Operation Khukri: 15 जुलाई को होगा ‘ऑपरेशन खुकरी’ पर लिखी पुस्तक का विमोचन, पढ़ें abp की विशेष रिपोर्ट
15 जुलाई को पटना में राज्यपाल फागु चौहान और पश्चिम पश्मिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनकड़ द्वारा विमोचन किया जाएगा. राजपाल पुनिया ने कहा कि यह जीत हिंदुस्तान के सिपाहियों के जुनून की वजह से हुई है.
पटनाः मेजर जनरल राजपाल पुनिया और उनकी बेटी दामिनी पुनिया द्वारा भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन खुकरी’ पर लिखी पुस्तक का 15 जुलाई को पटना में बिहार के राज्यपाल फागु चौहान और पश्चिम पश्मिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनकड़ द्वारा विमोचन किया जाएगा. इसके पहले एबीपी न्यूज ने राजपाल पुनिया और उनकी बेटी दामिनी पुनिया से खास बातचीत की.
राजपाल पुनिया ने कहा कि यह जीत हिंदुस्तान के सिपाहियों के जुनून की वजह से हुई है. हिंदुस्तान के सिपाही के लिए वर्दी उसका धर्म है और हथियार ही भगवान. आतंकवादी हमसे हमारा भगवान मांग रहे थे. वह चाह रहे थे कि हम हथियार डाल दें. उन्हें समझाने की मैंने बहुत कोशिश की. कहा कि हथियार डालना मुमकिन नहीं है, आप कोई भी रास्ता बोलें शांति के लिए तो हम तैयार हैं लेकिन हथियार डालने का रास्ता एक सिपाही को शायद कुबूल नहीं है.
बता दें कि यह ऑपरेशन पश्चिमी अफ्रीका के सियरा लिओन में वहां के विद्रोही संगठनों के कब्जे में 75 दिनों तक बंधक रहे 223 भारतीय सैनिकों को छुड़ाने के लिए चलाया गया था. इतने दिनों तक विदेश की धरती पर अति विषम परिस्थियों में रहे भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस और पराक्रम को मेजर जनरल पुनिया ने अपनी किताब में बेहतरीन तरीके से जीवंत किया है.
संघर्ष के थे 75 दिन, पता नहीं था अगली सुबह देखेंगे या नहीं
आगे जिक्र करते हुए जनरल पुनिया ने कहा कि हर दिन अपने आप में अलग था. वह 75 दिन संघर्ष के थे. हम एक घेरे के अंदर हैं और बाहर से आतंकवादियों ने घेर रखा है. यह भी मालूम नहीं था कि हम अगली सुबह देखेंगे या नहीं. 75 दिन निकालना अपने आप में एक चैलेंज था. जब आपके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है और जिंदा रहना भी जरूरी है, हो सकता है कल को लड़ना भी पड़े तो इसके लिए जिंदा रहना जरूरी है. यही वजह है कि जब आदमी ऐसे हालात से निकलता है तो घास क्या जिंदा रहने और लड़ने के लिए कुछ भी खा सकता है.
हम देश और तिरंगे की शान के लिए लड़ रहे थेः राजपाल पुनिया
महाराणा प्रताप का जिक्र करते हुए पुनिया ने कहा, “मैं महाराणा प्रताप की भूमि से ही जुड़ा हुआ हूं. इतना ही कहूंगा कि महाराणा प्रताप बहुत बड़े योद्धा थे. हम शायद उनके मुकाबले खुद को खड़ा नहीं कर सकते हैं लेकिन हम अपने देश और तिरंगे की शान के लिए लड़ रहे थे. कहा कि हमारे सीने पर तिरंगा लगता है और यह तब लगाया जाता है जब कोई आदमी शहीद होता है. कोई हिंदुस्तान का नाम रोशन करने के लिए विदेश की ड्यूटी पर जाता है तो उसको भी तिरंगे से नवाजा जाता है. हर दिन जब हम अपनी छाती पर लगे तिरंगे को महसूस करते हैं तो इससे ज्यादा कोई मोटिवेशन नहीं होगा.
पिता के साथ हुई घटना को लिखना मुश्किल थाः दामिनी पुनिया
राजपाल पुनिया की बेटी दामिनी पुनिया ने कहा कि ऑपरेशन 2000 में हुआ था तो मैंने अपने पापा से कई सवाल किए थे. एक घर में रहकर भी मुझे 2020 में इसकी जानकारी प्राप्त हुई कि मेरे पिता को बंधक बना लिया गया है. 10 दिन के लिए किताब में जब हमने अपने पिता के भाव लिखने शुरू किए जब उन्होंने बताया कि उन्हें कैसा महसूस होता था. उन्होंने बताया था कि क्या पता वह अपने बच्चों से मिल पाएंगे या नहीं. वह चीज एक बच्चे के लिए लिखना बहुत ही मुश्किल था. मुझे ऐसा लगता है कि वर्दी में ही मोटिवेशन है. वर्दी से ही इनको मोटिवेशन मिलता है इसी से ताकत भी मिलती है. यह कहानी पर्दे पर भी आनी चाहिए क्योंकि भारत में किताब पढ़ने वाले लोग हैं पर जितना एक्सपोजर फिल्म दे सकती है वो और किसी चीज से नहीं मिल सकती
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