पटना: ज्योतिषीय शब्दकोष में एक शब्द होता है नहीं धारना(यानि सूट नहीं करना) तो कुछ ऐसे ही शब्द सूट करता है,  बिहार की राजनीति में बिहार के पुलिस निदेशकों पर. इसके ज्वलंत उदाहरण हैं, डीजीपी पद से इस्तीफा देने वाले गुप्तेश्वर पांडे. जो बक्सर विधान सभा सीट की आस में अपना पद भी गंवा दिए. इनके राजनीतिक तालमेल की बात करें तो ये दूसरी बार चूके हैं, राजनीति में अपनी पहचान बनाने में.


पहले भी कोशिश किए लेकिन नही मिली कामयाबी


बिहार पुलिस के डीजी पद से वोलेन्ट्री रिटायर्मेंट लेने वाले गुप्तेश्वर पांडे 1987 बैच के आईपीएस अफसर हैं.  पुलिस में रहते हुए इन्हें पॉलिटिक्स ज्यादा भाता था और शायद इसलिए 11 साल पहले यानि 2009 में आईजी पद से वोलेन्ट्री रिटायर्मेंट लेकर बक्सर से लोकसभा चुनाव लड़ने की चाहत दिखाई थी. लेकिन उस वक्त भी टिकट नही मिली, पर नौकरी वापस जरुर मिल गई. इस बार भी जब उन्होने इस्तीफा दिया तो चर्चे का बाजार गर्म रहा कि मुख्यमंत्री ने खुद पार्टी में सदस्यता दिलाई है तो शायद बक्सर की सीट इन्हे मिल जाए, लेकिन सीट बंटवारे में यह सीट भाजपा के कोटे में चली गई. फिर इस बार चर्चा तेज हुई कि गुप्तेश्वर पांडे भाजपा जा सकते हैं लेकिन उम्मीदवारों के नाम के ऐलान के साथ हीं तमाम अटकलों पर विराम लग गया. और पांडे जी ने फेसबुक पर अपने कार्यकर्ताओं से चुनाव नही लड़ पाने की माफी मांग ली.


बिहार की राजनीति में उतरे और भी डीजीपी


बिहार की राजनीति बिहार के पुलिस महानिदेशकों को हमेशा से हीं लुभाता रहा है. इसकी गवाही इस बात से है कि गुप्तेश्वर पांडे से पहले तीन और डीजीपी राजनीति में किस्मत आजमाने आए लेकिन उनके हाथ भी निराशा हीं लगी. पूर्व डीजी डी पी ओझा सीपीआई एमएल की टिकट पर बेगूसराय से 2004 में किस्मत आजमाए, लेकिन उन्हे राजनीति सुट नही किया और वो हार गए. उनके बाद डीजी आशीष सिन्हा 2014 में राजद से जुड़ने के बाद नालंदा से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े  लेकिन ये भी हार गए. पूर्व डीजी आरआर प्रसाद बिहार की राजनीति पंचायत चुनाव में ही शिकस्त खा गए. इसके बाद इन्होंने राजनीति से किनारा कर लिया.
इस बार पांडे जी की उम्मीदवारी पर लटकी तलवार ने इस बात को प्रणाणित कर दिया कि बिहार पुलिस के अधिकारियों को पॉलिटिक्स सुट नही करता.