पटना: जन सुराज के सूत्रधार और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) अभी मुजफ्फरपुर में पदयात्रा कर रहे हैं. सोमवार को उन्होंने भारत (BHARAT) और इंडिया (INDIA) नाम पर अपनी राय रखी. उन्होंने कहा कि अगर भारत के राष्ट्रपति लिखा गया है तो 'इंडिया' वालों को इतनी आपत्ति क्यों है? ये जो चर्चा चल रही है और जो संविधान में लिखा हुआ है उसमें दोनों शब्दों का प्रयोग है. इंडिया और भारत दोनों है. आज के जो लोग शासन में हैं वो अगर इंडिया के जगह भारत शब्द का प्रयोग करना चाहते हैं तो इसमें जो भी चुनकर आया है, उसका विशेष अधिकार है. लोगों ने जिनको सरकार में बैठाया है वही लोगों का जनमत है तो सरकार को निर्णय लेने दीजिए.
लोग अगर इससे इत्तेफाक नहीं रखेंगे तो इसीलिए तो 5 वर्ष में चुनाव की व्यवस्था है. सरकार जनता की इच्छा आशा के अनुरूप अगर काम नहीं कर रही है तो 5 वर्ष में सरकार को इसमें खामियाजा भुगतना पड़ेगा.
'जनता से ऊपर देश में कोई नहीं है'
प्रशांत किशोर ने कहा कि मान लीजिए किसी जमाने में हम लोग मुंबई को बंबई, कभी मद्रास कहते थे आज चेन्नई कहा जा रहा है. अब ये सही है या गलत है इसमें हर व्यक्ति का अपना नजरिया हो सकता है. लोकतंत्र में अल्टीमेटली जो जनता है उसके बिल को ही आप अंतिम बिल मानते हैं. देश की जनता उस बात से ध्वनि मत से वोट दे रही है, लोगों को वापस जीता रही है तो आपको हमको अच्छा लगे या नहीं आपको ये स्वीकार करना पड़ेगा, क्योंकि जनता से ऊपर देश में कोई नहीं है.
जनता का बिल ही अंतिम बिल है- प्रशांत किशोर
आगे चुनावी रणनीतिकार ने कहा कि कोई विद्वान, कोई इंटेलेक्चुअल कोई ज्ञाता नहीं कह सकता कि हम देश में ऊपर हैं. जनता का बिल ही अंतिम बिल है उन्होंने जिनको चुना है उनसे ये अपेक्षा की जाती है कि जनता की आशा और अपेक्षा के अनुरूप आप काम करें. आप काम करें या न करें. आपको हर पांच साल के बाद जनता के पास ये व्यवस्था है कि आपको पास होने के लिए आना पड़ेगा. सरकार अगर जनमत के भावना के अनुरूप काम नहीं करेगी तो जनता अपने मत के द्वारा उसको जाहिर करेगी.
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