आरक्षण को लेकर RJD विधायकों के निशाने पर नीतीश सरकार, बिहार में 85% रिजर्वेशन की मांग
Bihar Politics: महागठबंधन सरकार में बढ़े आरक्षण का मामला पटना हाईकोर्ट गया था जिसको कोर्ट ने रद्द कर दिया था. अभी सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है. सदन में आज आरक्षण का मुद्दा खूब गूंजा.

Bihar News: बिहार की एनडीए सरकार को आरक्षण के मुद्दे पर लगातार घेरा जा रहा है. इसी बीच आरजेडी विधायक रणविजय साहू व सतीश दास ने बिहार में 85 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की मांग उठाई है. उन्होंने कहा कि इसके लिए विधानसभा में प्रस्ताव पारित होना चाहिए. 85 प्रतिशत आरक्षण संविधान की 9वीं अनुसूची में डलवाया जाना चाहिए. पहले जो 65 प्रतिशत आरक्षण रद्द हुआ है उसे 75 प्रतिशत किया जाए, उसमें 10 प्रतिशत EWS का जोड़ा जाए. इस तरह आरक्षण कुल 85 प्रतिशत हो जाएगा.
आरजेडी विधायकों ने कहा कि पहले महागठबंधन सरकार में जातीय गणना हुई थी. आरक्षण का दायरा बढ़ा था. 65 फीसदी किया गया था. अब 75 फीसदी आरक्षण हो. नीतीश तब केंद्र सरकार पर दवाब बनाकर संविधान की 9वीं अनुसूची में नहीं डलवाये थे. उनके कारण आरक्षण रद्द हो गया. नीतीश आरक्षण चोर हैं. ऐसा नहीं है कि चुनावी साल में आरक्षण का मुद्दा हम लोग उठा रहे हैं. पिछड़े अतिपिछड़े दलित के हक की आवाज हम हमेशा उठाते हैं.
बता दें कि महागठबंधन सरकार में बढ़े आरक्षण का मामला पटना हाईकोर्ट गया था जिसको कोर्ट ने रद्द कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट में मामला अभी भी लंबित है. सदन के अंदर भी आरक्षण का मुद्दा उठा रहा है. आरजेडी लगातार नीतीश सरकार की घेराबंदी कर रही है. भारी हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही 2 बजे तक के लिए स्थगित की गई थी.
‘महागठबंधन सरकार ने जातीय आधारित गणना करवाई’
सदन के अंदर राजद के मुख्य सचेतक एवं विधायक अख्तरुल इस्लाम शाहीन ने कहा महागठबंधन सरकार ने जातीय आधारित गणना करवाई थी. विभिन्न जातियों की समाजिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर वर्ष 2023 में आरक्षण की सीमा प्रतिशत की गई थी. 10 प्रतिशत आरक्षण के फलस्वरूप बिहार में सरकार नौकरी और संस्थानों में नामांकन के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया था. महागठबंधन सरकार के ऐतहासिक निर्णय का लाभ समाज पिछड़े, अतिपिछड़े, दबे-कुचले कमजोर वर्ग के साथ आर्थिक रूप से कमजोर स्वर्ण को भी मिल रहा था.
‘85 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की मांग’
उन्होंने कहा कि 9 नवंबर 2023 को महागठबंधन सरकार विधानसभा में विधेयक लेकर आई थी, जिसे दोनों सदनों में पारित करवाकर कानून का रूप भी दे दिया गया था. लेकिन इसे भारतीय संविधान की नौंवी सूची में शामिल नहीं किया गया. उन्होंने 85 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की मांग की.
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