Dr Rajendra Prasad Jayanti: सिवान का वो घर जहां रहते थे देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जानिए आज कैसी है स्थिति
देश के पहले राष्ट्रपति और देशरत्न की उपाधि से नवाजे जाने वाले बाबू राजेंद्र प्रसाद का जन्म सन 1884 में सिवान के जीरादेई में हुआ था. यह गांव जिला मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर दूरी है.
सिवानः देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) की आज 137वीं जयंती है. इसको लेकर उनके पैतृक आवास सिवान के जीरादेई में पूरे जोर-शोर से तैयारी चल रही है. आज प्रशासनिक अधिकारी और कई बड़े नेता प्रतिमा पर माल्यार्पण करने पहुंचेंगे. हालांकि देश की आजादी के बाद आज तक उनके पैतृक गांव जीरादेई में आज भी विकास की लोग राह देख रहे हैं.
सिवान जिला मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जीरादेई. देश के पहले राष्ट्रपति और देशरत्न की उपाधि से नवाजे जाने वाले बाबू राजेंद्र प्रसाद का जन्म सन 1884 में इसी जीरादेई की धरती पर हुआ था. विद्वता और सादगी की प्रतिमूर्ति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने तीन बार देश का राष्ट्रपति बन देश की कमान संभाली थी लेकिन आजादी के 75 साल गुजर जाने के बाद भी इस गांव की दशा और दिशा में कोई भी खास परिवर्तन नहीं हुआ है.
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जीरादेई रेलवे स्टेशन पर यात्रियों के बैठने के लिए बने दो चार बेंच के अलावा कोई सुविधा नहीं है. ना तो यहां बड़ी गाड़ियों (ट्रेन) का ठहराव है और ना शौचालय और प्रतीक्षालय. गांव में देशरत्न की धर्मपत्नी राजवंशी देवी के नाम पर एक राजकीय औषधालय की स्थापना हुई थी, लेकिन आज सरकार की उपेक्षा का शिकार होकर वह खंडहर में तब्दील हो गया है. हालांकि देशरत्न की गरिमा और उनके धरोहर को बरकरार रखने की नीयत से केंद्र सरकार द्वारा जीरादेई स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पैतृक मकान को पुरातत्व विभाग को सुपुर्द कर दिया गया है. इस कारण देशरत्न का पैतृक मकान उनकी स्मृति शेष के रूप में बच गया है.
सांसद ने लिया था गांव को गोद, फिर भी विकास नहीं
बता दें राज्य सरकार ने इसे पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा की थी, लेकिन इस दिशा में भी अब तक कोई कवायद शुरू नहीं हुई है. बावजूद इसके रोजाना यहां पर्यटक आते रहते हैं. प्रधानमंत्री ग्राम विकास योजना के तहत सिवान के तत्कालीन बीजेपी सांसद ओमप्रकाश यादव ने जीरादेई को गोद लिया था लेकिन सांसद के गोद लिए जाने पर भी जीरादेई का विकास नहीं हो पाया. लोगों की मानें तो अधिकारी और नेताओं को सिर्फ जयंती पर जीरादेई और डॉ. राजेंद्र प्रसाद की याद आती है और माल्यार्पण कर सभी वादों को भूल जाते हैं.
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