जाम का झाम! बिहार का कोईलवर है टेंशन वाला रूट, 25-30KM तक लगी ट्रकों की लंबी कतार, क्या है वजह?
Bihar Severe Road Jaam: पटना से आरा और छपरा जाने के लिए एनएच-84 का इस्तेमाल होता है. इस रूट पर ट्रकों का महाजाम देखने को मिलेगा. पढ़िए पूरी रिपोर्ट.
Bihar Koilwar Jaam: ऐसे तो सड़कों पर वाहनों का जाम लगना आम बात है, लेकिन बिहार में एक ऐसा रूट है जहां गाड़ियां 24-24 घंटे हिलते-डुलते आगे बढ़ती हैं. सुनकर यकीन नहीं होगा लेकिन बिहार का कोईलवर पुल वाला रूट किसी टेंशन से कम नहीं है. पटना से आरा और छपरा जाने के लिए एनएच-84 का इस्तेमाल होता है. इस रूट पर लगभग 25-30 किलोमीटर तक ट्रकों की हर दिन लंबी कतारें देखने को मिलती हैं. मंगलवार (10 दिसंबर) को एबीपी न्यूज़ की टीम जाम के कारण को तलाशे के लिए पहुंची. पढ़िए रिपोर्ट.
कोईलवर पुल से शुरू हुआ यह जाम सिर्फ हजारों लोगों की दिनचर्या को प्रभावित नहीं कर रहा, बल्कि इसका असर सीधे देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है. यह सड़क बिहार के उत्तर और दक्षिण को जोड़ती है और हर दिन लगभग 25 लाख लोगों की आवाजाही का माध्यम है. इसके अलावा, बिहार और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में निर्माण कार्यों के लिए बालू की आपूर्ति भी इसी मार्ग से होती है.
अमरकंटक से निकलने वाली सोन नदी का बालू इस क्षेत्र का एक प्रमुख व्यापार है. भोजपुर जिले के विभिन्न घाटों से ट्रकों में बालू लादकर इसे बिहार और उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में पहुंचाया जाता है. बालू लदे इन ट्रकों के लिए सरकारी चालान 24 घंटे का होता है, लेकिन जाम में फंसे रहने के कारण ट्रक चालक देरी से पहुंचते हैं. ऐसे में फाइन और नुकसान का खतरा बढ़ जाता है.
क्या है जाम का मुख्य कारण?
पटना से आरा और छपरा को जोड़ने वाला स्टेट हाईवे जगह-जगह टूटा है. इस मार्ग पर गड्ढों की वजह से ट्रैफिक धीमा रहता है. इसके अलावा कई स्थानों पर सड़क निर्माण कार्य भी जारी है. भारी वाहनों की आवाजाही के कारण सुबह 6 बजे से पहले ही पटना से निकलने वाले ट्रक रुक जाते हैं. कोईलवर पुल पर वाहनों का दबाव अधिक होता है, जिससे जाम की समस्या गंभीर हो जाती है.
जाम का आर्थिक असर भी पड़ रहा है. जाम के कारण बालू से लदे ट्रकों को समय पर गंतव्य तक पहुंचने में देरी हो रही है. 24 मीट्रिक टन बालू की कीमत लगभग ₹10,000 से ₹12,000 तक होती है. अब अगर पटना से सीतामढ़ी जैसे 140 किलोमीटर दूर स्थान तक एक ट्रक को 7 घंटे में पहुंचना चाहिए, लेकिन जाम के कारण इसमें चार दिन लगते हैं. इससे कंस्ट्रक्शन साइट्स पर काम रुक जाता है, जिससे हजारों मजदूरों और प्रोजेक्ट्स पर असर पड़ता है.
अतिरिक्त फाइन और चालान की समस्या
24 घंटे के चालान में देरी होने पर ड्राइवर को जिला ट्रांसपोर्ट ऑफिस में फाइन भरना पड़ता है. बारिश के दौरान बालू का वजन बढ़ने पर ओवरलोड का भी जुर्माना लगाया जाता है. ड्राइवर के मुताबिक, एक ट्रक पर फाइन का खर्च एक लाख तक पहुंच जाता है.
इस पूरे मामले में जिला माइनिंग अधिकारी राजेश कुमार का कहना है कि छपरा में रोड बन रहा है. कुछ हिस्से का काम आरा में भी हो रहा है. इसके कारण आगे जाकर गाड़ियां एक लेन में हो जाती हैं. खाली गाड़ियां और लोडेड एक ही लेन में हो जाती हैं. इससे गाड़ियां धीरे चलती हैं.
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