पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीते दिनों देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था. जातीय जनगणना करने के मुद्दे पर बातचीत के लिए समय मांगने के बाबत पत्र लिखा गया था, जो चार अगस्त को उनके कार्यालय में पहुंच भी गया है. लेकिन उनकी ओर से अब तक पत्र का जवाब नहीं दिया गया है. इस बात की जानकारी खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम के खत्म होने के बाद पत्रकारों से बातचीत के दौरान दी.
केंद्र को लेना है अंतिम फैसला
पत्रकारों ने जब उनसे पूछा कि पीएमओ की ओर से पत्र का जवाब आया या नहीं तो उन्होंने कहा कि कहां अभी तक कोई जवाब आया है. लेकिन हमने पत्र लिख दिया है. पत्र पहुंच भी गया है. अब जब उन्हें मिलना होगा मिलेंगे. ये फैसला तो उन पर ही है. हमसे मिलकर विपक्ष ने ये इच्छा जाहिर की थी, तो हमने पत्र लिख दिया. अब जनगणना कराना या नहीं कराना, ये तो केंद्र का फैसला है.
मुख्यमंत्री ने कहा, " हम तो चाहते हैं कि जाति आधारित जनगणना हो जाए. यह हमारी पुरानी मांग है. एक बार इस तरह की जनगणना हो जाएगी तो पता चल जाएगा कि किस जाति के लोगों की देश में क्या स्थिति है. यह सब के हित के लिए हैं. इसे राजनीतिक नहीं सामाजिक नजरिए से देखने की जरूरत है. लेकिन इस बारे में अंतिम निर्णय केंद्र सरकार को लेना है.
क्या अपने खर्च पर कराएंगे जनगणना?
वहीं, बिहार में अपने खर्च पर जातीय जनगणना कराने के सवाल पर उन्होंने कहा कि इस संबंध में भी हमने जानकारी इकट्ठा की है. कर्नाटक समेत अन्य जगहों पर ऐसा हुआ है. लेकिन ये तो हमारा आंतरिक विषय है. एक बार पहले बात हो जाए. राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना हो जाए तो बहुत अच्छी बात है. अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर हम विचार करेंगे और जो भी बात होगी सबको पता चल ही जाएगा.
ध्यान देने वाली बात है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शुरू से ही जातीय जनगणना कराने के पक्षधर रहे हैं. बिहार विधानमंडल में दो बार इस बाबत सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा जा चुका है. लेकिन केंद्र की ओर से इस तरफ कोई पहल नहीं की गई है. इधर, बिहार में विपक्ष के नेता जातीय जनगणना कराने की मांग पर अड़े हुए हैं. इस मांग को लेकर उन्होंने मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी.
विपक्ष ने मुख्यमंत्री को ये सुझाव दिया था कि वो जाति आधारित जनगणना कराने के मुद्दे पर बात करें. एक डेलिगेशन, जिसमें सभी दल के नेता शामिल हो के साथ वो प्रधानमंत्री से मिलने का वक्त मांगे. वहीं, अगर ऐसा नहीं होता है तो कर्नाटक की तरह बिहार में सरकार अपने खर्च से जातीय जनगणना कराएं. ताकि सभी के लिए योजनाएं बनाने में आसानी हो.
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