(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
सहरसा: गुमनाम हो रहा कन्दाहा का प्राचीन सूर्य मंदिर, भगवान श्री कृष्ण के बेटे ने करवाया था निर्माण
बैसाख महीने में जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं तो सूर्य की पहली किरण इसी सूर्य प्रतिमा और उनके रथ पर पड़ती है. इस मंदिर में सभी बारह राशियों की कलाकृति के साथ-साथ सूर्य यंत्र भी मौजूद है.
सहरसा: कोणार्क और देव सरीखा नहीं अगर शास्त्र को मानें तो इन दोनों से श्रेष्ठ सहरसा जिले के कन्दाहा ग्राम स्थित अति विशिष्ट सूर्य मंदिर है, जो आज सरकारी उपेक्षा और प्रशासनिक उदासीनता का दंश झेल--झेल कर गुमनामी के अंधेरे में गुम होने की कगार पर है. सूर्य पुराण और महाभारत के मुताबिक भगवान श्री कृष्ण के बेटे साम्भ्य द्वारा निर्मित इस सूर्य मंदिर की श्रेष्ठता इस बात से प्रामाणित होती है कि इस मंदिर में राशियों में प्रथक मेष राशि के साथ सूर्य की प्रतिमा स्थापित है.
मंदिर में अष्टभुजी गणेश हैं विराजमान
मान्यता है की बैसाख महीने में जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं तो सूर्य की पहली किरण इसी सूर्य प्रतिमा और उनके रथ पर पड़ती है. इस मंदिर में सभी बारह राशियों की कलाकृति के साथ-साथ सूर्य यंत्र भी मौजूद है. यही नहीं इस मंदिर में अष्टभुजी गणेश भी विराजमान हैं, जो विरले ही कहीं किसी मंदिर में देखने को मिलेगा.
गुमनामी की ओर बढ़ रहा मंदिर
शिव की अदभुत प्रतिमा के अलावे सूर्य की दोनों पत्नियां संज्ञा और छाया की प्रतिमा भी यहां मौजूद है. लेकिन तमाम श्रेष्ठता और खासियत के बाद भी इस मंदिर की ख्याति कोणार्क या फिर देव के सूर्य मंदिर की तरह नहीं है. आश्चर्य बात यह है कि इस मंदिर को जहां आज पर्यटन के मानचित्र पर बुलंदी से खड़ा होना चाहिए था, वह आज गुमनामी की ओर बढ़ रहा है.
कन्दाहा सूर्य मंदिर है उपेक्षित
वहीं, इस मंदिर के पुजारी की मानें तो सर्यूग, त्रेता, द्वापर और कलयुग चारों युग में प्रत्यक्ष प्रमाण भगवान सूर्य ही हैं, इनसे बढ़कर तो कोई नहीं है. अभी भी लोग कलयुग में भगवान सूर्य की ही पूजा करते हैं. इन्हें प्रत्यक्ष प्रमाण देवता के रूप में देखा जाता है. कोणार्क मंदिर के बाद कन्दाहा सूर्य मंदिर ही हैं जो अपेक्षित है क्योंकि यह बहुत साइड में है, जिसे कोई देखने वाला नहीं है.
राजा भवदेव सिंह ने किया मंदिर का जीर्णोद्धार
पुजारी ने कहा, " यहां मुखिया जी हों, या विधायक जी हों या मंत्री जी हों सब केवल देख कर चले जाता हैं,लेकिन कोई नेता इस मंदिर के लिए सोचता नहीं है. द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का बेटे साम्भ्य ने बारह राशियों में सूर्य की स्थापना की थी,उसी में प्रथम मेष राशि की प्रतिमा इस जगह है. कितनी बार मंदिर बना और टूटा लेकिन 1334 ईस्वी में इनवार वंश का राजा भवदेव सिंह द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ.
कन्दाहा सूर्य मंदिर की खासियत
कन्दाहा सूर्य मंदिर की एक और खासियत है कि मंदिर के परिसर में एक कुआं है. ऐसी मान्यता है कि किसी को अगर सफेद दाग हो या चार्म रोग हो तो उस व्यक्ति को कुआं पर स्नान कराने से और सूर्य भगवान का चरणामृत पिलाने से ,उसका चर्म रोग या सफेद दाग ठीक हो जाता है. वहीं जो सच्चे मन से मनोकामना लेकर सूर्य देवता के पास आता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है.