पटना: राजधानी के पटना विश्वविद्यालय (Patna University) में आज फिर एक बार छात्र संघ चुनाव की गूंज है. सुबह से ही वोटिंग (PU Election 2022) चल रही. पीयू को राजनीति का नर्सरी स्कूल कहा जाता है. बिहार के कई प्रसिद्ध नेताओं ने वहीं से राजनीति की शुरुआत की है. पहली बार छात्रसंघ चुनाव जीतने के बाद तमाम राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू किया जो आगे चलकर बिहार के मुख्यमंत्री भी और कई बड़े नेता बन गए.


हम बात कर रहे बिहार के चहेते नेता आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के बारे में. पीयू में उस वक्त चुनाव का दौर ही कुछ और था. इतिहास के पन्नों में काफी रोचक कहानियां हैं जो पीयू के इलेक्शन को काफी दिलचस्प बनाती है. लालू यादव ने पहला छात्र संघ चुनाव हारा था जिसके बाद उन्हें जनरल सेक्रेटरी के पद से हटा दिया गया था. इस लेख में हम पुराने दिनों की कुछ जानकारियां देंगे कि पीयू में चुनाव कैसे शुरू हुए और पहले की तुलना में अब क्या बदलाव है.


छात्रसंघ का पहला चुनाव


मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पटना विश्वविद्यालय में छात्रसंघ की स्थापना साल 1956 में हुई थी. साल 1968 तक चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से कराए जाते थे. 100 पर एक काउंसलर चुने जाते थे और काउंसलर लोग मिलकर प्रेसिडेंट यूनियन का चुनाव करते थे. साल 1969 में लालू प्रसाद यादव, रामजतन सिन्हा और आदित्य पांडेय ने सीधी तरह से यानी कि वोटिंग के जरिए चुनाव कराने की मांग की. इसके बाद लालू पहले ही चुनाव में जनरल सेक्रेटरी के रूप में चुने गए. रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 1971 में पहली बार मतदान के जरिए छात्र संघ का चुनाव हुआ. इसमें अध्यक्ष पद के लिए लालू और रामजतन सिन्हा आमने सामने थे. हालांकि चुनाव में रामजतन सिन्हा की जीत हुई और लालू हार गए. लालू के हारने के बाद जनरल सेक्रेटरी के रूप में पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह निर्वाचित हुए. इसमें सुशील मोदी भी कैबिनेट मेंबर बने.


पहली बार पहली चुनाव में लालू को मात देने वाले रामजतन सिन्हा


रामजतन सिन्हा पूर्व एमएलसी हैं और वह प्रोफेसर भी रहे हैं. उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से हुए पीयू इलेक्शन का पहला छात्र संघ चुनाव जीता था. लालू प्रसाद यादव को हराया था. हालांकि वह आज भी लालू यादव के लिए चिंता करते हैं. जब लालू बीमार हुए थे तो उन्होंने उस दौर में हुए चुनाव को लेकर कई यादें ताजा की थी और लालू के जल्दी ठीक होने की कामना की थी.


दूसरे चुनाव में लालू बने थे विजेता


साल 1973 में फिर जब पटना विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव हुए तो लालू यादव ने चुनाव अपने नाम किया था. उस वक्त लालू के लिए सबसे बड़ी चुनौती एबीवीपी संगठन थी, लेकिन लालू तब तक विश्वविद्यालय में इतने प्रसिद्ध हो चुके थे कि लोग उनको काफी पसंद करते थे. 1973 में लालू ने एबीवीपी से गठबंधन करके चुनाव लड़ा था. उन्होंने पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह को हराया था. लालू प्रसाद यादव अध्यक्ष बने. सुशील मोदी महासचिव बने और रविशंकर प्रसाद सहायक महासचिव बने. लालू यादव यहां से और भी ज्यादा प्रसिद्ध हो गए. जेपी आंदोलन के दौरान लालू पूरी तरह से नेता के रूप में उभर कर आए. वहीं इमरजेंसी के चलते बीच में कुछ साल चुनाव नहीं हुआ. साल 1977 में चुनाव हुए तो एबीवीपी के उम्मीदवार अश्विनी कुमार चौबे प्रेसिडेंट बने. इसके बाद कुछ साल और सिलसिला चलता गया, लेकिन फिर चुनाव में हिंसक गति होने लगी जिसके चलते 1984 से 28 साल तक चुनाव को स्थगित कर दिया गया. फिर 2012 में चुनाव होना शुरू हुआ.


लालू यादव का सफर


साल 1973 के बाद 1977 में छात्र संघर्ष समिति से केवल लालू यादव को टिकट मिला. इसके बाद से ही उन्होंने पिछड़ों के अधिकार के लिए लड़ना शुरू किया और सिखाया. लालू यादव लोगों के लिए मसीहा के रूप में उभर कर आए. अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में भी उन्होंने पिछड़ों और गरीबों का भला किया और उनके लिए मसीहा बन गए. लालू यादव से बिहार की जनता काफी स्नेह रखती है. खास कर पिछड़े और गरीब उनके लिए हमेशा दुआ करते हैं. उन्होंने उनके हक के लिए हमेशा आवाज उठाई है. लालू यादव अकेले ऐसे नेता हैं जो पीयू में प्रत्यक्ष रूप से चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री बन कर लोगों के सामने आए. इसके अलावा तत्काल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, सुशील मोदी जैसे अन्य बिहार के नेता भी इसका हिस्सा रह चुके हैं.


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