कैमूर: जिले के रामगढ़ प्रखंड स्थित बैजनाथ मंदिर खजुराहो मंदिर के तर्ज पर बनाई गई है. मंदिर में रखी मूर्तियां मध्यप्रदेश के खजुराहो मंदिर में रखी मूर्तियों जैसी दिखाई देती है. ग्रामीण बताते हैं यह मंदिर बहुत पुराना है, लेकिन ग्रामीण इस मंदिर के निर्माण का समय कोई ठीक समय नहीं बता पाते हैं. पुरातत्व विभाग के अनुसार 500 ईसा वर्ष पूर्व पाषाण काल में इस मंदिर को बनाया गया था. मंदिर के चारों कोन पर चार कुंड है.



इस मंदिर में छोटे-बड़े देवी देवताओं को मिलाकर कुल 33 सौ करोड़ मूर्तियां हैं. मंदिर परिसर के चारों ओर जितनी भी मूर्तियां या कलाकृतियां हैं, वह सभी खजुराहो मंदिर में लगे मूर्तियों से समानता रखती हैं. मंदिर में रखा शिवलिंग चारों तरफ से पत्थर से ढका हुआ है, नीचे एक कुआं है, जहां से पत्थर हटाने के बाद गैस निकलती है, इस कारण उसे चारों ओर से ढक दिया गया है. यहां की सभी मूर्तियां खंडित हैं क्योंकि सब जमीन के अंदर से निकली हैं.



मंदिर में जहां भी शिव की मूर्तियां हैं, वहां पार्वती जी भी विराजमान हैं. गांव के पूर्वजों ने इस शिव मंदिर को देखा है, लेकिन मंदिर किसने और कैसे बनाया यह किसी को नहीं पता. चाइनीज तीर्थयात्री जो भारत भ्रमण करने आए थे उन्होंने भी अपने यात्रा वृतांत में बैजनाथ मंदिर का जिक्र किया है. बता दें कि अब इस गांव में कहीं मकान बनाने के लिए खुदाई किया जाता है तो वहां से खजुराहो के तर्ज पर मूर्तियां निकलती हैं, जिसे ग्रामीण मंदिर में रख जाते हैं.


इस संबंध में जानकार बताते हैं कि बाहर से आए शोधकर्ता ने जब शिवलिंग की लंबाई नापने के लिए यंत्र डाली तो इसकी लंबाई 81 फीट बताया गई थी. उस वक्त यह कहा गया था एक लंबा कुआं है, जिसमें शिवलिंग है और उसे उपर से ढक्कन से ढक दिया गया है और छोटा सा ही शिवलिंग का जगह दिखाई देता है.


डॉ. श्याम सुंदर तिवारी बताते हैं कि 1812 ईसवी में बुकानन और गैरिक गांव का यात्रा कर चुके हैं. गांव के पश्चिम में एक टीले पर नया शिव मंदिर जो 12 फीट के वर्गाकार में फैला है, इसमें प्राचीन मंदिरों की सामग्रियों का उपयोग किया गया है. गैरिक ने 1882 ईस्वी में इस टीले के एक भाग की खुदाई कराई थी. खुदाई में प्राचीन मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए थे. गैरिक को यहां खुदाई के बाद तीन शिलालेख प्राप्त हुए थे. पहला मदन पाल देव के 9 वर्ष का था, जैसा कि कनिंघम ने पढ़ा था. दूसरे शिलालेख में सीता के साथ पांच और अक्षर लिखे थे और तीसरे शिलालेख में मकरध्वज जोगी 700 लिखा था, अभी तीसरा शिलालेख यहां बचा है.


जबकि बुकानन ने सुना था कि बैजनाथ शबर आदिवासियों की राजधानी थी, गांव से आधा मील उत्तर और पूरब में एक टीला था जो ककहिगढ़ के नाम से जाना जाता था, यहां पुराने मृदभांड, सोने के सिक्के आदि मिलते थे. इन सभी को गैरिक ने शबरों का माना लेकिन पूर्व मध्यकाल में यह क्षेत्र गहड़वाल राजाओं के हाथों में आ गया और ऐसे मान्यता है कि इस वंश के द्वितीय शासक राजा मादनपल देव ने यहां शिव मंदिर का निर्माण करवाया.