रोहतास: जिला के कैमूर पहाड़ी पर वन विभाग की ओर से लंबे समय के बाद बाघ को टहलते देखा गया. मालूम हो कि इससे पहले भी कैमूर पहाड़ी पर बाघ के पंजे के निशान मिले थे, जिससे ऐसा लगता है कि कैमूर पहाड़ी पर बाघ मौजूद हैं. इसे लेकर कैमूर के जंगल को टाइगर रिजर्व क्षेत्र घोषित करने की प्रारंभिक पहल शुरू हो गई है.


वन विभाग जंगल में लगातार बाघों की आवाजाही होने की पुख्ता सबूत राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को उपलब्ध करा रही है. यही नहीं मध्यप्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्र से कैमूर वन्य जीव आश्रयणी तक टाइगर कॉरिडोर बनाने की पहल भी हो रही है, ताकि यहां के जंगलों में बाघ आकर खुले में घूम सकें. एनटीएसए की मंजूरी मिलने के बाद कैमूर पहाड़ी ओर टाइगर रिजर्व बनाने का काम शुरू होगा.


कैमूर पहाड़ी के घने जंगलों में चार दशक पूर्व तक बाघों के होने की बात पूर्व मुखिया और जोन्हा गांव निवासी 90 वर्षीय जगदीप उरांव बताते हैं. यदुनाथपुर के नवलेश सिंह बताते हैं कि यहां 1975-76 तक काफी संख्या में बाघ थे. पेड़ों के कटने, वन माफिया और नक्सलियों की आवाजाही से कई वन्य प्राणियों की संख्या कम हो गई. हाल के वर्षों में माफिया और नक्सलियों पर कसे शिकंजे से इस क्षेत्र में बाघों की आवाजाही फिर बढ़ गई है. कई बार उनके पद चिह्न और उनके द्वारा त्याग किए गए मल भी मिले हैं. इसी को लेकर वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग की ओर से कैमूर वन्य प्राणी आश्रयणी क्षेत्र के विकास की योजना बनाई गई है.


बाघ की आवाजाही के पुख्ता सबूत


नवंबर 2019 में तिलौथू क्षेत्र में पहली बार बाघ के पंजों का निशान का मल प्राप्त हुआ था, जिसकी देहरादून स्थित वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की प्रयोगशाला में भेज जांच कराई गई थी. जहां से इसकी पुष्टि हुई थी. जांच में पंजे के निशान भी बाघ के ही पाए गए हैं. वन अधिकारी बताते हैं कि मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्र से बाघ यहां आते-जाते रहे हैं. इस क्षेत्र में वाटर होल बना बाघों को पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है.


वन अधिकारियों का कहना है कि टाइगर रिजर्व क्षेत्र घोषित हो जाने के बाद यह क्षेत्र भी टूरिज्म स्पॉट के तौर पर विकसित हो सकेगा. कैमूर वन्य क्षेत्र का इलाका 1800 वर्ग किमी से ज्यादा है. यहां तेंदुआ, लकड़बग्घा सहित कई अन्य जंगली जानवर भी पाए जाते हैं. मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्र और झारखंड के बेतला टाइगर रिजर्व क्षेत्र से भी इसका सीधा कॉरिडोर बनता है.


डीएफओ प्रद्युम्न गौरव का कहना है कि कैमूर पहाड़ी जंगल बाघों के लिए सुरक्षित स्थल है. लगातार बाघों की आवाजाही हो रही है. इसका पुख्ता प्रमाण भी एनटीसीए को उपलब्ध करा टाइगर रिजर्व क्षेत्र बनाने की पहल शुरू की गई है. पहले भी यहां के जंगलों में बाघ विचरण करते थे. इस वन्य क्षेत्र के रोहतास, तिलौथू, चेनारी, औरैया और भुड़कुड़ा पहाड़ी पर भी बाघ के पद चिह्न और उनकी आवाजाही देखी गई है. बाघ का विचरण करते हुए तस्वीर भी ऑटोमेटिक कैमरे से ली गई है. बाघों की आवाजाही बनी रहे, इसके लिए जंगल में कई जगह वाटर होल बनाया गया है. विभाग का प्रयास है कि टाइगर रिजर्व बने ताकि फिर से क्षेत्र यहां बाघ दहाड़ें.