पटनाः पंचायत सीजन-2 (Panchayat Season 2) का हर कैरेक्टर अपने आप में दमदार है. इसी में से एक कैरेक्टर है विधायक चंद्र किशोर सिंह यानी पंकज झा का जिसने इस सीरीज को एक अलग रंग दिया है. पंकज झा बिहार के सहरसा के रहने वाले हैं. शुरुआती समय में तो उनके गांव के लोगों को भी पता नहीं था कि वो एक्टिंग करते हैं. एक फिल्म आई उसके बाद गांव के लोगों को पता चला. पढ़िए पंचायत सीजन-2 में बेहतरीन अभिनय से लोगों के दिलों पर राज करने वाले पंकज झा से एबीपी न्यूज की बातचीत के कुछ अंश.


पंचायत सीजन-2 में कैसे मौका मिला?


मैं तो नोन (known) एक्टर हूं, इसलिए पंचायत-2 वालों को भी तो मौका मिला कि उन्होंने मुझे कास्ट किया. कास्टिंग बे वालों ने मुझे बोला. इस तरह का मैं तो बहुत काम कर चुका हूं. गुलाल, ब्लैक फ्राइडे, चमेली वगैरा... 30-40 फिल्में कर चुका हूं. इंडस्ट्री के जो बड़े डायरेक्टर हैं उनके साथ काम कर चुका हूं. मेरे लिए ऐसा नहीं है कि कोई ब्रेक मिला है. मेरे लिए सिर्फ ये है कि इस वेब सीरीज को काफी लोगों ने देखा है और मेरा कैरेक्टर लोगों को बहुत पसंद आया है.



क्या आपने स्क्रिप्ट पढ़ी थी या फिर पहला सीजन देखा था?


मैंने पहला सीजन नहीं देखा था. मैं टीवी सीरियल, वेब सीरीज वगैरा कुछ भी नहीं देखता हूं. मैं तो अपना काम भी नहीं देखता हूं... काम करता हूं और आ जाता हूं. मेरी खुद की भी दुनिया है. इसका फायदा है कि मैं जितना खाली होकर सेट पर जाता हूं मैं उतना ज्यादा अपने पात्र को जी पाता हूं.


बिहार के सहरसा से निकलकर आप मुंबई तक पहुंचे, यह सफर कैसे तय किया और क्या-क्या परेशानियां आईं?


ट्रेन से ही मैं मुंबई आया था. टिकट लेते वक्त काफी लाइन लगी थी. हालांकि रिजर्वेशन हो गया तो ठीक से ही आ गया था मुंबई. 2000 में मुंबई आया था.


 


आपका रोल अहम है, इसकी तैयारी कैसे की?


मैं एनएसडी दिल्ली में था पांच साल. वहीं पर मुझे सबसे पहला काम मीरा नायर का मिला था. इसके बाद मैं मुंबई आ गया. मुझे कभी स्ट्रगल नहीं करना पड़ा. ये वर्ड मैं अपने दोस्तों को भी बोलता हूं कि जिस काम को तुमने चुना है... जो काम तुम कर रहे हो... वो खुद कर रहे हो तो उस काम में स्ट्रगल नहीं होना चाहिए. उस काम को इंजॉय करना चाहिए. खुशी-खुशी ऑडिशन देना चाहिए. खुशी-खुशी वेट करना चाहिए काम का. ये जो पूरा ट्रेंड है स्ट्रगल करने का... स्ट्रगल सिर्फ काम के लिए नहीं होता है... स्ट्रगल आदमी को अपने परिवार में करना होता है. अपने मां-बाप के साथ होता है. दोस्तों के साथ होता है. स्ट्रगल बाहर नहीं है. सारा स्ट्रगल खुद के साथ ही है. स्ट्रगल के अलग-अलग लेयर्स हैं. मैं कोई स्पेशल नहीं हूं. कोई आदमी छोटा काम कर रहा है या कुछ कर रहा है तो वह महत्वपूर्ण है.



एक्टिंग की शुरुआत कैसे की? घर वालों ने मना किया?


मैं पैदा ही एक्टर लिया था. मैं शरारती बच्चा रहा हूं. जो गलत लगता है वो मैं बोलता हूं. मैं भीड़ का हिस्सा नहीं हूं. एक ट्रेनिंग के बाद जो एक्टर के पास विटनेस आता है वो मैं लेकर आया हूं. किसी संस्थान या किसी इंस्टीट्यूट से मुझे ट्रेनिंग नहीं मिली है. घर वालों को कुछ नहीं पता था... मैं अपने एरिया का इकलौता व्यक्ति हूं जो पेंटिंग बनाता था. पटना आर्ट कॉलेज में एडमिशन लेकर मैंने पांच साल बीएफए किया है. मैं एक पेंटर हूं. लोग पेंटर भी कहते हैं. जब ये सब मैं करता गया तो धीरे-धीरे लोगों को पता चलता गया. मेरे शहर के लोगों को पता भी नहीं था... जब मेरी फिल्म लगी थी चमेली करीना वाली तब पता चला.



पहली फिल्म कौन सी थी?


मैं नासिर भाई को बहुत लाइक करता था... तो सबसे पहला काम मुझे नासिर भाई के साथ ही मिला था. फिल्म का नाम था 'शैडो इन द डार्कनेस'. वेब सीरीज मैंने ज्यादा नहीं की... फिल्में ही की हैं. वेब सीरीज मिर्जापुर में एक प्रिंसिपल का कैरेक्टर था वो मैंने किया था. मेरी एक वेब सीरीज आ रही है 27 मई को 'निर्मल पाठक की घर वापसी' इसमें भी बहुत अच्छा काम है.



पटना में भी कई रंगमंच हैं... लोग वर्षों से नाटक कर रहे हैं, मुंबई जाने के लिए या उन्हें कैसे मौका मिलेगा?


मेरा अनुभव... मेरा बोला हुआ मेरे लिए ही काम आएगा. कई बार वो काम भी नहीं आता है. हर आदमी को खुद से देखना पड़ेगा. सबसे पहले तो उसे एक्टर होना पड़ेगा. ये जो फील्ड है वो प्रोफेशनल फील्ड है. आपको अभिनय आना चाहिए तब ही आपको मुंबई में काम मिलेगा. आपको कोई काम दे रहा है.. कोई मौका दे रहा तो ऑलरेडी आपको एक्टर तो होना ही चाहिए. छोटे-छोटे शहरों से जिनको पता भी नहीं है एक्टिंग का, वो सिर्फ देख लेते हैं और मुंबई आ जाते हैं. भटका जाते हैं... मैंने बहुत ऐसे लड़के-लड़कियों को देखा है जिन्हें कोई बताने वाला नहीं है. एक्टिंग के नाम पर सब दुकान खोलकर बैठे हुए हैं. इस तरह का गोरखधंधा चल रहा है.


(इसके साथ ही एक्टर पंकज झा से बातचीत का अंश यहीं समाप्त हो जाता है)