पटना: राजधानी पटना के आशियाना नगर की रहने वाली 16 वर्षीय यशिता का भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) में चयन हुआ है. वह गोवा में एक नवंबर से शुरू होने वाले विमेंस अंडर-19 टी 20 चैलेंजर ट्रॉफी में खेलेंगी. साल 2016 में रिलीज हुई आमिर खान की फिल्म दंगल जैसी ही यशिता की कहानी है. यशिता पटना के एक निजी स्कूल की दसवीं क्लास की छात्रा है. यशिता को बचपन से ही क्रिकेट में रुचि थी. उसके पिता ही कोच हैं जिन्होंने अपनी बेटी को ट्रेनिंग देकर इस मुकाम तक पहुंचाया. यशिता ने एबीपी से खास बातचीत में अपनी इस सफलता के पीछे की कहानी बताई है.


पिता ने दी बेटी को ट्रेनिंग


यशिता के पटना से बीसीसीआई तक के सफर की कहानी जानकर आप दंग रह जाएंगे. यशिता को क्रिकेट में शिक्षा देने वाला कोई पेशेवर कोच नहीं है बल्कि उसके पिता शैलेंद्र सिंह हैं. शैलेंद्र सिंह ने अपनी बेटी को स्कूली शिक्षा दिलवाने के साथ-साथ क्रिकेट की प्रैक्टिस पर भी जोर दी. यही कारण है कि यशिता ने लगभग 50 से ज्यादा बोर्ड मैचों में अच्छा प्रदर्शन किया. इस साल जुलाई में हुई सीरीज में यशिता ने छह मैचें खेलीं जिसमें सभी मे बढ़िया खेलते हुए 222 रन बनाए.


नागालैंड के खिलाफ रहा बेहतर प्रदर्शन  


मैच में नागालैंड के खिलाफ बेहतर प्रदर्शन करते हुए 138 रन बनाए. इसके बाद यशिता टॉप फाइव में आई और बीसीसीआई में चयन हो गया. यशिता बताती हैं कि गोवा में होने वाले चैलेंजर ट्रॉफी में चार टीमें खेलेंगी. इंडिया ए, इंडिया बी,  इंडिया सी और इंडिया डी. इसमें  इंडिया डी से यशिता खेलेंगी. इस टूर्नामेंट में दो टीमों का सलेक्शन होगा जिसमें इंडिया ए और इंडिया बी शामिल रहेंगी. अगर यशिता का प्रदर्शन अच्छा रहा तो इंडिया ए में वह सलेक्ट होंगी. श्रीलंका और वेस्टइंडीज के साथ होने वाले मैच में भाग लेंगी . 


हर समय मिला पिता का साथ


यशिता सिंह बताती हैं कि क्रिकेट में मेरी रुचि बचपन से थी. अपार्टमेंट में भैया लोग के साथ क्रिकेट खेलती थी, लेकिन मैं टेनिस ज्यादा खेलती थी. पिता जी मेरे खेल पर हमेशा ध्यान देते थे और वे क्रिकेट खेलने के लिए प्रेरित करते थे. उन्होंने 2019 में पटना के मोइनुल हक स्टेडियम में होने वाले टूर्नामेंट में भाग लेने को कहा. मैंने भाग लिया और मेरा प्रदर्शन अच्छा रहा. 


आगे यशिता ने कहा कि इसके बाद खेल में मेरी रूचि और बढ़ गई. मैं क्रिकेट पर विशेष ध्यान देने लगी. दो साल से मैं चैलेंजर ट्रॉफी में आने के लिए काफी परिश्रम कर रही हूं. इससे पहले भी मैं टॉप टेन में आ गई थी, लेकिन मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ. इसके बाद बीसीसीआई में चयन होने के लिए अपना एक लक्ष्य निर्धारित करके काफी परिश्रम की. इस बार मुझे सफलता मिली है. उसने अपने पूरे सफलता का श्रेय पिता शैलेंद्र सिंह को दिया. 


कोरोना में व्यवसाय ठप हुआ तो पिता ने की एकेडमी से शुरुआत


यशिता के पिता शैलेंद्र सिंह पटना यूनिवर्सिटी के छात्र रहे हैं. वह यूनिवर्सिटी में क्रिकेट चैंपियन रहे थे. हालांकि उन्हें कभी बोर्ड में खेलने का मौका नहीं मिला. उनका सपना था कि जो मैं नहीं कर पाया वह उनके बच्चे करें. वह अपनी बेटी को क्रिकेट में बीसीसीआई तक ले गए. जीवन यापन के लिए उन्होंने टाइल्स मार्बल का व्यवसाय शुरू किया, लेकिन कोरोना में व्यवसाय पूरी तरह ठप हो गया. इसके बाद शैलेंद्र सिंह अपने मित्र के एक एकेडमी में क्रिकेट के कोच का काम करने लगे. बच्चों को क्रिकेट की शिक्षा देने लगे. अभी वे लगभग 30 बच्चों को क्रिकेट की शिक्षा देते हैं. इसमें यशिता भी प्रैक्टिस करने आती है.