पटना: ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर बिहार के लोगों की भी सरकार पर नजरें टिकी हुई हैं. देश के पांच राज्य़ों में पहले से ही ये लागू है. बाकी कई राज्यों में भी इसे लागू करने की बात कही जा रही. हालांकि मुद्दे को लेकर नीतीश सरकार की ओर से अब तक कुछ नहीं कहा गया है. बजट सत्र के दौरान सदन में भी ये मुद्दा उठा था जिसमें बिहार सरकार के मंत्री ने कई बातें भी कहीं थी. लोगों को सूबे में इस योजना के लागू होने का बेसब्री से इंतजार है, लेकिन सरकार कुछ नहीं कह रही.


क्या है ओल्ड पेंशन स्कीम?


पुरानी पेंशन योजना यानी ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत सरकार साल 2004 से पहले कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद एक निश्चित पेंशन देती थी. यह पेंशन कर्मचारी के रिटायरमेंट के समय उनके वेतन पर आधारित होती थी. इस स्कीम में रिटायर हुए कर्मचारी की मौत के बाद उनके परिजनों को भी पेंशन का लाभ दिया जाता था. वहीं साल 2004 में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार आई थी, उसी समय नई पेंशन योजना लागू की गई, लेकिन लगभग सभी राज्य इसके विरोध में थे. न्यू पेंशन योजना में 22 दिसंबर 2003 के बाद जो भर्तियां हुई और उसमें जिसे भी नौकरी मिली वैसे कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन योजना का लाभ नहीं मिलेगा. 


साल 2004 से लगातार ओल्ड पेंशन योजना लागू करने की मांग चल रही है. न्यू पेंशन योजना की वजह से ही उस समय की कई राज्यों की सरकारें भी बदल गईं थी. अभी तक पांच राज्यों में फिर से पुरानी पेंशन की व्यवस्था चालू कर दी गई. इन में यूपीए शासित पांच राज्य हर एक आम आदमी पार्टी शासित पंजाब में लागू हुआ है. आम जनता पुरानी पेंशन व्यवस्था की मांग 2004 से ही लगातार कर रही. अब देखना है बिहार सरकार इस पर क्या कदम उठाती है?


बिहार में क्यों हो रही मांग?


आरजेडी ने अपने घोषणापत्र में शामिल किया था कि हमारी सरकार बनी तो ओल्ड पेंशन योजना लागू करेंगे. गठबंधन की सरकार है और सबकी नजरें इस बात पर टिकी हुई है कि सरकार पुरानी पेंशन योजना लागू करती है या नहीं. अभी तक सरकार ने ऐसी कोई घोषणा नहीं की है  और ना ही उनकी ऐसी कुछ मनसा दिखी है, लेकिन महागठबंधन की सरकार पर इस स्कीम को लागू करने का तो दवाब जरूर बनाया जा रहा है. एनडीए की सरकार के साथ जब नीतीश कुमार थे तब विधानसभा में सवाल उठे थे कि क्या सरकार ओल्ड पेंशन योजना चालू करेगी. इस बात पर तत्कालीन मंत्री बिजेंद्र यादव ने साफ कहा था कि सरकार इसके बारे में अभी नहीं सोच रही.


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