मधुबनी: बहनों द्वारा भाइयों के लिए मंगलकामना का पर्व सामा-चकेवा (Sama-Chakewa) की तैयारी शहर और गांव में लोग धूमधाम से कर रहे हैं. यह पर्व पूरे मिथिलांचल में सांस्कृतिक और पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इसी दिन सामा और चकेवा को श्राप मुक्त किया गया था. वहीं, इस पर्व में बहनों के द्वारा छठ पर्व की सुबह के अर्घ्य के बाद से रात्रि में मिट्टी के बने सामा, चकेवा, सतभैया, वृंदावन एवं चुगला की मूर्ति और दीया को एक टोकरी में डाल कर चौक, चौराहा और सड़कों पर ओस लगाया जाता है और सामा खेलती हैं.


भगवान श्रीकृष्ण ने सामा को दिया था श्राप


इस पर्व के बारे में स्थानीय निवासी और सांस्कृतिक एवं लोक परंपरा की जानकार राजघराने की बहू पूजा सिंह बताती हैं कि ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री सामा (श्यामा) थी. उनके भाई का नाम सांब था, सामा के पति चकेवा (चारूवत्र) थे और एक सामंत चुगला (चुरक) था. सामा नित्य दिन फुलवारी में घूमती थी. एक दिन चुगला ने श्रीकृष्ण से झूठी चुगली कर दी कि सामा वृंदावन में टहलने के दौरान ऋषियों के साथ घूमती है, जिस पर श्रीकृष्ण ने सामा को पक्षी बनकर वृंदावन में घूमने का श्राप दे दिया. श्राप के कारण ऋषियों को भी पक्षी का रूप धारण करना पड़ा. जिस वक्त भगवान श्रीकृष्ण ने सामा को श्राप दिया उस वक्त उसके पति चकेवा (चारूवत्र) कही बाहर थे, जब वे लौटे तो पत्नी को खोजा, तब उन्हें श्रीकृष्ण के दिए गए श्राप के बारे में पता चला.


सांब ने तपस्या कर किया श्राप मुक्त


सामा (श्यामा) के पक्षी बनने के बाद चकेवा (चारूवत्र) ने भगवान विष्णु की तपस्या शुरू कर दी. चकवा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए. चकेवा ने पत्नी सामा की पुनः मनुष्य में परिवर्तित करने या खुद को पक्षी बनाने का वर मांगा, लेकिन भगवान विष्णु द्वारा सामा को पुनः मनुष्य नहीं बना सकने की बात कही गई और चकेवा को पक्षी बना दिया. जब सांब को पता चला तो उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की. भाई सांब का बहन के प्रति अटूट प्रेम देख भगवान शिव ने सामा, चकेवा और ऋषि सब को भी श्राप मुक्त कर दिया. उस दिन से सामा श्राप मुक्त हो गई. इसी मान्यता के साथ बहने सामा-चकेवा का खेल खेलती है और चुगला (चुरक) की मूर्ति बनाकर उसे जलाती है. 


26 नवंबर को है कार्तिक पूर्णिमा 


कार्तिक पूर्णिमा को खेत में भाई नए धान का चूड़ा और गुड़ बहन को उपहार स्वरूप भेंट कर इस खेल का अंत करते हैं. इसको लेकर मिथिलांचल में बाजे-गाजे, ढोल-मृदंग के साथ सामा को सजाकर शोभा यात्रा निकाली जाती है. इस साल कार्तिक पूर्णिमा 26 नवंबर रविवार को है और इसी दिन रात को सामा की जमीन में विसर्जन के साथ सामा-चकेवा पर्व खत्म होगा.


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