पटना/दिल्ली: पूर्व सांसद और बाहुबली आनंद मोहन सिंह (Anand Mohan Singh) की रिहाई के खिलाफ दायर की गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार (11 अगस्त) को सुनवाई नहीं हो सकी. उच्चतम न्यायालय ने बिहार सरकार (Bihar Government) से सवाल किया कि इस साल अप्रैल में पूर्व लोकसभा सांसद आनंद मोहन के साथ सजा में छूट पाने वाले कितने गुनहगार ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक की हत्या करने के दोषी ठहराए गए थे.


जी कृष्णैया की पत्नी ने दायर की है याचिका


बिहार सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया है कि 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे मोहन सहित कुल 97 दोषियों को एक ही समय में वक्त से पहले रिहा कर दिया गया था. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने आनंद मोहन को दी गई छूट को चुनौती देने वाली याचिका पर अंतिम सुनवाई 26 सितंबर तक के लिए टाल दी. यह याचिका मारे गए आईएएस अधिकारी की पत्नी ने दायर की है.


वहीं शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार को एक अतिरिक्त हलफनामा दायर करने की अनुमति दी, जिसमें रिहा किए गए उन दोषियों का विवरण देने के लिए कहा गया है, जिन्हें एक लोक सेवक की हत्या का दोषी ठहराया गया था. मारे गए अधिकारी की पत्नी उमा कृष्णैया की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने अनुरोध किया कि राज्य से आनंद मोहन को दी गई छूट के मूल रिकॉर्ड उन्हें देने के लिए कहा जाए, ताकि वे अपनी प्रतिक्रिया तैयार कर सकें लेकिन रंजीत कुमार ने इस अनुरोध पर आपत्ति जताई और कहा कि यदि लूथरा की मुवक्किल छूट दिए जाने से संबंधित मूल रिकॉर्ड चाहती हैं, तो वह सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत आवेदन दाखिल कर सकती हैं.


न्यायमूर्ति दत्ता ने पूछा कि क्या उन सभी 97 लोगों को, जिन्हें छूट दी गई थी, एक लोक सेवक की हत्या का दोषी ठहराया गया था और यदि नहीं, तो कितने लोग इस अपराध के दोषी थे? रंजीत कुमार ने कहा कि उनके पास ऐसा कोई डेटा नहीं है और उन सभी दोषियों के विवरण पर और निर्देश की आवश्यकता है, जिन्हें छूट दी गई और समय से पहले रिहा कर दिया गया. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता का मामला यह है कि आनंद मोहन को लाभ पहुंचाने के लिए छूट नीति में बदलाव किया गया था. न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, ‘‘आप (कुमार) उन लोगों का ब्योरा प्रदान करें, जिन्हें लोक सेवक की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था और उन्हें सजा में छूट दी गई.’’ लूथरा ने दलील दी कि राज्य सरकार ने नीति को पूर्वव्यापी रूप से बदल दिया और मोहन को रिहा कर दिया.


सहरसा जेल से किया गया था रिहा


बता दें कि राज्य सरकार द्वारा बिहार जेल नियमों में संशोधन के बाद 14 साल की सजा काट चुके आनंद मोहन को 24 अप्रैल को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया था. निचली अदालत ने आनंद मोहन को पांच अक्टूबर 2007 को मौत की सजा सुनाई थी, जिसे पटना उच्च न्यायालय ने 10 दिसंबर 2008 को सश्रम आजीवन कारावास में बदल दिया था. इस फैसले पर उच्चतम न्यायालय ने भी 10 जुलाई 2012 को मुहर लगा दी थी.


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