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Sawan Special: अंग क्षेत्र के इस शिव मंदिर में स्थापित है 'ज्येष्ठ' शिवलिंग, दूर-दूर से जलाभिषेक को आते हैं श्रद्धालु

पुरात्वविदों के अनुसार, बाबा ज्येष्ठगौर नाथ का यह मंदिर सदियों पुराना है. यहां जलाभिषेक को सालों भर प्रत्येक सोमवार को श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं.

बांका: जिले के रजौन एवं अमरपुर थाना क्षेत्र के सीमा पर स्थित अमरपुर प्रखंड अंतर्गत चांदन नदी के दक्षिण-पश्चिमी तट एवं अमरपुर शहर से महज आठ किलोमीटर की दूरी पर दक्षिणी-पूर्वी जेठौर पहाड़ की तलहटी के मनोरम वादियों में स्थित है बाबा ज्येष्ठगौर नाथ (जेठौर) महादेव मंदिर, जो एक मुखी शिवलिंग के लिए ख्याति प्राप्त है. यह शिवलिंग जेठौर नाथ मुख्य मंदिर के उत्तर में स्थित लक्ष्मीनारायण मंदिर में स्थापित है.

पुरातत्वविदों के अनुसार, यह एक मुखी शिवलिंग सदियों पुरानी है. इस शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालु सालों भर दूर-दूर से आते हैं. वैसे तो इस मंदिर में आसपास सहित दूर-दूर से श्रद्धालु प्रत्येक सोमवार को पूजा-अर्चना करने के लिए आते है, लेकिन शिवरात्रि एवं सावन मास में यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ उमड़ती है. अंग क्षेत्र का यह मंदिर शिव, शैव और शक्ति का अनूठा संगम माना जाता है. कहा जाता है कि बाबा ज्येष्ठगौर नाथ महादेव मंदिर में मांगी गई सभी मुरादें पूरी होती है. मान्यताओं के अनुसार, पूरी पृथ्वी पर यह पहला शिवलिंग है, जिस कारण से इन्हें ज्येष्ठ अर्थात सबसे बड़े शिवलिंग के नाम से जाना जाता है.

1400 वर्ष पूर्व शशांक गौर ने कराया था शिवलिंग की स्थापना

बताया जाता है कि करीब 1400 वर्ष पूर्व हर्षवर्धन के समकालीन एवं उनके प्रतिद्वंदी शशांक गौर ने अपने प्रदेश में 108 विभिन्न रूप के शिवलिंग की स्थापना कराई थी, जिसमें संभवत: जेठौरनाथ का शिवलिंग सबसे बड़ा है, इसलिए इसे ज्येष्ठगौर नाथ कहा गया है. स्थानीय डीएन सिंह महाविद्यालय भुसिया, रजौन के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष डॉ. प्रोफेसर प्रताप नारायण सिंह एवं इसी महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य सह इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. प्रोफेसर जीवन प्रसाद सिंह ने जानकारी देते हुए कहा कि ऐसा ही शिवलिंग भागलपुर जिले के शाहकुंड की पहाड़ी पर बने मंदिर में भी मिला है. उन्होंने आगे बताया कि अंग दशाष्टक श्लोक में भी शशांक गौर द्वारा स्थापित 108 शिवलिंग की चर्चा की गई है. जेठौर नाथ में मिले शिवलिंग में तीन भाग स्पष्ट हैं, पहला भाग भोग बीच में भद्रपीठ या विष्णु पीठ एवं नीचे ब्रह्म पीठ, रूद्रभाग पर भगवान शिव का चेहरा उकेरा गया है. आमतौर पर भगवान शिव की प्रतिमा में त्रिनेत्र दिखता है, लेकिन इस शिवलिंग में त्रिनेत्र नजर नहीं आ रहा है, जटाजूट धारी इस शिवलिंग के गले में ग्लाहार बना हुआ है एवं कान में कुंडल भी है जो संभवत: उस समय प्रचलन में होगा.

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मंदिर परिसर से सटे पूर्व दिशा में चांदन नदी के ठीक मध्य में है कर्ण की चिताभूमि

जेठौर मंदिर के पुजारी पंडित राजा झा एवं रमण पाठक ने बताया कि मंदिर के ठीक पूरब दिशा में बहने वाली चांदन नदी के मध्य में दानवीर कर्ण की चिताभूमि है. महाभारत काल के अनुसार, सूर्यपुत्र दानवीर कर्ण ने मृत्यु के समय भगवान श्री कृष्ण से वचन लेते हुए कहा था कि मेरी चिता वैसी जगह जलाई जाए जहां एक भी चिता नहीं जलाई गई हो. इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने दानवीर कर्ण का शव लेकर पूरी दुनिया का भ्रमण करते हुए चांदन नदी के तट पर आए और अपने हाथों में दानवीर कर्ण की चिता जलाई. पुजारियों ने आगे बताया कि इस स्थान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि नदी में बाढ़ आने के बाद भी चितास्थल नहीं डूबती है. जिसका उदाहरण साल 1995 में आई भीषण बाढ़ में भी देखने को मिली थी.

मंदिर के पश्चिम-उत्तर दिशा में स्थित पहाड़ी पर है मां दक्षिणेश्वर काली की मंदिर

मंदिर के पश्चिम उत्तर दिशा में जेठौर पहाड़ के ऊपर मां दक्षिणेश्वर काली की मंदिर है. बाबा ज्येष्ठगौर नाथ मंदिर में पूजा करने के बाद श्रद्धालु चिताभूमि एवं मां दक्षिणेश्वर काली की भी पूरी श्रद्धा भाव से पूजा-अर्चना करते हैं. चांदन नदी के किनारे भगवान शिव, नदी के मध्य में दानवीर कर्ण की चिता भूमि एवं पहाड़ी पर मां काली का मंदिर इस क्षेत्र के लोगों के लिए वरदान से कम नहीं है.

सावन में जलाभिषेक के लिए सुल्तानगंज से जल भरकर पैदल आते हैं श्रद्धालु

प्रत्येक वर्ष सावन माह में श्रद्धालु सुल्तानगंज स्थित उत्तरवाहिनी गंगा से जल भरकर पैदल या डाक बम कांवर लेकर बाबा ज्येष्ठगौर नाथ महादेव मंदिर में जलाभिषेक करने आते हैं. वहीं, महाशिवरात्रि पर तीन दिनों तक मंदिर में भव्य मेला का आयोजन किया जाता है. साथ ही महाशिवरात्रि के दिन गाजे-बाजे के साथ बड़े ही धूमधाम से भव्य शिव बारात भी निकाली जाती है.

राजकीय दर्जा दिलाने के लिए कई बार उठ चुकी है मांग

जेठौरनाथ मंदिर एवं इसके आसपास काफी कुछ छिपा है जिसे ढूंढने की जरूरत है. यदि इसे राजकीय दर्जा मिल जाए तो यहां पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं. साथ ही यहां काफी संख्या में पौराणिक मूर्तियां तथा अन्य ऐतिहासिक चीजें भी मिल सकती हैं. कई सामाजिक संगठनों ने सरकार से बाबा ज्येष्ठ गौरी नाथ महादेव मंदिर को राजकीय दर्जा देने की मांग कई बार की है, ताकि देश-विदेश से भी सैलानी यहां पर्यटन करने आ सके.

मंदिर तक पहुंचने का सुगम मार्ग

बांका-अमरपुर मुख्य सड़क मार्ग पर इंग्लिश मोड़ से पूरब की ओर करीब 5 किलोमीटर तथा भागलपुर-हंसडीहा मुख्य सड़क मार्ग पर रजौन थाना क्षेत्र के पुनसिया बाजार से पश्चिम की ओर करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है जेठौर नाथ मंदिर. इंग्लिश मोड़ एवं पुनसिया बाजार से मंदिर तक आवागमन के लिए सुबह से शाम तक ऑटो सहित अन्य यात्री गाड़ियां मिलते रहती है.

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