पटना: सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) बिहार की राजनीति में सबसे लंबे समय से मुख्यमंत्री रहने वाले नेता हैं. 17 सालों से बिहार के मुख्यमंत्री हैं. नीतीश कुमार की छत्रछाया में कई लोग बड़े नेता भी बन गए लेकिन जो भी नीतीश के करीब होते हैं जेडीयू (JDU) से नाराज हो जाते हैं. इसमें कई नाम शामिल हैं. प्रशांत किशोर, (Prashant Kishor) आरसीपी सिंह (RCP Singh) और अब कुशवाहा (Upendra Kushwaha) का नाम जुड़ गया है. ये सभी नेता नीतीश कुमार से प्रभावित होकर जेडीयू में शामिल हुए थे लेकिन बाद में जेडीयू का ये खुलकर विरोध करने लगे. नीतीश कुमार की छवि शायद पार्टी की कार्यशैली से अलग है इस वजह से ऐसे नेता पार्टी के साथ समन्वय नहीं बैठा पाते हैं और अपना रास्ता अलग कर लेते हैं.
जेडीयू में नंबर दो पर थे प्रशांत किशोर
चुनावी रणनीतिकार रणनीतिकार प्रशांत किशोर को चार साल पहले जनता दल यूनाइटेड का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था. उस समय वे पार्टी से जुड़े फैसलों में नीतीश के बाद नंबर दो पर माने जाते थे. 2019 के आम चुनाव की रणनीति को लेकर जेडयू में उनकी खास एंट्री मानी गई थी लेकिन बाद में कई मुद्दों पर उनकी राय पार्टी से अलग-अलग होने लगी. सीएए एनआरसी के मुद्दे पर वो बीजेपी सरकार के विरोध में थे लेकिन पार्टी इसके समर्थन में वोटिंग की थी. अन्य कई मुद्दों पर प्रशांत किशोर की राय पार्टी से अलग होने पर जेडीयू ने उन्हें 2020 में पार्टी से निकाल दिया.
आरसीपी सिंह बने थे जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष
आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाते थे वह उत्तर प्रदेश काडर के पूर्व आईएएस अधिकारी रह चुके हैं. आरसीपी सिंह 2005 से 2010 तक नीतीश कुमार के प्रधान सचिव रह चुके हैं. बाद में नीतीश कुमार ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया. हालांकि प्रशांत किशोर की जेडीयू में आने के बाद आरसीपी सिंह थोंड़े हाशिए पर चले गए थे लेकिन प्रशांत किशोर के जाने के बाद नीतीश कुमार ने उन पर फिर भरोसा जताया और फिर से राज्यसभा के लिए नामित किया. इस क्रम में 2020 में एक ऐसा भी समय आया जब आरसीपी सिंह को नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिए फिर बाद में आरसीपी सिंह केंद्रीय मंत्री भी बन गए और ललन सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए.
आरसीपी सिंह की नीतीश कुमार से दूरी बढ़ने लगी
इसके बाद से ही आरसीपी सिंह की नीतीश कुमार से दूरी बढ़ने लगी. ललन सिंह भी केंद्रीय मंत्री बनना चाहते थे लेकिन आरसीपी सिंह केंद्रीय मंत्री बने. बाद में आरसीपी सिंह पर आरोप लगते रहे कि वो खुद से केंद्रीय मंत्री के लिए नाम बीजेपी को भेजे थे. इसके साथ ही नरेंद्र मोदी के करीब जाने के भी आरोप आरसीपी सिंह पर लगे थे. इन आरोपों के बीच जेडीयू ने उन्हें राज्यसभा फिर से नहीं भेजा और आरसीपी सिंह को पद से इस्तीफा देना पड़ा था. हालांकि आरसीपी सिंह ने भी पार्टी कमजोर करने की बात कह रहे थे. 2022 में नीतीश कुमार से बात नहीं बनने के बाद उन्होंने जेडीयू छोड़ने का फैसला कर लिया.
उपेंद्र कुशवाहा ने रालोसपा का विलय जेडीयू में किया था
अभी बिहार की राजनीति में उपेंद्र कुशवाहा काफी चर्चा में हैं. सोमवार को उन्होंने जेडीयू छोड़ने की घोषणा की. इसके साथ ही जेडीयू में उपेंद्र कुशवाहा को लेकर कलह भी अंत हो गया. कुशवाहा ने 14 मार्च 2021 को अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का विलय जेडीयू में किया था. इस विलय के दौरान कुशवाहा का राजनीतिक वजूद काफी कमजोर था. उनकी पार्टी के लोग आरजेडी में चले गए थे और अकेले रह गए कुशवाहा जेडीयू में आ गए थे. नीतीश ने राज्यपाल कोटे से कुशवाहा को एमएलसी बनाकर उनकी मदद की थी. नीतीश ने उन्हें जेडीयू के संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाया.
उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू में अनदेखी से नहीं थे खुश
महागठबंधन की सरकार में उपेंद्र कुशवाहा को कोई मंत्रायल नहीं मिला. इसके अलावा ललन सिंह को दोबारा अध्यक्ष बना दिया गया इस अनदेखी से वो नाराज चल रहे थे. जेडीयू में किसी शीर्ष पद की तलाश में थे. महत्वाकांक्षा पूरी नहीं होने पर उपेंद्र कुशवाहा का जेडीयू से मोहभंग होने लगा था. इसके साथ ही आरजेडी के साथ गठबंधन से वो खुश नहीं थे. इससे वो लगातार पार्टी कमजोर होने की बात कहते थे लेकिन सीएम नीतीश कुमार नजर अंदाज कर रहे थे जिससे वो जेडीयू में बागी बन गए और आज जेडीयू से रास्ता अपना अलग कर लिए.
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