Tejashwi Yadav Profile: नेता प्रतिपक्ष और बिहार के "मोस्ट एलिजिबल बैचलर" तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) गुरुवार को परिणय सूत्र में बंध गए. उन्होंने हरियाणा की रहने वाली रेचल जो उनकी बचपन की दोस्त बताई जाती हैं के साथ सात फेरे लिए हैं. शादी के दौरान घर से सभी सदस्य और करीबी दोस्त मौजूद रहे. सूत्रों की मानें तो पेशे से एयरहोस्टेस रेचल उनकी क्लासमेट रह चुकी हैं. दोनों ने दिल्ली में एक साथ पढ़ाई की है. इसी दौरान दोनों में दोस्ती हुई, प्यार हुआ और फिर दोनों जीवन भर के लिए एक दूसरे के हो गए.
शादी के लिए आए थे 44 हजार रिश्ते
हालांकि, बचपन का प्यार रेचल से शादी करने वाले तेजस्वी के लिए एक समय में 44 हजार रिश्ते आए थे. लेकिन उन्होंने उन सभी रिश्तों को ठुकरा कर रेचल का हाथ थाम लिया. दरअसल, साल 2015 में जब जेडीयू-आरजेडी महागठबंधन की सरकार आई थी, तब तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बनाए गए थे. वहीं, उन्हें पथ निर्माण विभाग की बागडोर सौंपी गई थी. तब उन्होंने खराब और टूटी-फूटी सड़क की शिकायत करने के लिए एक सरकारी नंबर जारी किया था. लेकिन इस नंबर पर शिकायत करने के बजाय लोग तेजस्वी के लिए अपनी बेटी का रिश्ता भेजने लगे थे. इस बात की जानकारी मिलने के बाद खुद तेजस्वी भी चौंक गए थे.
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लालू यादव के छोटे बेटे हैं तेजस्वी
बता दें कि तेजस्वी यादव बिहार के सबसे बड़े राजनीतिक घराने से ताल्लुक रखने वाले हैं. तेजस्वी के पिता लालू यादव (Lalu Yadav) और मां राबड़ी देवी (Rabri Devi) बिहार की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. साल 1990 से 2005 तक बिहार में उनका एकक्षत्र राज था, ये कहना गलत नहीं होगा. शायद ही कोई बिहारी ऐसा होगा जिले लालू-राबड़ी शासनकाल और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के बारे में जानकारी ना हो. अपने नौ भाई-बहनों सबसे छोटे तेजस्वी को राजनीति विरासत में मिली है.
साल 2015 में लालू यादव ने नीतीश कुमार (Nitish Kumar) से हाथ मिलाने के बाद अपने दोनों बेटों तेजस्वी और तेजप्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) को राजनीतिक दंगल में उतारा था. महागठबंधन के तहत चुनाव लड़ते हुए दोनों भाइयों ने मोदी लहर रहने के बावजूद भारी मतों से चुनाव में जीत हासिल की थी. इसके बाद दोनों को मंत्रालय सौंपे गए थे. तब से दोनों ही भाई राजनीति में सक्रिय हैं. तेजस्वी को तो लालू यादव आपना राजनीतिक वारिस भी मान चुके हैं.
एनडीए गठबंधन को दिया टक्कर
दरअसल, साल 2017 में चारा घोटाला मामले में पिता लालू यादव के जेल जाने के बाद तेजस्वी ने जिस तरह पार्टी को संभाला और लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी विधानसभा चुनाव 2020 में एनडीए गठबंधन को उन्होंने कड़ी टक्कर दी, उसके बाद वे एक जन नेता के रूप में उभर गए. उनके धुआंधार प्रचार अभियान का परिणाम रहा कि आरजेडी लार्जेस्ट अपोजिशन पार्टी बनकर उभरी. वहीं, सरकार और विपक्ष में काफी कम सीटों का अंतर रहा.
खिलाड़ी बनना चाहते थे तेजस्वी
आज राजनीति में बड़े-बड़े नेताओं से टक्कर लेने वाले तेजस्वी असलियत में राजनीति में आना नहीं चाहते थे. वो तो खिलाड़ी बनना चाहते थे. उनका रुझान क्रिकेट की तरफ था. तेजस्वी यादव साल 2008 में दिल्ली डेयरडेविल्स की ओर से इंडियन प्रीमियर लीग फ्रेंचाइजी के लिए अनुबंधित किए गए थे. हालांकि, 2008 और 2012 के बीच पूरे सत्र में वे टीम की रिजर्व बेंच में रहे. उन्हें 2009 में राज्य स्तरीय झारखंड क्रिकेट टीम के लिए भी चुना गया था. लेकिन उनके प्रोफेशनल क्रिकेट की शुरुआत मुख्य रूप से सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी में एक गेंदबाज के तौर पर टी-20 मैचों के साथ हुई थी.
इस मैच के बाद उन्हें धनबाद में विदर्भ क्रिकेट टीम के खिलाफ टेस्ट मैच के लिए बुलाया गया. यहां उन्हें 7वें नंबर के बल्लेबाज के रूप में उतारा गया और पांच ओवर में गेंदबाजी कराई गई. साल 2010 में, उन्होंने विजय हजारे ट्रॉफी में उन्होंने वनडे मैच की शुरुआत की. उन्होंने ओडिशा क्रिकेट टीम और त्रिपुरा क्रिकेट टीम के खिलाफ दो मैच खेले. उनकी टीम ने पहला मैच गंवाया और दूसरा मैच जीता. वहीं, उन्होंने त्रिपुरा के खिलाफ एक विकेट लिया.
इस वजह से ले लिया था संन्यास
हालांकि, साल 2013 तक तेजस्वी ने अपने क्रिकेट करियर से संन्यास ले लिया था. उनकी टीम के कोचों के अनुसार, उनमें सफलता की काफी संभावना थी. लेकिन वे बिहार में खिलाड़ियों के लिए पर्याप्त सुविधाओं की कमी के कारण उदास थे. राज्य में घरेलू क्रिकेट टीम के अभाव में वे भी अन्य बिहारी खिलाड़ियों की तरह दूसरे राज्य में चले गए थे. लेकिन वहां स्थानीय खिलाड़ियों को मैच खेलने के लिए प्राथमिकता दी जाती थी, जिसे देख वो उदास हुए और ये फैसला ले लिया.
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