Bihar Politics: सुनील पांडे को पाले में करने से BJP को मिली है मजबूती, तरारी उपचुनाव में बाहुबल से मिलेगी मदद?
Sunil Pandey News: बाहुबली सुनील पांडे पर कई आपराधिक मामले हैं, वो अपने बेटे के साथ बीजेपी में शामिल हो गए हैं. बीजेपी तरारी सीट पर पांडे की मदद से अपना आधार मजबूत करना चाहती है.
Bihar Politics: यूपी की तरह ही बिहार में बाहुबलियों के माननीय बनने की बहुत लंबी लिस्ट है. बाहुबली सुनील पांडे अपने बेटे के साथ 18 अगस्त को बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी आरा की तरारी सीट पर बाहुबल की मदद से अपने किला को मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है. सुनील पांडे जिनका अतीत विवादों से भरा रहा है इनके खिलाफ दर्जनभर से अधिक आपराधिक मामले हैं उन्हें 2003 में बिहार के प्रसिद्ध न्यूरो सर्जन डॉ. रमेश चंद्र के अपहरण के मामले में दोषी ठहराया गया था, हालांकि पटना हाई कोर्ट ने 2010 में इस फैसले को पलट दिया था.
आरा और सासाराम के बाहुबली के रूप में जाने जाने वाले पांडे चार बार विधायक रह चुके हैं. सुनील पांडे और उनके बेटे विशाल प्रशांत का बीजेपी में शामिल होना संभवतः आगामी उपचुनाव में तरारी विधानसभा सीट को लेकर देखा जा रहा है. कहा जा रहा है कि विशाल प्रशांत तरारी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. तरारी सीट आरा लोकसभा क्षेत्र से सीपीआई एमएल के विधायक सुदामा प्रसाद के सांसद चुनने की वजह से खाली हुई है.
पार्टी में बाहुबलियों का है डिमांड
दरअसल, बीजेपी का सुनील पांडे को शामिल करने का निर्णय इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि मुख्यधारा के दल अपने चुनावी लाभ को बढ़ाने के लिए बाहुबलियों पर निर्भर हैं. हालांकि इस बार लोकसभा चुनाव में बिहार में एनडीए ने 40 में से 30 लोकसभा सीटें जीतीं, बीजेपी सांसदों की संख्या 17 से घटकर 12 हो गई और इसका वोट प्रतिशत 23.6 प्रतिशत से घटकर 20.5 प्रतिशत हो गया. बिहार में बीजेपी के प्रदर्शन को मजबूत करने के लिए इस कदम को देखा जा रहा है. बिहार की अन्य राजनीतिक पार्टियां जैसे राष्ट्रीय जनता दल और जेडीयू ने भी बाहुबलियों या उनके प्रतिनिधियों का समर्थन किया है.
2020 के विधानसभा चुनाव में बतौर निर्दलीय मैदान में उतरे सुनील पांडे दूसरे स्थान पर रहे थे, जबकि बीजेपी प्रत्याशी कौशल विद्यार्थी बुरी तरह पराजित हो गए थे. सुनील पांडे पीरो विधानसभा क्षेत्र से चार बार चुनाव जीत कर 2000 से 2015 तक लगातार 15 साल विधायक रहे. 2015 के विधानसभा चुनाव में उनके जगह उनकी पत्नी गीता पांडे महज 235 वोटों से चुनाव हार गई थीं.
पीएचडी कर चुके हैं सुनील पांडे
भगवान महावीर पर पीएचडी कर चुके सुनील पांडे का नाम बिहार के बाहुबली नेताओं में शुमार किया जाता है. उन्होंने 34 साल की उम्र में पहली बार 2000 में फरार रहते ही पीरो विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीते. वर्ष 2000 में समता पार्टी प्रत्याशी के रूप में 43,160 मत पाकर पीरो विधानसभा क्षेत्र से पहली बार विधायक बने थे. फरवरी 2005 में पीरो विधानसभा क्षेत्र से 54,767 मत पाकर सुनील पांडे दूसरी बार विधायक बने.
कई बार रह चुके हैं विधायक
वर्ष 2005 के अक्टूबर माह में हुए उपचुनाव में पीरो विधानसभा क्षेत्र से 46,338 मत पाकर सुनील पांडे तीसरी बार विधायक बने. 2010 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू प्रत्याशी के रूप में तरारी विधानसभा क्षेत्र से 46,338 मत पाकर सुनील पांडे चौथी बार विधायक बने थे. 2015 के विधानसभा चुनाव में लोजपा प्रत्याशी के रूप में सुनील पांडे की पत्नी गीता पांडे चुनाव मैदान में उतरीं और 43,778 मत पाकर महज 272 मतों के अंतर से उनको हार का सामना करना पड़ा था.
चार बार विधायक रह चुके सुनील पांडे कभी सत्ता के काफी करीब थे. एक बार तो सरकार बचाने और बहुमत जुटाने को लेकर उनकी खूब चर्चा हुई थी. बताया जा रहा है कि 2000 में समता पार्टी ने सुनील पांडे को भोजपुर के पीरो विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया था उन्होंने आरजेडी के प्रत्याशी काशीनाथ को हराया था. वर्ष 2000 के चुनाव में किसी पार्टी या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला था. समता पार्टी का बीजेपी से गठबंधन था. नीतीश कुमार ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. सुनील पांडे ने बाहुबली राजन तिवारी, मुन्ना शुक्ला, रामा सिंह, अनंत सिंह, धूमल सिंह और मोकामा के सूरजभान जैसे निर्दलीय बाहुबलियों की फौज को नीतीश कुमार के खेमे में खड़ा कर दिया था तब सुनील पांडे का कद बहुत बढ़ गया था.
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