पूर्णिया: आज राजनीति में पूंजीपतियों का बोलबाला है. जो एक बार विधायक बन जाए तो उसके परिवार वालों को आगे कुछ सोचना ही न पड़े और मुख्यमंत्री बनने के बाद तो फिर 7 पुश्तों तक कमाने की जरूरत नहीं पड़ती. मगर एक समय ऐसा भी मुख्यमंत्री आया जिसने राजनीति में सिवाए सम्मान के और कुछ नहीं कमाया. हम बात कर रहे हैं बिहार के 3 सत्र मुख्यमंत्री रहे भोला पासवान शास्त्री की, जिसने राजनीति में ईमानदारी की ऐसी मिसाल पेश की है कि आज उनके परिवार वालों का पेट दिहाड़ी मजदूरी से चलता है.


भोला पासवान शास्त्री जी का जीवन ' सादा जीवन, उच्च विचार ' की सोच पर आधारित था. तभी उन्हें पहले दलित मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला. वो भी एक बार नहीं बल्कि 3 बार. उन्होंने कभी भी निजी तौर पर धन नहीं बनाया और इसी कारण से बिहार की राजनीति में उनके ईमानदारी की चर्चा एक मिसाल बन गयी.


शास्त्री जी की जीवन शैली


21 सितंबर 1914, पूर्णिया जिले के बैरगाछी गांव में एक साधारण दलित परिवार में एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसे भोला के नाम से जाना गया. शुरुवाती पढ़ाई पूर्णिया में करने के बाद दरभंगा संस्कृत विवि से शास्त्री की डिग्री लेने के कारण उनका टाइटिल में शास्त्री लगा था. शास्त्री जी नेहरू जी के निकटतम नेता माने जाते थे और वे बाबा साहब अम्बेडकर और नेहरू जी के मतभेद के बाजजूद नेहरू जी के साथ रहे. शास्त्री जी 1972 में राज्यसभा सांसद भी मनोनीत हुए और केन्द्र सरकार में मंत्री भी बने. उनका निधन 4 सितंबर 1984 को हुआ था.


3 बार रहे बिहार के मुख्यमंत्री


भोला पासवान शास्त्री बिहार के आठवें सीएम थे और उनके सर तीन बार मुख्यमंत्री का ताज सजा. लेकिन उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन मे ईमानदारी की ऐसी मिसाल पेश की है जो आज के राजनेता शायद ही कर सके. शास्त्री जी ने अपने गांव बैरगाछी में कोई भी संपत्ति जमा नहीं की और आम आदमी की तरह जिंदगी जी. यहां तक कि परिजन भी इनसे कोई लाभ नहीं ले पाए. उनका गांव घर और उनके परिजन आज भी सामान्य जिंदगी जी रहे हैं.


पेड़ की छांव में चलता था कार्यकाल


शास्त्री जी मंत्री और मुख्यमंत्री रहते हुए भी पेड़ के नीचे ही अपना कार्यकाल बिता रहे थे. जमीन पर कंबल बिछाकर बैठने में संकोच नहीं करते थे और वहीं पर अधिकारियों से मीटिंग कर मामलों का निपटारा भी कर दिया करते थे.


आज घर मे दिहाड़ी पर पलता है पेट


अपनी ईमानदारी की ऐसी मिसाल पेश की है कि अब इनके घर मे दिहाड़ी मजदूरी पर ही घरवालों के पेट पलता है. कोई भी सरकारी नौकरी या फिर लाभ अबतक इनके पास नहीं पहुंचा. जिस दिन दिहाड़ी न मिले उस दिन घर का चूल्हा नहीं जलता.


कोई संतान नहीं थी शास्त्री जी को


भतीजा बिरंची पासवान बताते हैं कि शास्त्री जी को अपनी कोई औलाद नहीं थी. इसलिए उनको मुख अग्नि भी भतीजे बिरंचि पासवान ने ही दी थी. उनके परिजन होने का गर्व है लेकिन एक मुख्यमंत्री के परिवार में ऐसे हालात हैं इससे तकलीफ होती है.


राजकीय सम्मान के साथ मनाई जाती है जयंती


हर वर्ष 21 सितंबर को भोला पासवान शास्त्री की जयंती पर जिला प्रशासन की तरफ से पूर्णिया के बैरगाछी में समाराहों आयोजित किया जाता है, जिसमें जिला पदाधिकारी के अलावा स्थानीय विधायक और अन्य जान प्रतिनिधि मुख्य रूप से शामिल होते हैं.


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