Subrata Roy Death: बिहार के अररिया में हुआ था सुब्रत रॉय का जन्म, आज भी लोग नहीं जानते ननिहाल की ये बातें
Sahara Subrata Roy Died: सुब्रत रॉय के आज जो भी रिश्तेदार अररिया में हैं उनसे बातचीत में कई पुरानी बातें निकलकर सामने आई हैं. आज यहां के दर्जनों परिवार उनके निधन पर शोक जता रहे हैं.
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अररिया: सुब्रत रॉय (Subrata Roy) का जन्म 10 जून 1948 को बिहार के अररिया में हुआ था. अररिया में सुब्रत रॉय का ननिहाल था. लंबे समय से बीमार रहने के कारण सहारा इंडिया परिवार के संस्थापक सुब्रत राय का मंगलवार (14 नवंबर) की रात मुंबई के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. आज भी ऐसी कई बातें हैं जो ननिहाल से जुड़ी हैं लेकिन शायद ही लोग उसके बारे में जानते हैं.
सहारा इंडिया की स्थापना 1978 में हुई थी. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से शुरू किया गया था. अररिया में बिहार का सबसे पहला ब्रांच खुला था. ब्रांच भवन जब बन रहा था तो लोग डिजाइन देखने के लिए आते थे. सुब्रत रॉय और उनकी माताजी को अररिया से बहुत प्रेम था. अररिया में आज जो भी रिश्तेदार हैं उनसे बातचीत में कई पुरानी बातें निकलकर सामने आई हैं.
वो दिन जब दुल्हन की तरह सजा था अररिया
उनके रिश्ते के मामा फुना सेन ने बताया कि सुब्रत राय 1999 में अररिया आए थे. उस समय समिति मंदिर में कार्यक्रम भी हुआ था. उन्होंने अररिया के सैकड़ों बेरोजगार को रोजगार से जोड़ा था. सुब्रत राय की माता के भतीजे और 82 साल के अजय सेन गुप्ता बताते हैं कि वर्ष 1999 में जब वो कारोबार शुरू करने के बाद पहली बार अररिया आए थे तो अररिया को दुल्हन की तरह सजाया गया था.
सुब्रत राय के बारे में बताया कि वह बचपन में यहां घोड़ा गाड़ी तांगे पर चढ़ते थे, उस समय उनके लिए घोड़ा गाड़ी को सजाया गया था. उसी से उन्होंने शहर का भ्रमण किया था. अपने तमाम रिश्तेदारों के घर पहुंचे थे. 77 साल के अशोक सेन गुप्ता उर्फ बादल दा बताते हैं कि 1999 में आए तो सुब्रत उनके पिताजी शक्तिभूषण दास और मां से मिलकर धोती एवं साड़ी दी. उस वक्त उनकी बिस्कुट की फैक्ट्री थी तो बादल दा से लडुआ बिस्कुट मांगा था.
अररिया में बनाना चाहते थे स्टेडियम
वहीं 80 साल के सपन दास गुप्ता कहते हैं कि बचपन में समिति मंदिर के बगल में गिल्ली-डंडा साथ खेलते थे. शहर के प्रसिद्ध काली मंदिर के साधक नानू बाबा भी उनके मित्रों में शामिल हैं. अररिया को गोद लेकर विकास की नई गाथा लिखने की सोची थी पर नहीं हो सका था. आज यहां के दर्जनों परिवार उनके निधन पर शोक जता रहे हैं. बुजुर्ग कुट्टू दा बताते हैं कि खेल के प्रति भी उनका गहरा लगाव था. अररिया में वे एक बड़ा स्टेडियम बनाना चाहते थे.
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