पटना: बिहार में जब भी बाहुबलियों की बात होती है तो एक-दो नहीं बल्कि कई नाम सामने आते हैं. इन्हीं में से एक नाम जाप सुप्रीमो पप्पू यादव का है. आज लोगों के लिए मसीहा हैं तो कभी बाहुबली हुआ करते थे. ऐसे-ऐसे काम किए कि जेल तक जाना पड़ा. 17 साल तक उन्होंने जेल में समय बिताया है. आज बिहार के बाहुबली की कहानी में बात पप्पू यादव की करेंगे.
पप्पू यादव का जन्म मधेपुरा जिले में 1967 में हुआ था. 1990 में निर्दलीय विधायक चुनकर आए थे. वह दौर पप्पू यादव के लिए बहुत खास था. पप्पू यादव का भय सीमांचल में इस कदर था कि लोग उनका नाम लेने से भी डरते थे. 17 साल जेल में बिताने वाले पप्पू यादव की पहचान बाहुबली नेता के रूप में हुई. उन पर हत्या, किडनैपिंग, मारपीट, बूथ कैपचरिंग, आर्म्स एक्ट जैसे कई मामले अलग-अलग थानों में दर्ज हुए हैं लेकिन पप्पू यादव को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता अजीत सरकार की हत्या के मामले में 17 साल जेल में रहना पड़ा था.
घटना 1998 की है. माकपा नेता अजीत सरकार, उनके एक साथी असफुल्ला खान और ड्राइवर पर अंधाधुंध फायरिंग की गई थी. इस घटना में तीनों की हत्या हुई थी. इसमें पप्पू यादव का नाम आया था. उस वक्त पप्पू यादव पूर्णिया लोकसभा सीट से सांसद हुआ करते थे. इस घटना में नाम आने के बाद उनकी राजनीतिक करियर पर विराम लगा और वे जेल चले गए. इस मामले में सीबीआई की विशेष अदालत में केस चल चलता रहा. लंबे समय तक वे जेल में रहे. उम्र कैद की सजा भी उन्हें मिली थी. 2008 में उन पर हत्या का आरोप साबित हो गया. सीबीआई की विशेष अदालत में पप्पू यादव राजन तिवारी और अनिल यादव को उम्र कैद की सजा सुनाई. सजा मिलते हैं उनकी सदस्यता रद्द हो गई थी. उन्हें तिहाड़ जेल भेजा गया था. कई सालों तक वे जेल में ही बंद रहे.
हाई कोर्ट से मिली थी राहत
पप्पू यादव ने फैसले के खिलाफ पटना हाई कोर्ट में अपील की थी. इसके बाद 2013 में जाकर कोर्ट से उन्हें राहत मिली. सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया था. जेल से लौटने के बाद पप्पू यादव अपनी छवि बनाने में लग गए. आज लोगों के मसीहा बन गए हैं. कोई घटना होती है तो आवाज उठाते हैं. पीड़ितों से जाकर मिलते हैं. 2019 में जब पटना में तेज बारिश से बाढ़ आई थी और राजधानी जलमग्न हुआ तो पप्पू यादव ने नाव के सहारे लोगों को खाना-पानी दिया था.
कैसे दिया था लालू का साथ?
पप्पू यादव एक जमींदार परिवार से आते हैं. उनके पास जमीन और संपत्ति की कमी नहीं थी. कॉलेज में जाने के बाद पप्पू यादव की पहचान दबंग के रूप में हो रही थी. उनकी दबंगई के चर्चे सीमांचल के कई जिलों में थे. बात 1980 के बाद की है. उसी वक्त लालू प्रसाद यादव भी अपनी राजनीतिक करियर चमकाने में लगे हुए थे. उस वक्त कॉलेज से निकलने के बाद पप्पू यादव ने लालू यादव का साथ दिया था और पप्पू यादव की दबंगई लालू यादव के काम आई थी. उस वक्त पप्पू यादव पर लालू यादव के लिए बूथ कैपचरिंग या फिर मत पेटियों को चुरा लेने का आरोप लगता था.
पप्पू यादव और आनंद मोहन में अक्सर होती थी वर्चस्व की लड़ाई
विधायक बनने के बाद पप्पू यादव का लक्ष्य लोकसभा था. यही कारण है कि उनकी दबंगई खत्म नहीं हुई और अगड़ी-पिछड़ी की लड़ाई करते रहे. आनंद मोहन सिंह मुख्य विरोधी थे. दोनों के बीच कई बार वर्चस्व की लड़ाई हुई. 1990 में कितनी जान भी गई थी. जानकार बताते हैं कि सहरसा के पामा में पप्पू यादव के समर्थक और आनंद मोहन के समर्थकों के बीच जमकर गोलियां चली थीं. कई लोगों की जानें गईं.
दूसरी घटना पूर्णिया के भांगड़ा में हुई थी. यहां भी कई लोग मारे गए थे. हालांकि उस वक्त दोनों वर्चस्व की लड़ाई लड़ते थे. पप्पू यादव पिछड़ा की राजनीति और यादव समाज को एकजुट करने के लिए वोट की राजनीति कर रहे थे तो आनंद मोहन अगड़ी जाति के नेता के रूप में उभर रहे थे.
एक बार विधानसभा और 5 बार लोकसभा गए पप्पू यादव
1990 में विधायक बनने के बाद पांच बार लोकसभा के सदस्य रहे. पहली बार 1991 में पूर्णिया से निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत हासिल की. इसके बाद 1996 और 1999 में भी वह पूर्णिया से ही निर्दलीय सांसद बने. 2004 में लालू प्रसाद यादव ने उन्हें मधेपुरा से आरजेडी का टिकट दिया और वह चौथी बार जीते. 2008 में उन पर हत्या का आरोप साबित हो गया तो उनकी सदस्यता रद्द हो गई. 2013 में पटना हाई कोर्ट से राहत मिलने के बाद पप्पू यादव फिर पांचवी बार 2014 में आरजेडी के टिकट से मधेपुरा से चुनाव लड़े और पांचवीं बार जीते.
2015 में तेजस्वी यादव की बयानबाजी के बाद वह खफा हो गए और आरजेडी से दूरी बनाकर अपनी 'जन अधिकार पार्टी' बनाई. 2019 में उन्होंने अपनी पार्टी से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. 2013 में जेल से आने के बाद से ही पप्पू यादव का रुख बदल चुका था.
पप्पू यादव से पूछा गया कि 23 साल की उम्र में कैसे विधायक बन गए तो उन्होंने कहा कि यह बात सही है कि वे पहली बार 1990 में विधायक बने. उनका जन्म 24 दिसंबर 1967 को हुआ था. उस वक्त एफिडेविट पर नामांकन हो जाता था. हो सकता है सर्टिफिकेट पर उम्र 25 साल बता रहा हो.
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