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Tokyo Olympics: ओलंपिक में बिहार की भागीदारी नहीं होने पर तेजस्वी यादव ने जताई नाराजगी, कही ‘दिल की बात’

तेजस्वी ने कहा कि बिहार में प्रतिभाओं व प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की कोई कमी नहीं है. सरकार को हर संभव प्रयास कर जाति-धर्म से ऊपर उठकर खेलकूद की संस्कृति का विकास करना होगा.

पटनाः टोक्यो ओलंपिक समाप्त हो चुका है. इसके समापन के बाद ही नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव का दर्द सोमवार को छलक उठा. वे अपने आप को रोक नहीं पाए और फेसबुक पर पोस्ट लिखकर बिहार का ओलंपिक में प्रतिनिधित्व नहीं होने पर निराशा जताई. उन्होंने पूर्व खिलाड़ी होने के नाते अबतक बिहार सरकार को खेलकूद में प्रोत्साहन देने के लिए किसी तरह की व्यवस्था नहीं करने को लेकर भी कोसा है. 

तेजस्वी यादव ने लिखा कि खेल जगत का सबसे बड़ा उत्सव टोक्यो ओलंपिक्स समाप्त हो चुका है. पूरे ओलंपिक्स का बिहारवासियों ने पूरे देश के साथ आनंद लिया. जीत पर खुशी मनाई, हार पर निराश हुए. पर एक बात ने हर बिहारीवासी को हृदय से जरूर कचोटा होगा. उन्हें भी इस बात की टीस लंबे समय से रही है. वह बात है ओलंपिक्स में 13 करोड़ की आबादी वाले बिहार प्रदेश के एक भी खिलाड़ी का देश का इस विश्व स्तर के खेल मंच पर प्रतिनिधित्व नहीं करना. कहा कि 2016 में रियो ओलंपिक्स के बाद भी उन्होंने अपने “दिल की बात- ओलंपिक्स, भारत और बिहार” शृंखला के तहत अपनी इस पीड़ा को जाहिर किया था.

तेजस्वी ने कहा कि उनकी इस भावना को राजनीतिक चश्मे से ना देखा जाए. इस भाव को एक आम बिहारवासी, एक पूर्व खिलाड़ी और बिहार के एक खेलप्रेमी के रूप में देखा जाए. पूर्ण विश्वास जताते हुए कहा कि उनकी तरह बिहार के सभी पूर्व व वर्तमान खिलाड़ियों का बिहार का प्रतिनिधित्व करने का सपना रहा होगा. पर यहां खेलकूद से जुड़े विश्वस्तरीय आधारभूत संरचना, प्रशिक्षण सुविधाओं और सरकार की ओर से किसी भी रूप में प्रोत्साहन या सकारात्मक पहल के अभाव में बिहार की प्रतिभाएं या तो कभी उड़ान ही भर नहीं पाती हैं या फिर दूसरे राज्यों में जाकर ही अपने खेल को निखारती हैं. जिन भी बिहारी मूल के खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है, वह उन्होंने दूसरे राज्यों से प्रशिक्षण प्राप्त कर, वहां का प्रतिनिधित्व कर के ही पाई है.

खेलकूद को बढ़ावा देने की नहीं हुई ईमानदारी से कोशिश

तेजस्वी यादव ने कहा कि यह बात भी सच है कि किसी भी प्रदेश में खेलों और अच्छे खिलाड़ियों का होना अथवा नहीं होने की जिम्मेवारी राजनीति व सरकार का ही अंग है. यह बिहार के सभी राजनेताओं और नौकरशाहों के लिए एक विचारणीय विषय है. बिहार में खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए बस खानापूर्ति ही की गई है. आखिर बार 1996 के क्रिकेट विश्व कप में ही बिहार में कोई अंतरराष्ट्रीय मैच हुआ था. बिहार में खेलकूद को बढ़ावा देने की कभी कोई ईमानदार कोशिश नहीं हो रही है. खेल कूद के क्षेत्र में उज्ज्वल भविष्य की राज्य में कोई संभावना ना देख अभिभावक भी बच्चों को खेलों के प्रति ज्यादा प्रोत्साहित नहीं करते. ना तो कभी जमीनी स्तर पर काम करते हुए प्रतिभा को निखारने का प्रयास किया गया, ना खेलकूद को प्रोत्साहन देने के लिए उचित धनराशि आवंटित की गई है और ना ही प्रतिभा निखारने के लिए आधारभूत संरचना का निर्माण किया गया. जो बात दिल को और अधिक कचोटती है वह है यथास्थिति को बदलने के प्रति उदासीनता. उन्होंने कहा कि पूरी ईमानदारी से राज्य में खेलकूद के विकास की प्रतिबद्धता के साथ 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में एक “नई खेल नीति” को आरजेडी के घोषणापत्र में शामिल किया था. एक पूर्व खिलाड़ी और युवा होने के नाते मेरी हार्दिक प्रबल इच्छा है कि राज्य में हमारी जब भी सरकार बने, एक समयबद्ध सीमा के अंदर पूरे दृढ़ निश्चय से खेल कूद का विकास, खेलों के लिए विश्वस्तरीय आधारभूत संरचना, खिलाड़ियों के लिए रहने, खाने-पीने व यात्रा करने की समुचित व्यवस्था, प्रोत्साहन राशि और अन्य सुविधाएं सुनिश्चित करेंगे.

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि हम येन-केन-प्रकारेण सत्तासीन बिहार सरकार को धन्यवाद देते हैं कि कम से कम उन्होंने हमारे घोषणापत्र का अध्ययन कर उसमें उल्लेखित बिहार में खेल विश्वविद्यालय स्थापित करने की हमारी चिर परिचित मांग को हाल ही में स्वीकृति प्रदान की है. अब यह कब बनेगा, सरकार कितनी ईमानदारी से इससे राज्य में खेल के विकास को प्रतिबद्ध रहती है या इसके द्वारा भाई-भतीजावाद व क्षेत्रवाद कर अपने लोगों को वहां स्थापित करने या सरकारी फंड का दुरुपयोग करने का हथकंडा बनाती है, यह देखने वाली बात होगी?

तेजस्वी ने कहा कि यह ध्यान देने योग्य बात है कि मणिपुर, हरियाणा और पंजाब जैसे छोटे और कहीं ज्यादा कम आबादी वाले राज्य खेल कूद के मामले में बिहार से बहुत ही आगे है. हरियाणा और पंजाब में एक निर्धारित स्तर पर नाम कमाने पर सरकारी नौकरी दी जाती है और अच्छा करने पर पदोन्नति भी दी जाती है. बिहार में स्पोर्ट्स कोटा के नाम पर नौकरी तो है, पर उससे सरकार के करीबी लोगों को ही जैसे-तैसे लाभ पहुंचाया जाता है. मणिपुर, जो एक छोटा राज्य है, वह दिखाता है कि अगर खेलकूद को संस्कृति का हिस्सा बना दिया जाए तो प्रतिभा स्वयं आगे आने लगती है.

माता-पिता और शिक्षकों को समझना होगा खेलकूद का महत्व

बिहार में प्रतिभाओं व प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की कोई कमी नहीं है. सरकार को हर संभव प्रयास कर जाति-धर्म से ऊपर उठकर बिहार में भी खेलकूद की संस्कृति का विकास करना होगा. इसे जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाना होगा. बिहार सरकार की विभिन्न योजनाओं और प्रयासों से इच्छुक प्रतिभाओं को यह संदेश देना चाहिए कि खेल में अपना जीवन झोंकने से किसी भी सूरत में वे नुकसान की स्थिति में नहीं रहेंगे. सिर्फ खेल और खिलाड़ी ही नहीं, कोचों के प्रशिक्षण के लिए भी व्यापक स्तर पर प्रयास होने चाहिए. प्रशिक्षकों की एक बड़ी सेना तैयार कर उनसे गांव-गांव और स्कूल स्कूल जाकर टैलेंट स्काउट के रूप में छोटी उम्र में ही प्रतिभाओं को खोजने और उन्हें प्रशिक्षण दिलवाने की व्यवस्था की जानी चाहिए. माता-पिता और शिक्षकों को भी जीवन में खेलकूद और स्वास्थ्य के महत्व को समझना होगा, आगे अपने बच्चों व विद्यार्थियों को इसे समझाना होगा. खेलकूद ना सिर्फ हमें शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बनाते हैं, बल्कि चुनौतियों का सामना करना, तालमेल बिठाना, लक्ष्य साध कर मेहनत करना और एक-दूसरे की मदद करते हुए आगे बढ़ना सिखाती है. व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए खेलों के महत्व को बिहारवासियों और व्यवस्था को समझना ही पड़ेगा.

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