सिवान: सूबे में इन दिनों चीनी मिलों के बंद होने के मुद्दे पर  हाय तौबा मचा हुआ है. विपक्ष सरकार को इस मुद्दे पर लगातार घेर रही है. मुद्दे पर विचार करना जरूरी भी है क्योंकि चीनी मिलों के बंद होने की वजह से किसानों और मिलों में काम करने वाले कर्मियों की जिंदगी बदहाल हो गयी है. बिहार के सिवान में तीन-तीन चीनी मिल हैं, जो दशकों से बंद पड़ी हुई हैं. इन मीलों में हजारों लोग काम करते थे. लेकिन मिल के बंद हो जाने से मजदूर, कर्मचारी और गन्ने की खेती करने वाले किसान भी बेरोजगार हो गए हैं.


बता दें कि 1939 में सिवान में तीन चीनी मिलों की शुरुआत की गई थी. इनमें एसकेजी शुगर मिल, पचरुखी शुगर मिल, न्यू शुगर मिल शामिल हैं. उस वक्त सिवान में 15 से 20 हजार हेक्टेयर तक गन्ने की खेती हुआ करती थी, लेकिन एक-एक कर साल 1994 के आसपास तीनों चीनी मिल बंद हो गईं और वहां काम करने वाले हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो गए. साथ ही हर साल करीब 90 लाख क्विंटल तक गन्ने का उत्पादन करने वाले किसान भुखमरी के कगार पर आ गए. बंद चीनी मिल ने कई कर्मचारियों की जिंदगी बर्बाद कर दी.


मिल की सुरक्षा करते हुई हो गयी मौत


पचरुखी प्रखंड के चांप गांव निवासी विजय शंकर पाठक चीनी मिल के सुरक्षा में तैनात थे. 37 वर्षों तक लगातार ड्यूटी करते रहे और मिल के सामानों की रक्षा की. 2012-13 में भू-माफियाओं ने मिल की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की, इस दौरान कई राउंड गोलियां भी चलीं. लेकिन विजय शंकर पाठक बिना डरे मिल की सुरक्षा करते रहे और 2015 में उनकी मृत्यु हो गया.


इसके बावजूद आज तक 37 वर्षों के बकाया पेमेंट का भुगतान नहीं हो पाया है. उनके बेटे धर्मेंद्र पाठक ने कहा कि घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई है. बहन की शादी करनी है, लेकिन पैसे नहीं होने की वजह से शादी में दिक्कतें आ रही हैं. कई बार कार्यालय और नेताओं के पास चक्कर लगाए, इसके बावजूद आज तक भुगतान नहीं हो पाया.


किसानों का भी हुआ बुरा हाल


सिवान के तीनों चीनी मिलों बंद होने के कारण जहां मिलों में काम करने वाले कर्मचारी बदहाल हैं. वहीं, सिवान के किसान भी इस समस्या से काफी परेशानी हैं. गौरतलब है कि सिवान की भूमि गन्ने की खेती के लिए काफी उपजाऊ है, जिसके मद्देनजर जिले में तीन-तीन चीनी मिलों की स्थापना कराई गई थी. लेकिन अब गन्ने की खेती करने वाले किसान बदहाली का दंश झेल रहे हैं.


बहरहाल, सिवान जो कभी एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में जाना जाता था, आज वहां एक छोटा कारखाना भी नहीं है. जबकि तीन-तीन चीनी मिल, एक सूत फैक्ट्री, एक चमड़ा फैक्ट्री बंद पड़ी हुई हैं. ऐसे में अगर आज भी सरकार इस तरफ योजनाबद्ध तरीके से पहल करती तो किसानो को बड़े-बड़े न सही छोटे उद्योगों के रूप में रोजगार मुहैया कराया जा सकता है.


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