गया: बिहार के गया जिले के फल्गु नदी के किनारे पिंडदान का सिलसिला जारी है. सुबह से ही हो रही मूसलाधार बारिश के बीच पिंडदानी और तीर्थयात्री पिंडदान करते नजर आ रहे हैं. बारिश में भींग कर वे अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए पिंडदान, तर्पण आदि कर्मकांडों को पूरा कर रहे हैं. बता दें कि इस साल छह अक्टूबर तक चलने वाले पितृपक्ष के दौरान अब तक देश-विदेश से तीन लाख से अधिक तीर्थयात्री व पिंडदानी गया पहुंच चुके हैं.
लोगों को परेशानी का करना पड़ रहा सामना
सभी विष्णुपद मंदिर, देवघाट, सीता कुंड, अन्तःसलिला फल्गु नदी, रामशिला, प्रेतशिला सहित विभिन्न पिंडवेदियों पर अपने पितरों की आत्मशांति और मोक्ष दिलाने के लिए कर्मकांडों को संपादित कर रहे हैं. गुरुवार को शहर में सुबह से ही लगातार बारिश हो रही है, जिससे पिंडदानियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इसके बाबजूद लोगों की श्रद्धा में कोई कमी नहीं दिख रही.
फल्गु नदी के किनारे बसे सीताकुंड पिंडवेदी पर सैकड़ों तीर्थयात्री बारिश में भींग कर पिंडदान करते दिखे. धर्मिक ग्रन्थों में ऐसी मान्यता है कि सीताकुंड में भगवान श्रीराम के पिता राजा दशरथ का पिंडदान सीता जी ने किया था. इसके पीछे ये कहानी है कि भगवान श्री राम और सीता पिंडदान करने गया पहुंचे थे.
बालू का पिंड बनाकर करते हैं दान
भगवान श्री राम पिंडदान सामग्री खरीदने बाजार गए थे, तभी राजा दशरथ प्रकट हुए कहा कि हमें मोक्ष के लिए पिंड दे दो. चूंकि उस वक्त पिंडदान की सामग्री उपलब्ध नहीं थी, तो सीता ने बालू का ही पिंड बनाकर राजा दशरथ का पिंडदान कर दिया था. इसके बाद से सीताकुंड में बालू से पिंडदान की परंपरा चली आ रही है. यहां लोग बालू का पिंड बनाकर अपने नामित पितरों को पिंडदान करते है. ऐसा कहा जाता है कि फल्गु नदी में मात्र पैर के अंगूठा के सटने से ही पितरों को मोक्ष मिल जाता है.
आखिर पितृपक्ष में ही क्यों लगती है भीड़?
पितृपक्ष की अवधि को महालया योग कहते हैं. कहा जाता है कि यमराज भी इन दिनों पितरों की आत्मा को मुक्त देते हैं. इस महालया में सभी पितर गया आते है और अपने वंशजों का इंतजार पिंडदान के लिए करते हैं. पुराणों के अनुसार मृत्यु के बाद पिंडदान करना आत्मा की मोक्ष प्राप्ति का सहज और सरल मार्ग है. गरुड़ पुराण में वर्णित है कि यहां पिंडदान करने से पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि 15 दिनों के पितृपक्ष में लाखों सनातन हिन्दू धर्मावलंबी यहां आकर अपने पितरों का कर्मकांड, पिंडदान व तर्पण आदि करते हैं.
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