्कूल में बेहतर शिक्षा और बेहतर सुविधा नहीं मिल रही है इसलिए बच्चे स्कूल जाने से कतराते हैं. नालंदा जिले में भी यह स्कूल काफी चर्चा का विषय बना हुआ है.
 
जिले के हरनौत प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय महवाचक सरकारी स्कूल में एक भी बच्चे का नामांकन नहीं हुआ है. बताया जा रहा है कि सरकार द्वारा मध्याह्न भोजन, साइकिल, स्कूल ड्रेस, छात्रवृत्ति सहित तमाम योजनाओं के माध्यम से बच्चों को विद्यालय में नामांकन कराने के लिए जागरूक किया जाता है लेकिन एक भी बच्चे ने नामांकन नहीं कराया है, फिलहाल इस स्कूल का बिल्डिंग काफी जर्जर है. 




ग्रामीण ने बताई बच्चों के दाखिला नहीं कराने की वजह


ग्रामीण संजीव कुमार सिन्हा ने बताया कि गांव में बच्चे हैं लेकिन स्कूल में व्यवस्था सही ढंग से नहीं है. पढ़ने के लिए बिल्डिंग भी सही ढंग से बना नहीं है. उन्होंने बताया कि अपने अपने बच्चे को व्यवस्था करके दूसरे जगह पढ़ने के लिए भेज रहे हैं. शिक्षा व्यवस्था सही नहीं है. उन्होंने साफ-साफ कहा कि एक टीचर हैं मगर व्यवस्था और फैसिलिटी की कमी है. सुविधाएं स्कूल में मिले तो बच्चे जरूर पढ़ेंगे.


वहीं ग्रामीण कमलेश प्रसाद ने आरोप लगाया कि यहां पढ़ाने आने वाले मास्टर साहब को खुद पढ़ना नहीं आता तो बच्चों को कैसे शिक्षा देंगे. स्कूल में पढ़ाई नहीं होने के कारण बच्चों को दूसरे स्कूल में भेजा जा रहा है.


मास्टर साहब अपने समय से आते और कुर्सी पर बैठ जाते हैं बच्चा सही ढंग से पढ़ाई नहीं करता फिर शिक्षक अपने समय से घर चले जाते हैं. उन्होंने यह बताया कि 5 साल पहले बच्चे यहां पढ़ने के लिए आते थे मगर शिक्षा नहीं मिलती थी और मध्याह्न भोजन ग्रहण करा कर बच्चे को मास्टर साहब घर भेज देते थे, वहीं कमलेश प्रसाद ने आरोप लगाया है कि सरकार द्वारा चलाई गई योजना का लाभ नहीं मिलता था और पहले मध्याह्न भोजन में काम करने वाले ने ही राशन को गायब कर दिया था. 


क्या कहते हैं स्कूल के प्रभारी एचएम संजय कुमार?


इस स्कूल के प्रभारी एचएम संजय कुमार बताते हैं कि एक ही समाज के लोग हैं. एचएम ने कहा कि जो भी बच्चे यहां हैं वो अपने माता पिता के साथ रहते हैं, इनका कहना है कि इस गांव के लोग आय से मजबूत हैं जिसके कारण बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए नहीं भेजते हैं.


एचएम ने बताया कि काफी कोशिश की गई. क्योंकि गांव में बच्चे मौजूद हैं पढ़ने के लिए फिर भी नहीं आते हैं. यहां के लोग ज्यादा प्राइवेट स्कूल में पढ़ना चाहते हैं, संजय कुमार बताते हैं कि हम यहां 2005 से पदस्थापित हैं, प्रभारी एचएम ने माना कि पिछले चार-पांच साल से एक भी बच्चे का नामांकन नहीं हुआ है और अभी इस स्कूल में एक भी बच्चे का नामांकन नहीं है जबकि प्रभारी एचएम स्वयं स्कूल का कामकाज देखते हैं. 


स्कूल की स्थापना वर्ष 1980 में की गई


स्कूल के प्रभारी एचएम बताते हैं कि स्कूल की स्थापना वर्ष 1980 में की गई थी, यहां नामांकित बच्चों की अधिकतम संख्या 50 से 60 रही है, इसमें 30-40 बच्चे स्कूल में उपस्थित रहते थे, वर्ष 2012-13 तक नामांकन ठीक-ठाक था, वर्ष 2018 आते-आते यह संख्या शून्य हो गई यही स्थिति अब तक यही बनी हुई है.


जिला शिक्षा पदाधिकारी केशव प्रसाद ने बताया कि इस स्कूल में नामांकन के लिए काफी प्रयास किया गया तरह तरह के कार्यक्रम चलाए गए. विशेष अभियान चलाकर घर-घर जाकर बच्चों को विद्यालय में नामांकन करने के लिए अभिभावकों को बताया गया मगर नामांकन नहीं कराया गया. अभी भी जागरूक किया जा रहा है ताकि बच्चे यहां शिक्षा ग्रहण कर सकें.


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