नई दिल्लीः बस अब औपचारिक घोषणा ही बची रह गई है. बीजेपी और एलजेपी का रिश्ता ख़त्म ही समझिए. चिराग पासवान का एनडीए में खेल ख़त्म मान कर चलें. ये भी विचित्र संयोग है कि चिराग के कारण ही बीजेपी और एलजेपी में गठबंधन हुआ था. ये बात 2014 में हुए लोकसभा चुनाव की है. चुनाव से ठीक पहले यूपीए से एलजेपी बाहर आ गई थी. ये फ़ैसला चिराग का था. वे पार्टी के संसदीय बोर्ड के चेयरमैन हुआ करते थे. उन्होंने पहले बीजेपी नेता शाहनवाज़ हुसैन से बातचीत की. फिर राजनाथ सिंह से मिले थे.


रामविलास पासवान ने तब ये बताया था कि वे ऐसा नहीं चाहते थे. ना ही चिराग ने उन्हें ऐसा करने के लिए राज़ी किया. तब रामविलास की बड़ी आलोचना भी हुई थी. ये कहा गया था कि सत्ता के लिए वे कभी भी पलटी मार सकते हैं. यही हुआ भी. देश में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी. रामविलास कैबिनेट मंत्री बने. वे अब भले नहीं रहे. लेकिन उन्हें राजनीति का मौसम विज्ञानी कहते हैं.


एलजेपी और बीजेपी में आज जो कुछ हो रहा है. वह क़रीब दो महीने पहले होना था. बीजेपी और जेडीयू के बड़े नेताओं की पूरी तैयारी थी. नीतीश कुमार पर चिराग पासवान के लगातार हमले का बहाना भी था. ये भी चर्चा था कि चिराग ये सब प्रशांत किशोर के कहने पर कर रहे हैं. लेकिन ये तय हो चुका था कि बिहार चुनाव से पहले एलजेपी को एनडीए से बाहर कर दिया जाएगा. इसी रणनीति के तहत जीतनराम माँझी को एनडीए में शामिल कर लिया गया. ये फ़ैसला नीतीश कुमार का नहीं था.


उन्होंने बाद में खुद ये बताया कि बीजेपी के एक बड़े नेता के कहने पर ये फ़ैसला किया. गुजरात में बीजेपी के कार्यवाहक अध्यक्ष सी आर पाटिल आपरेशन मांझी पर पहले से काम कर रहे थे. दलितों के एक बड़े नेता को लाकर दलितों की दूसरी पार्टी को डंप करने की पूरी तैयारी थी. जेडीयू के एक सांसद की मानें तो उपेन्द्र कुशवाहा पार्ट टू करने की योजना थी. कुशवाहा की पार्टी को कम सीटें कम ऑफ़र की गईं. अंत में उन्हें एनडीए छोड़ना पड़ा.


सब कुछ तय फ़ार्मूले के हिसाब से चल रहा था. नीतीश कुमार एनडीए की ओर से सीएम उम्मीदवार घोषित किए जा चुके थे. चिराग पासवान किसी न किसी बहाने नीतीश को चिट्ठी लिख रहे थे. उनके कामकाज की आलोचना कर रहे थे. ये सब बीजेपी और जेडीयू को सूट कर रहा था. साथ ही एनडीए से बाहर किए जाने का आधार भी मज़बूत हो रहा था. लेकिन इसी बीच रामविलास पासवान की तबियत बिगड़ गई. लंबे समय तक अस्पताल में रहना पड़ा. ऐसे हालात में कुछ नहीं किया जा सकता था.


बिहार चुनाव में जेडीयू के ख़िलाफ़ बीजेपी के बाग़ी नेताओं को चिराग ने दिल खोल कर टिकट दिया. इससे ये मैसेज जाने लगा कि एलजेपी कहीं बीजेपी की टीम बी को नहीं है. नीतीश कुमार पर भी दवाब बढ़ने लगा. इसी बीच रामविलास पासवान का निधन हो गया. अब बीजेपी किसी धर्म संकट में नहीं है. पार्टी के लिए नीतीश कुमार ज़रूरी हैं.


पांच साल पहले नीतीश कुमार बिहार चुनाव में लालू यादव के साथ थे. दूसरी तरफ एलजेपी और बीजेपी का गठबंधन था. एलजेपी बस दो ही सीटें जीत पाई थी. पीएम नरेन्द्र मोदी 23 अक्टूबर से बिहार में चुनाव प्रचार शुरू कर रहे हैं. वे उन इलाक़ों में भी सभा करेंगे जहां एलजेपी की टिकट पर बीजेपी के बागी नेता लड़ रहे हैं. मतलब एनडीए गठबंधन को लेकर कन्फ़्यूज़न ख़त्म समझिए.