बिहार: सुशील मोदी राज्यसभा के लिए निर्विरोध चुन लिए गए हैं. अब पटना की जगह सुशील मोदी का ठिकाना दिल्ली में होगा. साल 2004 के मई से नवंबर 2005 तक का वक्त छोड़ दें, तो सुशील मोदी बिहार में ही राजनीति करते रहे. 2004 में भागलपुर से सांसद बने थे. दिल्ली में उनकी ये पहली एंट्री थी. अब 16 साल बाद वो फिर से दिल्ली आ रहे हैं. माना जा रहा है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के अगले विस्तार में उन्हें जगह मिल सकती है. चारों सदन का सदस्य बनने वाले देश के चुनिंदा नेताओं में सुशील मोदी भी शामिल हो गए हैं.


सुशील मोदी को बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का करीबी माना जाता रहा है. नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ जब-जब सरकार बनाई सुशील मोदी नंबर दो रहे. इस बार सुशील मोदी की किस्मत में दिल्ली की राजनीति है, लिहाजा बिहार में उप मुख्यमंत्री नहीं बने हैं. वैसे कहा ये जा रहा है कि बीजेपी ने नए नेतृत्व को उभारने के लिए सुशील मोदी को बिहार से दूर कर दिया है.


अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनीति की शुरुआत करने वाले सुशील मोदी पटना से विधायक रहे हैं. बीजेपी जब विपक्षी पार्टी बनी तो सुशील मोदी बिहार में नेता विपक्ष भी रहे. साल 2000 में जब नीतीश हफ्ते भर के लिए पहली बार सीएम बने थे तब भी बीजेपी कोटे से सुशील मोदी ही मंत्री बनाए गए थे.


सुशील मोदी के माथे पर बिहार बीजेपी के भीष्म पितामह रहे कैलाश पति मिश्रा का हाथ रहा है. मिश्रा जी ने ही सुशील मोदी को अपना सियासी उत्तराधिकारी बनाकर बिहार में आगे बढ़ाया. सुशील मोदी उन उम्मीदों पर खरे भी उतरे और राजनीति की ऊंचाईयां चढ़ते गए. ये अलग बात है कि कार्यकर्ताओं में उनको लेकर हाल के दिनों में नाराजगी बढ़ी है.


जब तक नीतीश कुमार पावरफुल रहे तब तक सुशील मोदी को हिलाने के बारे में कोई सोच नहीं सकता था. लेकिन इस चुनाव में नीतीश कमजोर हुए तो पहला विकेट पार्टी ने सुशील मोदी का ही गिराया है. बिहार बीजेपी में सुशील मोदी का कैंप काफी मजबूत हुआ करता था. अब वो बात नहीं है. पार्टी ने नित्यानंद राय के नेतृत्व में एक नया कैंप खड़ा करना शुरू कर दिया है. सुशील मोदी समय के साथ बिहार से विदा हो गए हैं. राजनीति की पारी के अंतिम दिनों में अच्छी विदाई हो जाएगी. हां सीएम बनने का मलाल रह जाएगा. क्योंकि अब ये सपना शायद पूरा नहीं हो पाएगा.


बीजेपी में सुशील मोदी विरोधी कैंप के साथ ही लालू यादव का कुनबा भी राहत की सांस लेगा.


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