राज्यसभा में उठा बिहार में कोरोना जांच में 'फर्जीवाड़े' का मामला, RJD ने की जांच की मांग
आरजेडी के राज्यसभा सांसद ने सदन में बिहार में कोरोना जांच में "फर्जीवाड़े" का मुद्दा उठाया और केंद्र सरकार से पूरे मामले में जांच की मांग की.
पटना: बिहार में कोरोना जांच की संख्या को बढ़ाने के लिए किए गए कथित फर्जीवाड़े का मामला शुक्रवार को राज्यसभा में उठाया गया. आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने सदन में इस मामले को उठाते हुए केंद्र सरकार से जांच की मांग की है. वहीं, उनकी मांग को उचित मानते हुए सभापति वेंकैया नायडू ने भी मामले को गंभीर कह कर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन से मामले की जांच करवाने का आग्रह किया है.
शून्यकाल में आरजेडी नेता मनोज झा ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि दो-तीन दिनों से बिहार में कोरोना वायरस की जांच रिपोर्ट में आंकड़ों में कथित गड़बड़ी होने की खबरें आ रही हैं. उन्होंने कहा ‘‘ये खबरें चिंताजनक हैं. इनमें दावा किया गया है कि कोरोना वायरस की जांच रिपोर्ट में फर्जी डाटा एंट्री की गई हैं. इसकी उच्च स्तरीय जांच की जानी चाहिए.’’ मनोज झा ने यह भी कहा ‘‘ इस तरह की गड़बड़ी रोकने के लिए आधार कार्ड और पैन कार्ड जैसे दस्तावेज पेश करना अनिवार्य बनाया जाना चाहिए.’’
तेजस्वी ने सीएम नीतीश पर लगाया आरोप
इस मामले में कल नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी सीएम नीतीश पर निशाना साधा था. उन्होंने सीएम नीतीश पर स्वास्थ्य विभाग के सचिव के साथ मिलकर कोरोना जांच की संख्या को फर्जीवाड़ा कर बढ़ाने का आरोप लगाया था. तेजस्वी यादव ने गुरुवार सीएम नीतीश पर निशाना साधते हुए कहा था कि मैंने पहले ही बिहार में कोरोना घोटाले की भविष्यवाणी की थी. जब हमने घोटाले का डेटा सार्वजनिक किया था, तो सीएम ने हमेशा की तरह उसे नकार दिया था. मुख्यमंत्री ने आंकड़े नहीं बदलने पर तीन स्वास्थ्य सचिवों का तबादला कर एंटीजेन का वो “अमृत” मंथन किया कि 7 दिनों में प्रतिदिन टेस्ट का आंकड़ा 10 हज़ार से 1 लाख और 25 दिनों में 2 लाख पार करा दिया.
टेस्ट के नाम पर किया गया अरबों का हेर-फेर
तेजस्वी ने कहा कि बिहार की आत्माविहीन भ्रष्ट नीतीश सरकार के बस में होता तो कोरोना काल में गरीबों की लाशें बेच-बेचकर भी कमाई कर लेती. जांच में यह साफ हो गया है कि सरकारी दावों के उलट कोरोना टेस्ट हुए ही नहीं और मनगढ़ंत टेस्टिंग दिखा अरबों का हेर-फेर कर दिया गया.
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि हमारे द्वारा जमीनी सच्चाई से अवगत कराने के बावजूद सीएम और स्वास्थ्य मंत्री बड़े अहंकार से दावे करते थे कि बिहार में सही टेस्ट हो रहे हैं. टेस्टिंग के झूठे दावों के पीछे का असली खेल अब सामने आया है कि फर्जी टेस्ट दिखाकर नेताओं और अधिकारियों ने अरबों रुपयों का भारी बंदरबांट किया है.
क्या है पूरा मामला?
गौरतलब है कि बिहार सरकार पर कोरोना काल में फर्जी नाम और नम्बर दर्ज कर कोविड टेस्ट की संख्या बढ़ाने का आरोप लगा है. दरसअल, इंडियन एक्सप्रेस ने बिहार के जमुई, शेखपुरा और पटना के छह पीएचसी में कोविड टेस्ट के 885 एंट्री की जांच की है. इस दौरान खुलासा हुआ कि जिन लोगों की रिपोर्ट निगेटिव आई है, उनमें से अधिकतर मरीजों का मोबाइल नंबर गलत लिखा गया है. इन सरकारी अस्पतालों से ये डेटा जिला मुख्यालय पटना भेजा जाता है.
जिला मुख्यालय में डेटा एंट्री स्टाफ ने जमीनी स्तर पर काम करने वाले पीएचसी के कर्मचारियों को दोषी ठहराया है. उन्होंने दावा किया कि सिस्टम में डेटा अपलोड करते समय 10 अंकों का मोबाइल नंबर लिखना अनिवार्य होता है. पीएचसी के कर्मचारी एंट्री सब्मिट करने के लिए मोबाइल नंबर के कॉलम में 10 जीरों भर देते हैं.
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