पटना:बिहार के चुनावी अखाड़े में उतरने से पहले तमाम राजनीतिक दलों में दलित कार्ड खेलने की होड़ मची हैं,अब बात एनडीए की हो या महागठबंधन की.जेडीयू ने चुनावी कार्ड खेलते हुए अशोक चौधरी को प्रदेश की कमान सौंप दी. तो भला महागठबंधन कैसे पीछे रहती और बसपा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष भरत बिंद को नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने राजद में शपथ दिला दी.इस दलित कार्ड के खेल में अपनी बाजी आजमाने में किसी दल ने कोई कसर नही छोड़ी और महागठबंधन से अलग हुए रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने हाथी की सवारी कर ली यानी बसपा से हाथ मिला ली. तो पप्पू यादव भीमराव अंबेडकर के पौत्र से दोस्ती गांठने के पहले चंद्रशेखर रावण से हाथ मिला चुके हैं और अब कांग्रेस ने अपने दलित चेहरे उदित राज को उतारा मैदान में.
दलित कार्ड पर जेडीयू का बयान
इस दलित प्रेम पर सबकी दलील है.जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन का कहना है कि नीतीश कुमार ने जातिय बंधनों को तोड़ा है.और तमाम दलित कल्याण कारी योजनाओं की शुरुआत की है जहां तक पार्टी में दलित के जिम्मेदारी की बात है तो पार्टी ने एक सवर्ण और एक दलित को प्रतिनिधित्व सौंपा है.
आरजेडी का दलित प्रेम
दलित की राजनीति का दावा करने वाली पार्टी राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी की माने तो चुनाव के समय दलित कार्ड खेलने से कुछ नही होगा लालू जी हमेशा दलित के साथ थे.जहां तक जेडीयू की बात है तो पहले तो दलित नेता श्याम रजक को उखाड़ फेंका और अब दलित कार्ड खेल रहे हैं बाकि अन्य पार्टियों के बारे में बस यही टिप्पणी दी की ये सारे तो पलटू राम हैं.अब चुनावी रंग में दलितों को चेहरा बनाने की कोशिश में जुटी तमाम राजनीतिक पार्टियों के लिए ये दलित कार्ड तुरुप का पत्ता साबित होता है या नही ये तो चुनाव परिणाम के बाद हीं पता चलेगा.
बिहार विधान सभा चुनाव में तुरुप का पत्ता-दलित कार्ड खेलने में जुटे राजनीतिक दल
रजनी शर्मा
Updated at:
03 Oct 2020 03:45 PM (IST)
राजनीतिक दलों में दलित कार्ड खेलने की मची होड़ एक तरफ एनडीए तो दूसरी तरफ महागठबंधन दलितों को भुनाने में जुटी तो इनसे खफा दलों ने भी नही छोड़ी कोई कसर
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