सुपौल: बिहार सरकार ने किसानों की धान अधिप्राप्ति के लिए सभी पैक्सों को आदेश दे दिया है. गुरुवार को मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित समीक्षा बैठक के दौरान सीएम नीतीश ने कहा था कि कृषि विभाग की साइट पर जो निबंधित किसान हैं उन्हें ऑटोमैटिकली निबंधित मानकर अधिप्राप्ति के लिए योग्य समझा जाए. सहकारिता विभाग को किसानों का अलग से निबंधन करने की जरूरत नहीं है. अधिक से अधिक किसान अपनी फसल की अधिप्राप्ति करा सकें और हमलोग अधिक से अधिक उपज की खरीद कर सकें.


हालांकि, बिहार के सुपौल में धान खरीद में सरकारी तंत्र जितना एक्टिव है, उतना ही जनता के वोट से चुने गये पैक्स सुस्त हैं. लिहाजा जिले में पिछले साल तो धान खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं ही हो सका था, इस बार भी धान खरीद लक्ष्य का पूरा होने पर संशय बरकार है.


कोसी के कछार पर बसे सुपौल जिले के जीविकोपार्जन का मुख्य स्रोत खेती ही है. मिथिलांचल में कोसी को धान का कटोरा भी कहा जाता है क्योंकि यहां प्रचूर मात्रा में पानी उपलब्ध है जो धान की फसल का पोषण करता है. यहां के किसान खेती कर लाखों टन धान तो उपजा लेते हैं, लेकिन इसे बेचने के लिए दर-दर की ठोकरें खाते फिरते हैं.


ऐसा नहीं है कि सरकार ने धान खरीदने के लिए व्यवस्था नहीं की है. सुपौल के 181 पंचायतों में धान खरीद को लेकर पैक्स को निर्देश दिया गया है. सरकार द्वारा एमएसपी भी तय कर दिया गया है, लेकिन यहां के पैक्स धान खरीदने से पीछे हट रहे हैं. लिहाजा, जिले के किसान सरकार द्वारा तय एमएससी 1868 रुपये की जगह बाजार में कम दामों में धान बेचने को मजबूर हैं.


बता दें कि सरकार द्वारा धान खरीद को लेकर 15 नवंबर से 30 मार्च का समय तय किया गया है और इसी बीच किसानों को गेहूं की बुआई भी करनी है. ऐसे में पैक्सों की लेट लतीफी के कारण उनको नुकसान झेलना पड़ रहा है. हालांकि, कुछ ऐसे भी किसान हैं जो सरकारी तंत्र की ओर टक टकी लगाये बैठे हैं.


सरकार ने सुपौल में धान खरीद का लक्ष्य 1.50 लाख मिट्रीक टन तय किया है. 15 नवंबर से धान खरीद की शुरुआत होने के बाबजूद 10 दिसंबर तक 1001 मीट्रिक टन की खरीद हुई है. जबकि डीएम ने 2000 मीट्रिक टन रोजाना धान खरीदने का लक्ष्य बनाया है. फिलहाल जिले के 181 पैक्स में 13 क्रियाशील हुए हैं. ऐसे में पैक्सों का सुस्त रवैया देखकर लगता नहीं कि इस बार भी धान अधिप्राप्ति का टारगेट पूरा हो पाएगा.


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