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पूर्व मंत्री ललित नारायण मिश्र की 47वीं पुण्यतिथि आज, जानें- क्यों मिथिलांचल के लिए माने जाते हैं भगवान?

ललित नारायण मिश्र 1973 से 1975 तक भारत सरकार के रेलमंत्री थे. वे पिछड़े बिहार को राष्ट्रीय मुख्यधारा के समकक्ष लाने के लिए सदा कटिबद्ध रहे. उन्होंने अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि मिथिलांचल की राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए पूरी तन्मयता से प्रयास किया.

सुपौल: आज मिथिला के सपूत पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की 47वीं पुण्यतिथि है. आज के ही दिन 1975 में उनका समस्तीपुर स्टेशन परिसर में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करने के दौरान हुए बम विस्फोट में निधन हो गया था. इस घटना से पूरा मिथिलांचल स्तब्ध रह गया था. उनके अंतिम दर्शन को लोग उमड़ पड़े थे. समस्तीपुर में उन्होंने अपने अंतिम संबोधन में कहा था कि मैं रहूं या न रहूं बिहार बढ़कर रहेगा. उनके यह कहने के कुछ देर बाद बम धमाका हुआ, जिसमें उनकी मौत हो गई.

दो साल राज्य सरकार कर रही अनदेखी

मिथिलांचल के सपूत ललित बाबू की पुण्यतिथि को राज्य सरकार राज्यकीय समारोह के रूप में मानाते आई है. इस दिन उनके पैतृक गांव बलुवा में उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है. लेकिन कुछ सालों से राज्य सरकार ललित बाबू की पुण्यतिथि को अनदेखा कर रही है. स्थानीय लोगों का आरोप है कि बीते दो सालों से राजकीय समारोह में कोई भी मंत्री नहीं पहुंचते हैं. एक वक्त था जब बिहार की राजनीतिक दिशा और दशा यहीं से तय होती थी.

कई मायनों में सबसे खास थे ललित बाबू

ललित नारायण मिश्र 1973 से 1975 तक भारत सरकार के रेलमंत्री थे. वे पिछड़े बिहार को राष्ट्रीय मुख्यधारा के समकक्ष लाने के लिए सदा कटिबद्ध रहे. उन्होंने अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि मिथिलांचल की राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए पूरी तन्मयता से प्रयास किया.

विदेश व्यापार मंत्री के रूप में उन्होंने बाढ़ नियंत्रण और कोसी योजना में पश्चिमी नहर के निर्माण के लिए नेपाल-भारत समझौता कराया. उन्होंने मिथिला चित्रकला को देश-विदेश में प्रचारित कर उसकी अलग पहचान बनाई. मिथिलांचल के विकास की कड़ी में ही ललित बाबू ने लखनऊ से असम तक लेटरल रोड की मंजूरी कराई थी, जो मुजफ्फरपुर और दरभंगा होते हुए फारबिसगंज तक की दूरी के लिए स्वीकृत हुई थी.

रेल मंत्री के रूप में मिथिलांचल के पिछड़े क्षेत्रों में झंझारपुर-लौकहा रेललाइन, भपटियाही से फारबिसगंज रेललाइन जैसी 36 रेल परियोजनाओं के सर्वेक्षण की स्वीकृति उनकी कार्य क्षमता, दूरदर्शिता और विकासशीलता के उदाहरण हैं. ललित बाबू को अपनी मातृभाषा मैथिली से खूब प्रेम था.

मैथिली की साहित्यिक संपन्नता और विशिष्टता को देखते हुए 1963-64 में ललित बाबू की पहल पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मैथिली को ''साहित्य अकादमी'' में भारतीय भाषाओं की सूची में सम्मिलित किया था.

मिथिला में विकास के पर्यायवाची बने ललित बाबू

मिथिला में खासकर कोसी का यह सुदूर इलाका आवागमन के मामले में काफी पिछड़ा था. सुपौल तक रेल तोआती थी लेकिन उससे आगे जाने में लोगों को काफी परेशानी होती थी. ललित बाबू जब रेलमंत्री बने तो रेलवे के मामले में उन्होंने इलाके का कायाकल्प कर दिया. सुपौल से आगे फारबिसगंज तक रेललाइन बिछा दी गई. लंबी दूरी की एक्सप्रेस गाड़ी सहित कई जोड़ी गाड़ियां दौड़ा दी गईं.

कोसी के प्रकोप से विभक्त मिथिला को रेल की सुविधाओं से जोड़ दिया गया. उसी वक्त जानकी एक्सप्रेस नाम से गाड़ी चलाई गई जो मिथिला के इस छोर से उस छोर तक जाती थी. मिथिलांचल के अन्य क्षेत्रों को भी रेल से जोड़ने की उनकी परियोजना थी, जिसका सर्वेक्षण कार्य भी पूरा कर लिया गया था.

गौरतलब है कि रेलवे ही नहीं अन्य क्षेत्रों में भी वे चाहते थे कि इलाके का विकास हो और वे हमेशा इसके लिए तत्पर रहे. अपने विलक्षण गुणों के कारण वे राजनीतिज्ञों के बीच भी काफी लोकप्रिय रहे. आज जब उनकी पुण्यतिथि है तो कृतज्ञ राज्य उनके पैतृक गांव जिले के बलुआ में राजकीय समारोह आयोजित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी.

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